Putrada Ekadashi 2025 : संतान सुख को लेकर हैं बहुत दुखी... तो न हो निराश, साल के अंतिम दिन हो सकती है आपकी इच्छा पूरी

Putrada Ekadashi 2025 : इस बार यह एकादशी तिथि दो दिनों तक रहेगी. इसलिए कुछ लोग 30 दिसंबर को और कुछ 31 दिसंबर को व्रत रखेंगे. मान्यता है कि गृहस्थ लोग पहले दिन व्रत रखते हैं, जबकि वैष्णव संप्रदाय के लोग दूसरे दिन उपवास करते हैं.

Update: 2025-12-22 07:19 GMT

Putrada Ekadashi 2025 :  2025 के बस कुछ ही दिन शेष है. फिर हम नए वर्ष 2026 में प्रवेश कर जायेंगे. और अगर आप इस साल भी संतान सुख से वंचित है और इस विकट समस्या से परेशान है और आप संतान को लेकर लाखों जतन करके थक चुके हैं तो ये दिन आपके लिए सबसे खास है. अगर इस दिन आप सही नियम और सच्ची श्रद्धा से इस व्रत और पूजा को करते हैं तो आपकी इस समस्या का निराकरण हो जायेगा. दिसंबर के अंतिम दिन पुत्रदा एकादशी है. यह दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा के लिए समर्पित होता है. यह एकादशी संतान प्राप्ति और संतान के सुख शांति और समृद्धि के लिए किया जाता है.


इस बार यह एकादशी तिथि दो दिनों तक रहेगी. इसलिए कुछ लोग 30 दिसंबर को और कुछ 31 दिसंबर को व्रत रखेंगे. मान्यता है कि गृहस्थ लोग पहले दिन व्रत रखते हैं, जबकि वैष्णव संप्रदाय के लोग दूसरे दिन उपवास करते हैं.





 क्या है पुत्रदा एकादशी व्रत

पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है. इस दिन का विशेष महत्व है. इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है. जिन दंपतियों को संतान सुख की प्राप्ति नहीं होती है या फिर जो संतान से जुड़ी परेशानियों की समस्याओं से घिरे हैं, उनके लिए यह व्रत काफी लाभदायक साबित होता है.

यह व्रत उन सभी के लिए विशेष है, जो संतान सुख, पारिवारिक शांति और जीवन में सकारात्मक बदलाव चाहते हैं. सरल नियमों और सच्चे मन से किया गया यह व्रत भगवान विष्णु की विशेष कृपा दिलाता है. जीवन को सुखमय बनाता है.

तिथि और शुभ योग

साल 2025 में पौष पुत्रदा एकादशी का विशेष महत्व है. यह वर्ष की अंतिम एकादशी होगी. पंचांग के अनुसार, पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 30 दिसंबर 2025 को सुबह 7 बजकर 50 मिनट से शुरू होगी और 31 दिसंबर 2025 को सुबह 5 बजे समाप्त होगी.

इस बार यह व्रत दो खास शुभ योगों में पड़ रहा है. एक ओर भरणी नक्षत्र रहेगा और दूसरी ओर सिद्ध योग का संयोग बनेगा. ज्योतिष के अनुसार, यह योग पूजा, व्रत और संकल्प सिद्धि के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है.


व्रत रखने की  विधि

पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत श्रद्धा और नियम के साथ करना चाहिए. व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें. साफ वस्त्र पहनें. इसके बाद भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें. दिनभर सात्विक आचरण रखें. झूठ, क्रोध और नकारात्मक विचारों से दूर रहें. यदि संभव हो तो फलाहार करें या केवल जल ग्रहण करें. व्रत का पारण 31 दिसंबर 2025 को किया जाएगा. पारण का शुभ समय दोपहर 1 बजकर 26 मिनट से 3 बजकर 31 मिनट तक रहेगा. पारण के समय भगवान विष्णु को भोग लगाकर व्रत खोलना शुभ माना जाता है.



 



संतान प्राप्ति के लिए विशेष पूजा

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले लोगों को पौष पुत्रदा एकादशी के दिन विशेष पूजा करनी चाहिए. संध्या के समय भगवान विष्णु के बाल स्वरूप श्रीकृष्ण की पूजा करें.

पूजा में पीले फूल, पीले वस्त्र, खीर और पीले रंग की मिठाई अर्पित करें. पूजा के दौरान एकादशी व्रत कथा का पाठ करें. इसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी से संतान सुख की प्रार्थना करें.

मान्यता है कि जो दंपति इस दिन पूर्ण श्रद्धा से पूजा करते हैं. उनकी संतान प्राप्ति की इच्छा शीघ्र पूरी होती है. कहा जाता है कि एक वर्ष के भीतर शुभ परिणाम मिल जाता है.

