नारी रुप में हनुमानजी: छत्तीसगढ़ में दुनिया का इकलौता हनुमान मंदिर, जहां नारी रुप में होती है संकट मोचक की पूजा...

Nari Rup Mein Hanumanji: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में रतनपुर के पास स्थित गिरजाबन हनुमान जी देश के इकलौते ऐसे हनुमान जी है जो देवी के रूप में भक्तों को दर्शन देते है। बजरंबली ने देवी के रूप में अहिरावण का वध किया था। हनुमान चालीसा की “ जपत निरंतर हनुमत बीरा, नासै रोग हरै सब पीरा“ चौपाई इसी मंदिर पर आधारित है।

Update: 2024-04-23 16:19 GMT

Nari Rup Mein Hanumanji

Nari Rup Mein Hanumanji: बिलासपुर। आज देश भर में हनुमान जयंती की धूम मची हुई है। भक्त बजरंगबली के दर्शनों के लिए मंदिरों में लंबी लाइन लगाए हुए हैं। जिसमें एक मंदिर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के रतनपुर में महामाया मंदिर के पास स्थित गिरजाबन हनुमान मंदिर भी है। यह मंदिर गिरजाबन हनुमान मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। मान्यता है कि देशभर में यह इकलौता मंदिर है जिसमें बजरंगबली देवी के स्वरूप में पूजे जाते हैं और नारी रूप में अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। मंदिर के पास स्थित तालाब में नहा कर पूजा अर्चना करने से कोढ़ जैसी भयानक बीमारी भी ठीक हो जाती है। आइए जानते है मंदिर के बारे में ...

बिलासपुर के आसपास प्राचीन वैभव समेटे हुए कई पुरातात्विक महत्व के धरोहर हैं तो रतनपुर में प्रसिद्ध सिद्ध शक्तिपीठ मां महामाया का मंदिर है। महामाया मंदिर से लगे करीब एक किलोमीटर आगे कोरबा रोड पर गिरिजाबंध सिद्ध पीठ हनुमान जी का मंदिर है। दक्षिणमुखी हनुमानजी की प्रतिमा में ऐसी अलौकिक है कि लोग उन्हें देखते ही खो जाते हैं।

1100 साल पुराना मंदिर

रतनपुर महामाया मंदिर के पं0 संतोष शर्मा बताते हैं कि 13वीं शताब्दी में कल्चुरी राजवंश के राजा पृथ्वीपाल ने हनुमान मंदिर का निर्माण कराया था। याने 1100 साल प्राचीन मंदिर है गिरिजाबंध हनुमान मंदिर।

गिरिजाबंध नाम क्यों?

सिद्ध पीठ हनुमान मंदिर के अगल-बगल गिरिजा नाम का तालाब है। तालाब के बीच बांध पर यह मंदिर स्थित है। इसलिए गिरिजाबंध हनुमान मंदिर नाम पड़ा। हालांकि, बोलचाल में लोग अब गिरिजावन बोलने लगे हैं।

दर्शन मात्र से संकट दूर

गिरिजाबंध मंदिर में दक्षिणमुखी हनुमान जी की ऐसी जीवंत प्रतिमा है कि लोग सामने खड़े होकर सब कुछ भूल जाते हैं। लोगों की मान्यता है कि इस मंदिर में बजरंग बली के दर्शन से सारे कष्टों का निवारण होता है।

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में रतनपुर महामाया मंदिर से कोरबा जाने वाले मुख्य मार्ग पर सड़क से थोड़े ही अंदर भगवान हनुमान जी की मूर्ति विराजित है यह मंदिर गिरजा वन के नाम से प्रसिद्ध है। इसकी स्थापना करीबन 1100 साल पहले हुई थी। तब छत्तीसगढ़ को दक्षिण कोशल के नाम से जाना जाता था। और दक्षिण कोशल की राजधानी रतनपुर हुआ करती थी। ज्ञात हो कि भगवान राम की मां कौशल्या दक्षिण कोशल की ही राजकुमारी थी। इस नाते से छत्तीसगढ़ के लोग भगवान राम को अपना भांजा मानते हैं।

