Pind Daan at Gaya: गया में पिंडदान क्यों दिलाता है 7 पीढ़ियों को मोक्ष? जानिए पिंडदान की शुरुआत कब और किसने की?

Pind Daan Tradition in Gaya Bihar: बिहार राज्य का गया जिला, जिसे श्रद्धा और सम्मान से 'गयाजी' कहा जाता है, धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस स्थान को पवित्र तीर्थस्थल के रूप में जाना जाता है, जहाँ देश और विदेश से श्रद्धालु अपने पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए पिंडदान करने आते हैं।

Update: 2025-07-26 03:06 GMT

Pind Daan Tradition in Gaya Bihar: बिहार राज्य का गया जिला, जिसे श्रद्धा और सम्मान से 'गयाजी' कहा जाता है, धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस स्थान को पवित्र तीर्थस्थल के रूप में जाना जाता है, जहाँ देश और विदेश से श्रद्धालु अपने पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए पिंडदान करने आते हैं। गयाजी की पावन भूमि पर मंदिरों की भरमार है, जिनमें स्थापित मूर्तियां और स्थापत्य प्राचीन काल की धरोहर मानी जाती हैं। मान्यता है कि इसी भूमि पर भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण ने अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान किया था। तभी से गयाजी में पिंडदान करने की परंपरा शुरू हुई और आज भी यह परंपरा श्रद्धा से निभाई जाती है।

पितरों की मुक्ति के लिए क्यों होता है पिंडदान

हिंदू धर्म में यह विश्वास गहराई से जुड़ा है कि पिंडदान से आत्मा को मुक्ति मिलती है और उसे स्वर्ग प्राप्त होता है। खासकर गयाजी में पिंडदान करने की विशेष महत्ता इसलिए है क्योंकि यहां पितरों की आत्मा की शांति और 108 कुलों का उद्धार होने की मान्यता है। इस स्थान पर किया गया पिंडदान सात पीढ़ियों तक के पूर्वजों को मोक्ष प्रदान कर सकता है। इसलिए देश ही नहीं, विदेशों से भी लोग यहां आकर अपने पितरों के निमित्त श्रद्धा से तर्पण व पिंडदान करते हैं।

जानिए पिंडदान की शुरुआत कब और किसने की

गरुड़ पुराण और कई अन्य धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि गयाजी में पिंडदान की शुरुआत त्रेता युग में भगवान श्रीराम द्वारा की गई थी। भगवान राम माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ गयाजी आए और अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान इस स्थान पर किया। तब से इस स्थान को 'पितृतीर्थ' के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। मान्यता है कि भगवान विष्णु स्वयं इस तीर्थस्थान पर पितृदेवता के रूप में विराजमान हैं और इसी कारण गयाजी में पिंडदान को विशेष धार्मिक मान्यता प्राप्त है।

गया में पिंडदान से मिलता है सात पीढ़ियों को मोक्ष

गया में पिंडदान करने से 108 कुलों का उद्धार होता है, यह मान्यता लोगों के आस्था का केंद्र है। मान्यता यह भी है कि इस प्रक्रिया से सात पीढ़ियों के पितृ आत्माओं को मोक्ष प्राप्त होता है और वे स्वर्ग को प्राप्त करते हैं। पिंडदान के दौरान तर्पण, जल अर्पण और श्राद्ध की विधियां भी की जाती हैं, जो आत्मा की शांति के लिए अत्यंत आवश्यक मानी जाती हैं।

पितृपक्ष में होती है विशेष भीड़

भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष के 15 दिनों को पितृपक्ष कहा जाता है। इस दौरान विशेष रूप से लोग गयाजी में पिंडदान करने आते हैं। इन 15 दिनों को श्राद्ध के लिए सर्वोत्तम समय माना जाता है, जब पितरों की आत्मा को पिंडदान, तर्पण व श्रद्धांजलि देकर मुक्ति दिलाई जा सकती है। यही कारण है कि पितृपक्ष में गयाजी श्रद्धालुओं से भर जाता है। गया में हर वर्ष पितृपक्ष के दौरान भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जिसे 'पितृपक्ष मेला' के नाम से जाना जाता है।

गया की धार्मिक महत्ता

गया न केवल पिंडदान के लिए बल्कि धार्मिक पर्यटन के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी, ब्रह्मयोनि और प्रेतशिला जैसे स्थान अत्यंत पूजनीय माने जाते हैं। विष्णुपद मंदिर में भगवान विष्णु के पदचिह्न आज भी दर्शनार्थियों के लिए खुले रहते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर स्वयं विष्णु भगवान ने पिंडदान की प्रक्रिया को स्वीकृति दी थी, जिससे यह क्षेत्र पितृ कार्यों के लिए सर्वोत्तम बन गया।

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