Shanidev Koun Hai शनिदेव कौन हैं:क्यो चढाते हैं उनको तेल, जानिए शनि से जुड़ी धार्मिक बाते

Shanidev Koun Hai शनिदेव कौन हैं: शनिवार का दिन सूर्यपुत्र शनि को समर्पित है। इस दिन शनि को प्रसन्न करने के लिए उपाय किये जाते है...जानते है

Update: 2023-10-13 17:05 GMT

Shanidev Koun Hai शनिदेव कौन हैं: सूर्य पुत्र शनि देव की जिस पर कृपा बरसती है वो जीवनभर खुशहाल रहता है, जिस पर नही बरसती उसका जीवन नरकमय रहता है।शनि देव सदैव से जिज्ञासा का केंद्र रहे हैं। पौराणिक ग्रंथो में शनिदेव को न्यायाधीश के रूप में दर्शाया गया है। शनिदेव अपना शुभ प्रभाव विशेषतः कानून, राजनीति व अध्यात्म के विषयों में देते हैं।पौराणिक कथाओं के अनुसार शनि देव कश्यप वंश की परंपरा में भगवान सूर्य की पत्नी छाया के पुत्र हैं। ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को शनि देव का जन्म उत्सव मनाया जाता है। शनि देव का जन्म स्थान सौराष्ट्र में शिंगणापुर माना गया है।

शनि देव को सूर्यपुत्र के साथ-साथ पितृ शत्रु भी कहा जाता है। शनि देव के भाई-बहन मृत्युदेव यमराज, पवित्र नदी यमुना व क्रूर स्वभाव की भद्रा हैं। शनि देव का विवाह चित्ररथ की बड़ी पुत्री से हुआ था।हनुमान, भैरव, बुध व राहू को वे अपना मित्र मानते हैं। शनिदेव का वाहन गिद्ध है और उनका रथ लोहे का बना हुआ है।

शनिदेव के दस नाम 

जब शनि देव अपनी माता छाया के गर्भ में थे, तब शिव भक्तिनी माता ने तेजस्वी पुत्र की कामना हेतु भगवान शिव की घोर तपस्या की जिस कारण धूप व गर्मी की तपन में शनि का रंग गर्भ में ही काला हो गया लेकिन मां के इसी तप ने शनि देव को अपार शक्ति भी दी।

ज्योतिष ग्रंथों में कहा गया है कि शनि को काला रंग व लोहे की धातु अत्याधिक प्रिय है और वह जमीन, भूगर्भ, वीरान स्थल आदि का कारक ग्रह है।इसलिये किसी भी शनि वार को किसी सुनसान जगह पर काजल की लोहे की छोटी सी डिबिया को जमीन में गाड़ दें और बिना पीछे देखे घर लौट आएं तो यह शनिदेव की अशुभता से बचने का सटीक व सरल उपाय है।

यम,

बभ्रु,

पिप्पलाश्रय,

कोणस्थ,

सौरि,

शनैश्चर,

कृष्ण,

रोद्रान्तक,

मंद,

पिंगल।


शनिदेव को तेल क्यों चढ़ाया जाता है?

रामायण में लिखा है कि जब भगवान राम की सेना ने सागर सेतु बांध लिया था, तब राक्षस उन्हें हानि न पंहुचा सकें, उसके लिये पवनसुत हनुमान को उसकी देखभाल की जिम्मेदारी सौंपी गई।

जब हनुमान जी शाम के समय राम के ध्यान में मग्न थे, तभी सूर्य पुत्र शनि ने अपना काला कुरुप चेहरा बनाकर क्रोधपूर्ण कहा- हे वानर, मैं देवताओं में शक्तिशाली शनि हूं। सुना है तुम बहुत बलशाली हो। आंखें खोलो और मेरे साथ युद्ध करो।

इस पर हनुमान जी ने विनम्रता से कहा- इस समय मैं अपने प्रभु को याद कर रहा हूं। आप मेरी पूजा में विघ्न मत डालिये। जब शनि देव लड़ने पर उतर ही आये तो हनुमान जी ने उन्हें अपनी पूंछ में लपेटना शुरु कर दिया।

शनि देव उस बंधन से मुक्त न होकर पीड़ा से व्याकुल होने लगे। शनि के घमंड को तोड़ने के लिये हनुमान ने पत्थरों पर पूंछ को पटकना शुरु कर दिया जिससे शनि देव लहुलुहान हो गये।

तब शनि देव ने दया की प्रार्थना की जिस पर हनुमान जी ने कहा- मैं तुम्हें तभी छोडू़गा जब तुम मुझे वचन दोगे कि श्री राम के भक्त को कभी परेशान नहीं करोगे। शनि ने गिड़गिड़ाकर कहा- मैं वचन देता हूं कि कभी भूलकर भी आपके और श्रीराम के भक्तों की राशि पर नहीं आऊंगा।

तब हनुमान जी ने शनि को छोड़ दिया और उसके घावों पर लगाने के लिये जो तेल दिया तो उससे शनिदेव की सारी पीड़ा मिट गई। उसी दिन से शनि देव को तेल चढ़ाया जाता है जिससे उनकी पीड़ा शांत होती है और वे प्रसन्न हो जाते हैं।

शनिदेव की  कथा

रावण की पत्नी मंदोदरी जब गर्भवती हुई तो रावण ने अपराजय व दीर्घायु पुत्र की कामना से सभी ग्रहों को अपनी इच्छानुसार स्थापित कर लिया। सभी ग्रह भविष्य में होने वाली घटनाओं को लेकर चिंतित थे लेकिन रावण के भय से वहीं ठहरे रहे।

जब रावण पुत्र मेघनाद का जन्म होने वाला था तो उसी समय शनिदेव ने स्थान परिवर्तन कर लिया जिसके कारण मेघनाद की दीर्घायु, अल्पायु में परिवर्तित हो गई।

शनि की बदली हुई स्थिति को देखकर रावण अत्यन्त क्रोधित हुआ और उसने शनि के पैर में अपनी गदा से प्रहार किया जिसके कारण शनि देव लंगडे़ हो गये। लंगड़ाकर चलने के कारण शनिदेव की चाल धीमी कही जाती है।पुराणों में यह कहा गया है कि शनि देव लंगड़ाकर चलते हैं जिस कारण उनकी गति धीमी है। उन्हें एक राशि को पार करने में लगभग ढा़ई वर्ष का समय लगता है।

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