दक्षिण कोशल के राजा रत्नदेव देव थे। उनके पुत्र पृथ्वी देव को कोढ़ जैसी गंभीर व फैलने वाली बीमारी ने जकड़ रखा था। काफी वैद्यों से इलाज करवाने के बाद भी यह बीमारी ठीक नहीं हो रही थी। पृथ्वी देव को स्वप्न में एक रात हनुमान जी ने दर्शन दिए। उन्होंने पृथ्वी देव को बताया कि मां महामाया मंदिर में जो कुंड है। उस कुंड के अंदर उनकी मूर्ति है। कुंड के अंदर से मूर्ति को निकालकर स्थापित करने और मंदिर के ठीक पीछे तालाब खुद कर उसमें स्नान करने के लिए पृथ्वी देव को आदेशित किया। सुबह नींद खुलने पर पृथ्वी देव ने कुंड में जब मूर्ति तलाश करवाई तब उन्हें सच में देवी स्वरूप में बजरंगबली की मूर्ति मिली। उसे स्थापित करने के लिए 10 जगहों पर प्रयास किया गया पर मूर्ति हर बार उस जगह टिकती नहीं थी। 11वीं जगह गिरजावन के घने जंगलों में मूर्ति स्थापित हो सकी। जहां मंदिर बनाकर गिरजा नामक वन होने के चलते मंदिर का नामकरण गिरजावन हनुमान मंदिर किया गया। आगे चलकर यहां गिरजावन नामक गांव भी बसा।

तालाब में स्नान से रोग दूर

मंदिर के ठीक पीछे रानी गिरजावती ने राजा के लिए तालाब भी खुदवाया था। कोड ग्रस्त राजा पृथ्वी देव ने जब इस तालाब में स्नान कर हनुमान जी के दर्शन किए तब राजा का कोढ़ चमत्कारिक ढंग से एकाएक समाप्त हो गया। तब से यह मान्यता चली आ रही है कि जो भी भक्ति 21 मंगलवार को इस तालाब में स्नान कर गीले कपड़ों में हनुमान जी के दर्शन करने आता है उसके रोग और कष्ट दूर हो जाते हैं। साथ ही सारी मनोकामना भी पूरी हो जाती है। तुलसीदास द्वारा रची गई हनुमान चालीसा की चौपाई “ जपत निरंतर हनुमत बीरा, नासै रोग हरै सब पीरा“ इसी पौराणिक मंदिर व तालाब से जुड़ी है। जिसके महत्व को देखते हुए तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा में स्थान दिया था।

अहिरावण का वध...

रतनपुर के पं0 संतोष शर्मा बताते हैं, रामायण में प्रसंग है, भगवान राम-लक्ष्मण को पाताललोक का राजा अहिरावण ने छलपूर्वक अपहरण कर लिया था। राम लक्ष्मण को ढूंढते हुए हनुमान जी पाताल लोक पहुंचे तब अहिरावण अपनी कुल देवी कामदा देवी के सामने राम लक्ष्मण की बलि चढ़ाना चाहता था। वह वाली चढ़ाने ही वाला था कि हनुमान जी ने कामदा देवी की मूर्ति में प्रवेश कर लिया। जैसे ही अहिरावण बली चढ़ाने से पहले देवी के चरणों में आशीर्वाद लेने के लिए झुका तब बजरंगबली ने अहिरावण को अपने बाएं पैर से दबाकर उसका वध कर दिया। फिर बजरंगबली ने महिरावण का भी वध कर रामदृ लक्ष्मण को अपने दोनों कंधो में बैठा वापस ले आए। उस दिन से उन्हें देवी स्वरूप मिला।

नारी रुप में पूजा

विश्व में हनुमानजी का यह ऐसा इकलौता स्वयंभू मंदिर है, जिसमें हनुमान जी को देवी स्वरूप में पूजा जाता है। दाएं हाथ की तरफ हनुमान जी को पुरुष रूप में पूजा जाता है क्योंकि इस तरफ का भाग पुरुष जैसा है। जबकि बाएं हाथ में हनुमान जी को देवी के रूप में पूजा जाता है। मूर्ति के बाएं हाथ की तरफ हनुमान जी के गले में देवी की माला, कलाई में देवी का चूड़ा, पैरों में भी चूड़ा है और हनुमान जी देवी की मुद्रा है।

Tags:    

Similar News