NPG डेस्क। साल 2023 में मकर संक्रांति 15 जनवरी को पड़ रही है। मकर संक्रांति की तिथि का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। इस दिन लोग पवित्र नदियो में स्नान और दान करते हैं। साल 2023 में मकर संक्रांति पर सूर्य 14 जनवरी 2023 की रात 08. 21 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। ऐसे में साल 2023 में मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा।
मकर संक्रांति शुभ मुहूर्त
इस साल 15 जनवरी 2023 को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन मकर संक्रांति का पुण्य काल सुबह 07.15 मिनट पर शुरू होगा, जो शाम 07 .46 मिनट पर पूरा होगा। मकर संक्रांति 2023 में एक खास संयोग भी बन रहा है। इस बार 14 जनवरी को सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेंगे और मकर राशि में पहले से ही बुध व शनि ग्रह हैं, ऐसे में इसका राशियों पर भी विशेष प्रभाव पड़ेगा।
मकर संक्रांति 2023 का शुभ काल- 15 जनवरी
संक्रांति काल - 8:49 PM (15 जनवरी 2023)
पुण्यकाल - 07:15 मिनट से
महापुण्य काल - 07:46 मिनट तक
संक्रांति स्नान - 14:12 15 जनवरी 2023
तिथि-सप्तमी तिथि 07:23 PM तक उपरांत अष्टमी
नक्षत्र-हस्त 06:14 PM तक उपरांत चित्रा
मकर संक्रांति का महत्व
सूर्य 14 तारीख से 1 माह के लिए पुत्र शनि के साथ रहेंगे। इस दिन को संक्रांति काल कहते हैं। इस दिन से उत्तरायण शुरू हो जाता है। मकर संक्राति के कई नाम से जाना जाता है। जैसे खिचड़ी, दही चुरा, पोंगल, बिहू, लोहड़ी और ओणम पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण तक इस रूप में मनाते हैं। धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी दान करने से घर में सुख और शांति आती है। इस दिन गुड़ और तिल दान करने से कुंडली में सूर्य और शनि की स्थिति से शांति मिलती है। शनि की साढ़े साती से प्रभावित लोगों को इस दिन तांबे के बर्तन में काले तिल को भरकर किसी गरीब को दान करना चाहिए। मकर संक्रांति के दिन नमक का दान करने से भी शुभ लाभ होता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन का गाय के दूध से बने घी का दान करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। मकर संक्रांति के दिन अनाज दान करने से मां अन्नपूर्णा प्रसन्न रहती हैं।
इस साल 2023 की मकर संक्रांति खास इस लिए भी है कि सूर्य और शनि बुध-रहेंगे, इससे सभी राशियों में बदलाव आएगा। इस दिन भगवान सूर्य और शनि की पूजा और गायत्री मंत्र और सूर्य मंत्र का जाप करते हैं। मकर संक्राति के कई नाम से जाना जाता है। जैसे खिचड़ी , दही चुरा, पोंगल, बिहू, लोहड़ी और ओणम पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण तक इस रूप में मनाते हैं।