Vijayadashami par astra-shastra pooja : छत्तीसगढ़ के ये राज परिवार करेंगे अपने अस्त्र-शस्त्र और कालबान बंदूक की पूजा, जानिए क्या खासियत है इस बंदूक की, जानिए आयुध पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि
शस्त्र पूजा में अंग्रेजों के खिलाफ चलाई गई कालबान बंदूक की विशेष विधि विधान से पूजा की जाती है.
विजयादशमी का पर्व असत्य पर सत्य के जीत का पर्व है. इस वर्ष विजयादशमी का पर्व 2 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा. इस दिन छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों में अस्त्र-शस्त्र भी की जाती है. पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत की कथा में वर्णन मिलता है कि पांडवों ने अपना शस्त्र शमी वृक्ष में छुपाया था। अज्ञातवास की समाप्ति पर दशमी के दिन अर्जुन ने शमी वृक्ष से शस्त्र निकालकर युद्ध किया और विजय प्राप्त की। तभी से इस दिन शमी पूजन और शस्त्र पूजन की परंपरा चली आ रही है।
मान्यता है कि देवी-देवताओं की पूजा करने के साथ-साथ इस दिन अस्त्र-शस्त्र, औजारों, मशीनों और वाहनों की भी विशेष पूजा की जाती है. इन्हीं सबमे खास है बस्तर के राज परिवार की अस्त्र-शस्त्र पूजा.
बस्तर में दशहरा के अवसर पर एक विशेष बंदूक की पूजा की विशेष परम्परा है. इस बंदूक का इतिहास 200 साल पुराना है. इस शस्त्र पूजा में अंग्रेजों के खिलाफ चलाई गई कालबान बंदूक की विशेष विधि विधान से पूजा की जाती है. इस कालबान बंदूक को काकतीय चालुक्य राजवंश के लोग वर्षों से अपने पास रखे हुए हैं.
इसलिए इसका नाम कालबान
बस्तर के मंदिरों में प्राचीन काल के हथियार मौजूद है. इसी में से एक कालबान बंदूक है. भारतीय भरमार बंदूक के तर्ज पर बनाई गई यह बंदूक उस वक्त कागज, छर्रे बारूद को भरकर इस्तेमाल में लाया जाता था. इसकी दूरी और मारक क्षमता भी ज्यादा थी. एक बार गोली चलने पर काफी दूर तक दुश्मनों को जाकर छर्रे लगते थे. इसलिए इसका नाम कालबान रखा गया. आज भी बस्तर के राजपरिवार के सदस्यों के पास यह बंदूक एक धरोहर और निशानी की तरह है.
हाथी, घोड़े की भी पूजा का विधान
इसके साथ रणभूमि में अपनी आहुति देने वाले हाथी, घोड़े की भी पूजा का विधान पूरा किया गया. इस दिन राजपरिवार के सभी सदस्य एकजुट होकर एक साथ पूजा करते हैं. देवी की पूजा पाठ करके नए वस्त्र के साथ उपहार दिया जाता है. उसके बाद भोग लगाया जाता है. इस दिन कामना की जाती है कि बस्तर में किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए.
नए रथ की होती है शुरुआत
बस्तर राजपरिवार के अनुसार दशहरा के दिन नए रथ की शुरुआत होती है. आज से राजा नए रथ में सवार होते हैं. इसके साथ ही आज से भीतर रैनी की रस्म शुरू होती है. भीतर रैनी से आशय है कि राजा आज राजमहल के भीतर रहेंगे और अपनी प्रजा को दर्शन देंगे. दर्शन से पहले राजा अपनी कुलदेवी, शस्त्र, अश्व और अपने पितरों की पूजा करते हैं.
इन सबकी भी होती है पूजा
आयुध पूजा का महत्व सिर्फ अस्त्र-शस्त्र तक ही सीमित नहीं है. बल्कि इसमें जीवन में हमें सफलता दिलाने वाले सभी कर्म के उपकरणों जैसे- छात्र अपनी पुस्तकों, व्यापारी अपने तराजू-बहीखातों, कलाकार अपने औजारों और सैनिक अपने हथियारों की पूजा करते हैं.
विजयादशमी 2025: आयुध पूजा का शुभ मुहूर्त
इस साल विजयादशमी का पर्व 2 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा, और इसी दिन अस्त्र-शस्त्र पूजा का विधान है.
दशमी तिथि आरंभ 1 अक्टूबर 2025, शाम 7 बजकर 01 मिनट से.
दशमी तिथि समाप्त 2 अक्टूबर 2025, शाम 7 बजकर 10 मिनट तक.
विजय मुहूर्त : 2 अक्टूबर 2025, दोपहर 2 बजकर 09 मिनट से 2 बजकर 56 मिनट तक.
शस्त्र पूजा शुभ मुहूर्त
विजयादशमी के दिन विजय मुहूर्त के दौरान पूजा करना शुभ माना जाता है, क्योंकि यह समय हर कार्य में सफलता दिलाने वाला होता है. पंचांग के मुताबिक, 2 अक्टूबर को आप दोपहर 2 बजकर 09 मिनट से 2 बजकर 56 मिनट के बीच अपनी शस्त्र और उपकरणों की पूजा कर सकते हैं. यानी पूजा की कुल अवधि 47 मिनट तक रहेगी.
किस तरह करें आयुध पूजा ?
अस्त्र-शस्त्र पूजा के दिन विधि-विधान से पूजा करने पर मां दुर्गा का आशीर्वाद मिलता है. सबसे पहले, जिन अस्त्र-शस्त्र या उपकरणों की पूजा करनी है, उन्हें अच्छी तरह साफ करें. तत्पश्चात पूजा स्थान पर लाल कपड़ा बिछाकर उन्हें रखें. फिर अस्त्र-शस्त्रों पर गंगाजल छिड़कें, रोली, कुमकुम और चंदन का तिलक लगाएं. इसके बाद उन्हें फूल (विशेषकर गेंदे के फूल), माला और वस्त्र अर्पित करें. इसके बाद मिठाई या नैवेद्य का भोग लगाएं. आखिर में, धूप-दीप जलाकर उनकी आरती करें और प्रार्थना करें कि वे सदैव आपकी रक्षा करें और आपके कर्म में सफलता दें.