Sawan Somwar 2025: सावन का अंतिम सोमवार आज, नोट कर लें पूजा-विधि, शुभ मुहूर्त, मंत्र, आरती से लेकर सबकुछ
Sawan Somwar 2025: सावन का आज आखरी सोमवार है और भगवान शिव को समर्पित सावन माह के आखिरी सोमवार का विशेष महत्व होता है। इस खास अवसर पर भगवान की उपासना के लिए लोग विशेष पूजा करते हैं। जो लोग व्रत करते हैं वे उद्यापन भी कराते हैं ऐसे में आज हम आपको भगवान की पूजा की विधि बताने जा रहे है। आप आज के दिन भगवान शिव के मंदिर जाएं और शिव परिवार की विधि विधान से पूजा करे। सावन सोमवार के दिन भगवान शिव पर बेलपत्र जरूर चढ़ाएं। शाम को सोमवार की व्रत कथा सुने, फिर मीठे भोजन का सेवन कर लें। अगले दिन दोबारा भगवान की पूजा करें और अपने इच्छा के अनुरूप दान करें फिर व्रत का पारण करें ध्यान रखें कि सावन सोमवार में व्रत के समय नमक का सेवन ना करें।
Sawan Somwar 2025: सावन का आज आखरी सोमवार है और भगवान शिव को समर्पित सावन माह के आखिरी सोमवार का विशेष महत्व होता है। इस खास अवसर पर भगवान की उपासना के लिए लोग विशेष पूजा करते हैं। जो लोग व्रत करते हैं वे उद्यापन भी कराते हैं ऐसे में आज हम आपको भगवान की पूजा की विधि बताने जा रहे है। आप आज के दिन भगवान शिव के मंदिर जाएं और शिव परिवार की विधि विधान से पूजा करे। सावन सोमवार के दिन भगवान शिव पर बेलपत्र जरूर चढ़ाएं। शाम को सोमवार की व्रत कथा सुने, फिर मीठे भोजन का सेवन कर लें। अगले दिन दोबारा भगवान की पूजा करें और अपने इच्छा के अनुरूप दान करें फिर व्रत का पारण करें ध्यान रखें कि सावन सोमवार में व्रत के समय नमक का सेवन ना करें।
पूजन विधि-
आज के दिन आप शिव मंदिर जाकर जलाभिषेक करें। यदि घर में शिवलिंग है तो घर में ही भगवान का अभिषेक करें फिर भगवान को सफेद चंदन लगाएं और उन्हें बिल्वपत्र, भांग, धतूरा अर्पित करें। भगवान की प्रतिमा के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाएं फिर सावन सोमवार की व्रत कथा का श्रवण करें और भगवान की आरती करें और उन्हे भोग लगाएं। सावन के आखरी सोमवार को सुबह शाम दोनों ही वक्त भगवान की पूजा करें।
सावन सोमवार व्रत की कथा-
स्कन्द पुराण के मुताबिक एक बार सनत कुमार नामक व्यक्ति भगवान शिव से पूछते हैं कि उन्हे सावन ही सबसे ज्यादा प्रिय क्यों हैं। तब भगवान बताते हैं कि देवी सती ने इसी माह में भगवान से विवाह करने के लिए कठीन तपस्या की थी उन्हें अपने पिता के भी विरुद्ध जाना पड़ा। विवाह के बाद माता सती ने अपने पिता के घर पर भगवान शिव का अपमान होते देखा तो अपने प्राण त्याग दिए थे। इसके बाद माता सती का जन्म पर्वत राज हिमालय की पुत्री के रूप में हुआ जिनका नाम पार्वती रखा गया और माता पार्वती ने भगवान शिव से विवाह करने के लिए सावन माह में तपस्या की। माता ने अन्न जल का भी त्याग कर दिया था। भगवान ने माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हे पत्नी के रूप में स्वीकार किया। यही वजह है कि आज भी कई लोग इस परंपरा का पालन करते हैं और अपने मनोकामना की पूर्ति के लिए सावन सोमवार का व्रत रखते हैं कुंवारी कन्याएं भी अच्छे वर की प्राप्ती के लिए सावन सोमवार का व्रत रखती हैं।
भगवान शिव की आरती-
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखत त्रिभुवन जन मोहे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघंबर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डल चक्र त्रिशूलधारी।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूरे का भोजन, भस्मी में वासा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥ स्वामी ओम जय शिव ओंकारा॥
भगवान को क्या भोग लगाएं-
भगवान शिव को आप हलवा, लस्सी, दही, शहद, दूध, भांग, पंचामृत, सफ़ेद बर्फ़ी, ठंडाई, मालपुआ, सूखा मावा समेत आदि का भोग अर्पित कर सकते हैं।