Pitra Paksha 2025 : क्या महिलाएं भी कर सकती हैं श्राद्ध कर्म, यहां करिये अपना भ्रम दूर
Shraddha Karma : गरुड़ पुराण के अनुसार बड़ा बेटा या छोटे बेटे के अभाव में बहू, पत्नी को श्राद्ध करने का अधिकार है।
Pitra Paksha 2025 : पितृ पक्ष में घर की महिलाओं का भी श्राद्ध कर्म करें सकती हैं। यह सवाल हर किसी के जेहन में होता है। तो इसका जवाब है हां. गरुड़ पुराण के अनुसार बड़ा बेटा या छोटे बेटे के अभाव में बहू, पत्नी को श्राद्ध करने का अधिकार है। इसमें सबसे बड़ी बेटी या एकमात्र पुत्री भी शामिल है। अगर घर में कोई बुजुर्ग महिला है तो युवा महिला से पहले श्राद्ध से जुड़े कार्य करने का अधिकार उसका होगा।
जानकारों के अनुसार, यदि कोई पुत्री सच्चे मन से अपने पिता का श्राद्ध करती है, तो पुत्र के न होने पर पिता उसे स्वीकार कर आशीर्वाद देते है।
मार्कंडेय पुराण के अनुसार, अगर किसी का पुत्र न हो, तो पत्नी बिना मंत्रों के श्राद्ध कर्म कर सकती है। पत्नी न हो, तो कुल के किसी भी व्यक्ति द्वारा श्राद्ध किया जा सकता है। अन्य ग्रंथों के अनुसार, अगर परिवार और कुल में कोई पुरुष न हो, तो सास का पिंडदान बहू भी कर सकती है।
वाल्मीकि रामायण में मिलता है ऐसा प्रमाण
वनवास के दौरान जब श्रीराम भगवान, लक्ष्मतण और माता सीता के साथ पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया धाम पहुंचे तो श्राद्ध के लिए कुछ सामग्री लेने के लिए नगर की ओर गए। उसी दौरान आकाशवाणी हुई कि पिंडदान का समय निकला जा रहा है। इसी के साथ माता सीता को दशरथ जी महाराज की आत्माौ के दर्शन हुए, जो उनसे पिंड दान के लिए कह रही थी। इसके बाद माता सीता ने फाल्गूए नदी, वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर फाल्गू नदी के किनारे श्री दशरथ जी महाराज का पिंडदान कर दिया। इससे उनकी प्रसन्नन होकर सीता जी को आर्शीवाद देकर चली गई।
गरुड़ पुराण में भी जिक्र
गरुड़ पुराण में भी जिक्र मिलता है। इसके श्लोक संख्या् 11, 12, 13 और 14 में इसका जिक्र किया गया है कि कौन-कौन श्राद्ध कर सकता है। ‘पुत्राभावे वधु कूर्यात, भार्याभावे च सोदन:। शिष्यों वा ब्राह्म्णे: सपिण्डोक वा समाचरेत।। ज्येौष्ठरस्यं वा कनिष्ठवस्यि भ्रातृ: पुत्रश्च।: पौत्रके। श्राध्या मात्रदिकम कार्य पुत्रहीनेत खग:।।
इस श्लोक के मुताबिक ज्येष्ठ या कनिष्ठय पुत्र के अभाव में बहू, पत्नीस को श्राद्ध करने का अधिकार है। इसमें ज्येभष्ठ् पुत्री या एक मात्र पुत्री भी शामिल है। यदि पत्नी जीवित न हो तो सगा भाई या भतीजा, भांजा, नाती, पोता भी श्राद्ध कर सकते हैं। इन सबके अभाव में शिष्यी, मित्र, कोई रिश्तेगदार या फिर कुलपुरोहित मृतक का श्राद्ध कर सकता है। यानी कि परिवार के पुरुष सदस्यब के अभाव में कोई भी महिला सदस्यद पितरों का श्राद्ध तर्पण कर सकती है।
महिलाएं श्राद्ध कर्म करते समय कुछ विशेष बातों का ध्यान रखें
जानकारों के अनुसार महिलाएं श्राद्ध कर्म करते समय कुछ विशेष बातों का ध्यान रखें। श्राद्ध करते समय महिलाएं केवल सफेद अथवा पीले सादे वस्त्र धारण करके ही श्राद्ध कर्म करें। क्योंकि सफेद शांति का और पीला रंग वैराग्य का प्रतीक है। श्राद्ध करते समय कुश और जल के साथ तर्पण न करें। साथ ही काले तिल से भी तर्पण न करें। ऐसा करने का महिलाओं को अधिकार नहीं है। ध्याऔन रखें कि केवल विवाहित महिलाएं ही श्राद्ध करने की पात्र हैं। यदि पूर्वजों की तिथि याद नहीं है तो बच्चे का पंचमी को, बुजुर्ग महिला और पुरुष का नवमी को श्राद्ध किया जा सकता है।
इनका भी रखना होगा खास ख्याल
अगर किसी वजह से आप श्राद्ध करना भूल जाते हैं पितृ विसर्जनी अमावस्या के दिन श्राद्ध करने से सभी पितृों का भोज हो जाता है। तर्पण का जल सूर्योदय से आधे प्रहर तक अमृत, एक प्रहर तक मधु, डेढ़ प्रहर तक दूध, साढ़े तीन प्रहर तक जल रूप में पितृ को प्राप्त होता है। श्राद्ध में तिल और कुश सहित जल हाथ में लेकर अंगूठे की ओर से धरती में छोड़ने से पितरों को तृप्ति मिलती है।