Rishi Panchami in Chattisgarh : इस दिन होती है जड़ी-बूटियों की तलाश और विशेष पूजा
Rishi Panchami in Chattisgarh : बुजुर्गों के अनुसार यह पर्व ग्रामीण अंचलों के लिए बहुत अहम है. ऋषि पंचमी के मौके पर बच्चों से लेकर महिलाएं और बुजुर्ग भी जड़ी बूटी की तलाश में भ्रमण करते हैं. ऋषि पंचमी के अवसर पर जंगल से इकट्ठा की गई जड़ी-बूटियों को भी पूजा जाता है और फिर इन्हें घर लाया जाता है.
Rishi Panchami in Chattisgarh : छत्तीसगढ़ में जहां अलग-अलग परंपरा और संस्कृति से जुड़े हुए पर्व मनाए जाते हैं. वहीं आज ग्रामीण अंचलों में ऋषि पंचमी का पर्व बड़ी ही धूमधाम से मनाया जा रहा है.
लोग गांवों से जंगलों की ओर जाएंगे जहां पर वे पूजा अर्चना कर बहुत ही बारीकियों के साथ जमीन से कंदमूल और जड़ी बूटी की खोज करेंगे. जिसका उपयोग इंसानों और मवेशियों के इलाज के लिए किया जाता है.
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी बड़े ही उत्साह के साथ मनाई जाती है. इस दिन वर्षों से सप्त ऋषियों की पूजा और व्रत करने की परंपरा चली आ रही है. इस पर्व को गुरु पंचमी और भाई पंचमी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन जो भी बहन रक्षाबंधन को अपने भाई को राखी नहीं बांध सकी वह इस दिन अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांध सकती हैं.
गुरू-शिष्य परंपरा
ऋषि पंचमी पर्व के बारे में एक ग्रामीण ने बताया कि इस दिन बैगा अपने शिष्यों को तंत्र-मंत्र सीखाता है. साथ ही प्राचीन समय में लोगों के इलाज के लिए इस दिन लाई गई जड़ी-बुटीयों का विशेष महत्व बताता है. इस कारण ग्रामीण आज भी जंगलों में जा कर परंपरा को बनाए रखे हैं
क्यों मनाई जाती है ऋषि पंचमी?
मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजन करने से सप्तऋषियों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. साथ ही यह भी मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है. महिलाओं के लिए यह व्रत काफी महत्वपूर्ण माना है. शास्त्रों के अनुसार महिलाओं को माहवारी के पहले दिन चांडालिनी, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी और तीसरे दिन धोबिन के समान अपवित्र माना जाता है. इनके बाद चौथे दिन स्नानादि के बाद वे शुद्ध होती है. इस बीच महिला द्वारा जाने-अनजाने में हुए पापों से मुक्ति पाने के लिए ऋषि पंचमी का पूजन किया जाता है.
ऐसे करें पूजा
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें. उसके बाद पूजा घर को गाय के गोबर से लीपें और यहां सप्तऋषि और देवी अरूंधती की मूर्ति या तस्वीर बनाएं. इसके बाद इस जगह पर कलश की स्थापना करें. स्थापना होने के बाद हल्दी, कुमकुम ,चंदन, पुष्प, चावल से कलश की पूजा करें. अंत में ऋषि पंचमी की कथा को सुनने के बाद सात पुरोहितों को सप्तऋषि मानकर भोजन कराएं. भोजन के बाद उन्हें दक्षिणा दें और पूजा होने के बाद गाय को भी भोजन कराएं.