Phulera in Hartalika Teej 2024 : फुलेरा बिना "हरितालिका तीज" की पूजा अधूरी... फुलेरा और भगवान शंकर की पुत्रियों के बीच क्या है कनेक्शन

हरितालिका तीज व्रत के नियमों के साथ ही इस दिन पूजा के समय फुलेरा बांधने का भी महत्व होता है। फुलेरा को पांच तरह के फूलों से बनाया जाता है। फुलेरा में बांधी जाने वाली 5 फूलों की मालाएं भगवान शंकर की पांच पुत्रियों (जया, विषहरा, शामिलबारी, देव और दोतली) का प्रतीक है।

Update: 2024-08-30 09:31 GMT

Phulera in Hartalika Teej : अखंड सौभाग्य और सुहाग के प्रतीक ‘हरतालिका तीज’ (Hartalika Teej 2024) का पावन पर्व और व्रत 06 सितम्बर को है । जिसका हिंदू धर्म में विशेष महत्व है।  हरतालिका तीज (Hartalika Teej) के दिन सौभाग्यवती माताएं और बहनें शिव पूजन के लिए फुलेरा (Phulera) बनाती है। फुलेरा बांस की लकड़ियों से बनाया जाता है। इसे बनाने के लिए कटर, टेप, धागा और फूल आदि की आवश्यकता पड़ती है।

हरितालिका व्रत में फूलों की शीतलता इनकी भीनी खुशबू वातावरण को शुद्ध और पवित्र बनाए रखती है। इस पर्व में फुलेरा का बहुत ही महत्व है। आदिकाल से यह परंपरा बनी हुई है। माता पार्वती (Maa Parvati) ने भी अनादि शंकर की प्राप्ति के लिए अनेक सुंदर रंगों के पुष्पों से भगवान शिव को प्रसन्न किया था। फुलेरा को पांच तरह के फूलों से बनाया जाता है। फुलेरा में बांधी जाने वाली 5 फूलों की मालाएं भगवान शंकर की पांच पुत्रियों (जया, विषहरा, शामिलबारी, देव और दोतली) का प्रतीक है।

महिलाएं विभिन्न रंगों का आकर्षक और मनोरम फुलेरा (beautiful phulera) बनाती हैं और घर के चारों ओर पूजा स्थल के साथ-साथ अन्य जगहों पर लगाती हैं। 


इसलिए बांधा जाता है हरतालिका तीज पर ‘फुलेरा’



ज्योतिषियों के अनुसार, हरतालिका तीज में पूजा करते समय फुलेरा का काफी महत्व है। पूजा के दौरान भगवान शिव के ऊपर जलधारा की जगह फुलेरा बांधा जाता है। फुलेरा को पांच तरह के फूलों से बनाया जाता है। फुलेरा में बांधी जाने वाली 5 फूलों की मालाएं भगवान शंकर की पांच पुत्रियों (जया, विषहरा, शामिलबारी, देव और दोतली) का प्रतीक है।

मां पार्वती ने किया था सबसे पहले हरतालिका तीज व्रत

मान्यताओं के अनुसार, मां पार्वती ने सबसे पहले हरतालिका तीज व्रत किया था। इस व्रत के दौरान मां पार्वती ने अन्न और जल का त्याग किया था। मत पार्वती के इस कठिन तप से प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने उन्हें दर्शन दिए और उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। तभी से मनचाहे वर की कामना और अखंड सौभाग्य के लिए महिलाएं हरतालिका तीज का व्रत रखती है।

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