पुत्रदा एकादशी कहानी 


महाराज युधिष्ठिर ने पूछा- हे भगवान! आपने सफला एकादशी का माहात्म्य बताकर बड़ी कृपा की। अब कृपा करके यह बतलाइए कि पौष शुक्ल एकादशी का क्या नाम है उसकी विधि क्या है और उसमें कौन-से देवता का पूजन किया जाता है।


भक्तवत्सल भगवान श्रीकृष्ण बोले- हे राजन! इस एकादशी का नाम पुत्रदा एकादशी है। इसमें भी नारायण भगवान की पूजा की जाती है। इस चर और अचर संसार में पुत्रदा एकादशी के व्रत के समान दूसरा कोई व्रत नहीं है। इसके पुण्य से मनुष्य तपस्वी, विद्वान और लक्ष्मीवान होता है। इसकी मैं एक कथा कहता हूँ सो तुम ध्यानपूर्वक सुनो।

भद्रावती नामक नगरी में सुकेतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था। उसके कोई पुत्र नहीं था। उसकी स्त्री का नाम शैव्या था। वह निपुत्री होने के कारण सदैव चिंतित रहा करती थी। राजा के पितर भी रो-रोकर पिंड लिया करते थे और सोचा करते थे कि इसके बाद हमको कौन पिंड देगा। राजा को भाई, बाँधव, धन, हाथी, घोड़े, राज्य और मंत्री इन सबमें से किसी से भी संतोष नहीं होता था।

वह सदैव यही विचार करता था कि मेरे मरने के बाद मुझको कौन पिंडदान करेगा। बिना पुत्र के पितरों और देवताओं का ऋण मैं कैसे चुका सकूँगा। जिस घर में पुत्र न हो उस घर में सदैव अँधेरा ही रहता है। इसलिए पुत्र उत्पत्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए।


जिस मनुष्य ने पुत्र का मुख देखा है, वह धन्य है। उसको इस लोक में यश और परलोक में शांति मिलती है अर्थात उनके दोनों लोक सुधर जाते हैं। पूर्व जन्म के कर्म से ही इस जन्म में पुत्र, धन आदि प्राप्त होते हैं। राजा इसी प्रकार रात-दिन चिंता में लगा रहता था।

एक समय तो राजा ने अपने शरीर को त्याग देने का निश्चय किया परंतु आत्मघात को महान पाप समझकर उसने ऐसा नहीं किया। एक दिन राजा ऐसा ही विचार करता हुआ अपने घोड़े पर चढ़कर वन को चल दिया तथा पक्षियों और वृक्षों को देखने लगा। उसने देखा कि वन में मृग, व्याघ्र, सूअर, सिंह, बंदर, सर्प आदि सब भ्रमण कर रहे हैं। हाथी अपने बच्चों और हथिनियों के बीच घूम रहा है।

इस वन में कहीं तो गीदड़ अपने कर्कश स्वर में बोल रहे हैं, कहीं उल्लू ध्वनि कर रहे हैं। वन के दृश्यों को देखकर राजा सोच-विचार में लग गया। इसी प्रकार आधा दिन बीत गया। वह सोचने लगा कि मैंने कई यज्ञ किए, ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन से तृप्त किया फिर भी मुझको दु:ख प्राप्त हुआ, क्यों?

राजा प्यास के मारे अत्यंत दु:खी हो गया और पानी की तलाश में इधर-उधर फिरने लगा। थोड़ी दूरी पर राजा ने एक सरोवर देखा। उस सरोवर में कमल खिले थे तथा सारस, हंस, मगरमच्छ आदि विहार कर रहे थे। उस सरोवर के चारों तरफ मुनियों के आश्रम बने हुए थे। उसी समय राजा के दाहिने अंग फड़कने लगे। राजा शुभ शकुन समझकर घोड़े से उतरकर मुनियों को दंडवत प्रणाम करके बैठ गया।

राजा को देखकर मुनियों ने कहा- हे राजन! हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न हैं। तुम्हारी क्या इच्छा है, सो कहो। राजा ने पूछा- महाराज आप कौन हैं, और किसलिए यहाँ आए हैं। कृपा करके बताइए। मुनि कहने लगे कि हे राजन! आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है, हम लोग विश्वदेव हैं और इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं।

यह सुनकर राजा कहने लगा कि महाराज मेरे भी कोई संतान नहीं है, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो एक पुत्र का वरदान दीजिए। मुनि बोले- हे राजन! आज पुत्रदा एकादशी है। आप अवश्य ही इसका व्रत करें, भगवान की कृपा से अवश्य ही आपके घर में पुत्र होगा।

मुनि के वचनों को सुनकर राजा ने उसी दिन एकादशी का ‍व्रत किया और द्वादशी को उसका पारण किया। इसके पश्चात मुनियों को प्रणाम करके महल में वापस आ गया। कुछ समय बीतने के बाद रानी ने गर्भ धारण किया और नौ महीने के पश्चात उनके एक पुत्र हुआ। वह राजकुमार अत्यंत शूरवीर, यशस्वी और प्रजापालक हुआ।

श्रीकृष्ण बोले- हे राजन! पुत्र की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए। जो मनुष्य इस माहात्म्य को पढ़ता या सुनता है उसे अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

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