Pitru Paksha 2025 : क्यों खिलाया जाता है पितृ पक्ष में कौवों को भोजन, श्राद्ध के अधिकारी कौन ? जानिए इसके पीछे के रहस्य
Pitru Paksha 2025 : हिन्दू पुराणों ने कौए को देवपुत्र माना है
pitru paksha me kyon khilaya jata hai kauvon ko bhojan : पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म के दौरान कौओं का बहुत महत्व होता है. इन दिनों में कौओं का महत्व काफी बढ़ जाता है और हर श्राद्ध करने वाला कौओं को भोजन कराना चाहता है, आखिर क्यों क्या आपको पता है... तो चलिए फिर ज्योतिषाचार्य डॉ दत्तात्रेय होस्केरे के अनुसार जानते हैं इसके पीछे का रहस्य.
श्राद्ध कर्म के दौरान दौरान कौओं को आमंत्रित कर उन्हें श्राद्ध का भोजन खिलाया जाता है। इसका एक कारण यह है कि हिन्दू पुराणों ने कौए को देवपुत्र माना है। एक कथा यह भी है कि, इन्द्र के पुत्र जयंत ने ही सबसे पहले कौए का रूप धारण किया था। त्रेता युग की घटना कुछ इस प्रकार है कि, जयंत ने कौऐ का रूप धर कर माता सीता को घायल कर दिया था। तब भगवान श्रीराम ने तिनके से ब्रह्मास्त्र चलाकर जयंत की आँख को क्षतिगग्रस्त कर दिया था। जयंत ने अपने कृत्य के लिये क्षमा मांगी तब राम ने उसे यह वरदान दिया की कि तुम्हें अर्पित किया गया भोजन पितरों को मिलेगा। बस तभी से श्राद्ध में कौओं को भोजन कराने की परंपरा चल पड़ी है।
श्राद्ध के अधिकारी है सभी
शास्त्रों में लिखा है कि नरक से मुक्ति पुत्र द्वारा ही मिलती है। इसलिए पुत्र को ही श्राद्ध, पिंडदान का अधिकारी माना गया है और नरक से रक्षा करने वाले पुत्र की कामना हर मनुष्य करता है।इसलिए यहां जानते हैं कि शास्त्रों के अनुसार पुत्र न होने पर कौन-कौन श्राद्ध का अधिकारी हो सकता है -
1.पिता के श्राद्ध पुत्र के द्वारा।
2.पुत्र के न होने पर पत्नी के द्वारा।
3.पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में संपिंडों के द्वारा।
4.एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राद्ध करता है।
5.पुत्री का पति एवं पुत्री का पुत्र भी श्राद्ध के अधिकारी हैं। 6.पुत्र के न होने पर पौत्र या प्रपौत्र भी श्राद्ध कर सकते हैं।
7.पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र के न होने पर विधवा स्त्री श्राद्ध कर सकती है।
8.पत्नी का श्राद्ध तभी कर सकता है, जब कोई पुत्र न हो।
9.पुत्र, पौत्र या पुत्री का पुत्र न होने पर भतीजा भी श्राद्ध कर सकता है।
10.गोद में लिया पुत्र भी श्राद्ध का अधिकारी है।
11.कोई न होने पर राजा को उसके धन से श्राद्ध करने का विधान है।