Ratanpur Mahamaya Mandir: छत्तीसगढ़ में देश का दूसरा देवी मंदिर जहां एक साथ महालक्ष्मी और सरस्वती का होता है दर्शन...

Ratanpur Mahamaya Mandir: देश में सिर्फ वैष्णदेवी मंदिर में तीन देवियां एक साथ हैं...महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती। इसके बाद और एक साथ तीन देवियों का दृष्टांत नहीं है। कुछ पौराणिक कहानियों में 15वीं शताब्दी में छत्तीसगढ़ के महामाया मंदिर (Mahamaya Mandir) में तीन देवियों के होने के दावे किए जाते हैं।

Update: 2024-10-06 09:12 GMT

Ratanpur Mahamaya Mandir: बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिला मुख्यालय से 24 किलोमीटर दूरी पर रतनपुर में मां महामाया देवी (Mahamaya Mandir) का मंदिर स्थित हैं। रतनपुर को शक्तिपीठ भी कहा जाता है। इस मंदिर में एक साथ दो देवियां हैं। उपर में महालक्ष्मी और नीचे महासरस्वती। ऐसा अनूठा देवी मंदिर वैष्णव देवी मंदिर के अलावे और कहीं नहीं है। इसके अलावा देश में जितने भी देवी मंदिर हैं, सबमें एक ही देवी की प्रतिमा पाई जाती हैं।

जम्मू के कटरा से 14 किलोमीटर दूर त्रिकुटा की पहाड़ियों में स्थित गुफा में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती वास करती हैं। ये तीनों देवियों पिंड स्वरूप में हैं। इसके बाद छत्तीसगढ़ के रतनपुर महामाया मंदिर का नाम आता है, जहां एक साथ दो दो देवियां हैं....महालक्ष्मी और महासरस्वती। मंदिर के पुजारी पंडित संतोष शर्मा का कहना है कि पौराणिक चर्चाओं में रतनपुर में काली जी के होने का भी पता चलता है। बताते हैं, पंद्रहवी शताब्दी में मंदिरों में बलि प्रथा पर रोक लगाई गई तो रतनपुर के राजा बाहरेंद्र साईं ने काली मंदिर को कोलकाता में स्थातिप करा दिया। कोलकाता का मशहूर काली मंदिर को रतनपुर से जुड़ा बताया जाता है।

गिरा था माता सती का स्कंध

रायपुर। बिलासपुर जिले के रतनपुर में स्थित मां महामाया मंदिर (Mahamaya Mandir) 51 शक्तिपीठों में से एक है। रतनपुर धर्मनगरी है। रतनपुर को देवी और आस्था की नगरी के रूप में भी जाना जाता है। मंदिरो और तालाबों से भरा रतनपुर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर से 24 किलोमीटर दूर है। देवी महामाया को कोसलेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है, जो पुराने दक्षिण कोसल क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी हैं। परंपरागत रुप से महामाया रतनपुर राज्य की कुलदेवी हैं। माना जाता है कि सती की मृत्यु से व्यथित भगवान शिव उनके मृत शरीर को लेकर तांडव करते हुए ब्रह्मांड में भटकते रहे। इस समय माता के अंग जहां-जहां गिरे, वहीं शक्तिपीठ बन गए। इन्हीं स्थानों को शक्तिपीठ रूप में मान्यता मिली। महामाया मंदिर में माता का दाहिना स्कंध गिरा था। भगवान शिव ने स्वयं आविर्भूत होकर उसे कौमारी शक्ति पीठ का नाम दिया था। इसीलिए इस स्थल को माता के 51 शक्तिपीठों में शामिल किया गया। भगवान शिव ने स्वंय अविभूर्त होकर इसे कौमारी शक्तिपीठ का नाम दिया था। माना जाता है कि नवरात्र में यहां की गई पूजा कभी निष्फल नहीं होती। यहां प्रातः काल से देर रात तक भक्तों की भीड़ लगी रहती है। मंदिर के संरक्षक कालभैरव को माना जाता है, जिनका मंदिर रतनपुर शहर पहुंचने से पहले ही मंदिर के ही रास्ते पर स्थित है। यह एक लोकप्रिय धारणा है कि महामाया मंदिर (Mahamaya Mandir) जाने वाले तीर्थयात्रियों को भी अपनी तीर्थयात्रा पूरी करने के लिए कालभैरव के मंदिर जाने की आवश्यकता होती है। चैत्र और क्वांर नवरात्रि के दौरान देवी मां को प्रसन्न करने के लिए ज्योतिकलश जलाया जाता है। नवरात्रि में मां महामाया के दर्शन करने के लिए लाखों भक्त यहां आते हैं और उनकी मांगी हर मनोकामना मां पूरी होती है।

पहाड़ों की शृंखला में स्थित है मंदिर

मां महामाया मंदिर (Mahamaya Mandir) के पुजारी पंडित संतोष शर्मा के मुताबिक दुर्गा सप्तशती के साथ ही देवी पुराण में महामाया के बारे में जो कुछ लिखा है, ठीक उन्हीं रूपों के दर्शन रतनपुर में विराजी महामाया के रूप में होती है। महामाया मंदिर में शक्ति के तीनों रूप दिखाई देते हैं। तीनो रूपों में समाहित मां के स्वरूप को महामाया देवी की संज्ञा दी गई है। यहां विराजी मां महामाया देवी पहाड़ों की शृंखला में सिद्ध शक्तिपीठ विराजमान है। देवी आस्था का केंद्र रतनपुर मां महामाया मंदिर (Mahamaya Mandir) में तीनों ही देवियों की पूजा होती है। यह दुनिया एक मात्र एक ऐसा मंदिर है, जहां गर्भ गृह के नीचे महामाया यानी धन की देवी लक्ष्मी विराजमान है। वहीं उनके दाहिने तरफ ऊपर की ओर ज्ञान की देवी मां सरस्वती विराजित हैं।

गौरवशाली इतिहास

मां महामाया मंदिर (Mahamaya Mandir) के पुजारी पंडित संतोष शर्मा के मुताबिक मां महामाया देवी की पवित्र पौराणिक नगरी रतनपुर का इतिहास प्राचीन एवं गौरवशाली है। त्रिपुरी के कलचुरियों की एक शाखा ने रतनपुर को अपनी राजधानी बनाकर दीर्घकाल तक छत्तीसगढ़ में शासन किया। राजा रत्नदेव प्रथम ने मणिपुर नामक गांव को रतनपुर नाम देकर अपनी राजधानी बनाया। श्री आदिशक्ति मां महामाया देवी मंदिर का निर्माण राजा रत्नदेव प्रथम द्वारा 11वी शताब्दी में कराया गया था। कहा जाता है कि 1045 ई में राजादेव रत्नदेव प्रथम मणिपुर नामक गांव में रात्रि विश्राम एक वट वृक्ष पर किया। अर्धरात्रि में जब राजा की आंख खुली तब उन्होंने वट वृक्ष के नीचे आलौकिक प्रकाश देखा यह देखकर चमत्कृत हो गए कि वहां आदिशक्ति श्री महामाया देवी की सभा लगी हुई है। इतना देखकर वे अपनी चेतना खो बैठे। सुबह होने पर वे अपनी राजधानी तुम्मान खोल लौट गए और रतनपुर को अपनी राजधानी बनाने का निर्णय लिया और 1050 ईसवी में श्री महामाया देवी का भव्य मंदिर निर्मित कराया। देवी महामाया का पहला अभिषेक और पूजा-अर्चना उन्होंने ही 1050 में की थी। कहा जाता है कि उस स्थान पर स्थित है जहां राजा रत्नदेव ने देवी काली के दर्शन किए थे। मूल रुप से मंदिर तीन देवियों महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के लिए था। बाद में महाकाली ने पुराने मंदिर को छोड़ दिया।

बेजोड़ स्थापत्य कला

राजा बाहरेंद्र साईं द्वारा एक नया मंदिर बनाया गया था जो देवी महालक्ष्मी और देवी महासरस्वती के लिए था। बाद में मंदिर का निर्माण विक्रम संवत् 1552 में हुआ था। जिसका जीर्णोद्धार पुरातत्व विभाग द्वारा कराया गया है। मंदिर की स्थापत्य कला भी बेजोड़ है। महामाया मंदिर (Mahamaya Mandir) परिसर में कई और सहायक मंदिरों, गुंबदों, महलों और किलों के स्कोर को देख सकता है, जो कभी मंदिर और रतनपुर साम्राज्य के शाही घराने में स्थित थे। परिसर के भीतर, कांतिदेवल का मंदिर भी है, जो समूह का सबसे पुराना है और कहा जाता है कि इसे 1039 में संतोष गिरि नामक एक तपस्वी द्वारा बनवाया गया था। बाद में 15 वीं शताब्दी में कलचुरी राजा पृथ्वीदेव द्वितीय द्वारा इसका विस्तार किया गया। इसके चार द्वार हैं और उनमें सुंदर नक्काशियां हैं। इसे भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा भी पुनर्स्थापित किया गया है। मंदिर का मंडप नागर शैली में बना है और 16 स्तंभों पर टिका है। गर्भगृह में आदिशक्ति मां महामाया की साढ़े तीन फीट ऊंची प्रस्तर की भव्य प्रतिमा स्थापित है। गर्भगृह और मंडप एक आकर्षक प्रांगण के साथ किलेबंद हैं, जिसे 18 वीं शताब्दी के अंत में मराठा काल में बनाया गया था। परिसर के अंदर शिव और हनुमान जी के मंदिर भी हैं। कुछ किलोमीटर की दूरी पर प्राचीन 11 वीं शताब्दी के पुराने कड़ईडोल शिव मंदिर के अवशेष हैं, जो खंडहर हो चुके किले की एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। इसे कलचुरी शासकों द्वारा निर्मित किया गया था, जो शिव और शक्ति के अनुयायी थे।

महामाया मंदिर कॉरिडोर

रतनपुर के महामाया मंदिर (Mahamaya Mandir) को काशी विश्वनाथ कॉरिडोर और उज्जैन के महाकाल लोक की तरह विकसित किया जाएगा। इसकी योजना केंद्रीय एजेंसी बना रही है इसे लेकर अधिकारियों के साथ एक बैठक केंद्रीय राज्य मंत्री और बिलासपुर के सांसद तोखन साहू ने पिछले दिनों दिल्ली में की थी। रतनपुर का महामाया मंदिर ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। सरकार का लक्ष्य इस पवित्र स्थल को इस तरह से विकसित करना है कि इसके समृद्ध इतिहास का सम्मान हो और देश भर में इसकी छवि बढ़े। इससे राज्य में धार्मिक पर्यटन को काफी बढ़ावा मिलेगा। श्रद्धालुओं की सुविधाएं के लिए होटल, दुकानें और कई पार्किंग क्षेत्रों के साथ सड़क और आने-जाने में सुविधाएं भी बढ़ेंगी।

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