Mahakal Bhasma Aarti Live : उज्जैन से लाइव : साल के आखिरी रविवार को महाकाल के दरबार में उमड़ा आस्था का सैलाब; दिव्य श्रृंगार और भस्म आरती से मंत्रमुग्ध हुए श्रद्धालु
अवंतिका नगरी उज्जैन में आज साल के अंतिम रविवार को बाबा महाकाल के दरबार में अद्भुत और अलौकिक दृश्य देखने को मिला।
Mahakal Bhasma Aarti Live : उज्जैन से लाइव : साल के आखिरी रविवार को महाकाल के दरबार में उमड़ा आस्था का सैलाब; दिव्य श्रृंगार और भस्म आरती से मंत्रमुग्ध हुए श्रद्धालु
Mahakal Bhasma Aarti 28 December 2025 : उज्जैन | 28 दिसंबर 2025 : अवंतिका नगरी उज्जैन में आज साल के अंतिम रविवार को बाबा महाकाल के दरबार में अद्भुत और अलौकिक दृश्य देखने को मिला। कड़ाके की ठंड के बावजूद, हजारों की संख्या में श्रद्धालु सुबह होने वाली विश्व प्रसिद्ध भस्म आरती में शामिल होने के लिए घंटों पहले ही कतारों में लग गए थे। मंदिर के पट खुलते ही जय श्री महाकाल के उद्घोष से पूरा परिसर गुंजायमान हो गया। आज बाबा का विशेष श्रृंगार किया गया, जिसमें उन्हें पंचामृत अभिषेक के बाद सूखे मेवों और भांग से दिव्य रूप दिया गया।
Mahakal Bhasma Aarti 28 December 2025 : भस्म आरती के दौरान महानिर्वाणी अखाड़े की ओर से बाबा को ताजी भस्म अर्पित की गई। आरती की लौ और डमरूओं की गूंज ने भक्तों को भाव-विभोर कर दिया। प्रशासन द्वारा श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए सुरक्षा और दर्शन के पुख्ता इंतजाम किए गए थे। चूंकि यह साल का आखिरी रविवार है, इसलिए स्थानीय और बाहरी पर्यटकों की संख्या में सामान्य दिनों के मुकाबले काफी बढ़ोतरी देखी गई।
दिनभर होने वाली अन्य प्रमुख आरतियाँ
महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती के बाद भी भक्ति का सिलसिला थमता नहीं है। भस्म आरती के समापन के पश्चात नवेद्य आरती का समय होता है, जो आमतौर पर सुबह 07:30 से 08:15 के बीच संपन्न की जाती है। इस आरती का मुख्य उद्देश्य भगवान को सुबह का नैवेद्य (भोग) अर्पित करना होता है। पुजारी इस दौरान विशेष मंत्रोच्चार के साथ बाबा महाकाल की आराधना करते हैं, जिससे मंदिर का वातावरण पूरी तरह शुद्ध और ऊर्जावान हो जाता है।
इसके बाद दोपहर के समय भोग आरती का आयोजन होता है, जिसका समय सुबह 10:30 से 11:15 तक रहता है। यह दिन की मुख्य मध्याह्न आरती मानी जाती है। इस समय बाबा महाकाल का विशेष राजसी श्रृंगार किया जाता है, जो देखने लायक होता है। भक्तों के लिए यह समय बहुत खास होता है क्योंकि इस दौरान भगवान अपने पूर्ण वैभवशाली रूप में नजर आते हैं। दोपहर की इस आरती के साथ ही मंदिर में अन्नक्षेत्र के माध्यम से प्रसाद वितरण की प्रक्रिया भी सुचारू रूप से चलती है।
शाम ढलते ही मंदिर में संध्या पूजा और आरती का दौर शुरू होता है। शाम 05:00 से 05:45 के बीच होने वाली संध्या पूजा बहुत ही शांत और आध्यात्मिक होती है, जो सूर्यास्त के समय मन को सुकून देती है। ठीक इसके बाद, शाम 06:30 से 07:15 के बीच मुख्य संध्या आरती का आयोजन होता है। यह वह समय होता है जब पूरा मंदिर परिसर झालर, शंख और मंजीरों की ध्वनि से गूंज उठता है। भारी संख्या में श्रद्धालु इस भव्य दृश्य के साक्षी बनते हैं। अंत में, दिन के समापन पर रात 10:30 बजे शयन आरती की जाती है, जिसमें बाबा को अत्यंत सौम्य भाव से विश्राम कराया जाता है और इसके बाद मंदिर के पट अगले दिन तक के लिए बंद कर दिए जाते हैं।
श्रद्धालुओं के लिए विशेष जानकारी
आज 28 दिसंबर होने के कारण नए साल की छुट्टियों की भीड़ शुरू हो चुकी है। यदि आप मंदिर जा रहे हैं, तो ध्यान रखें कि भगवान के दर्शन के लिए ऑनलाइन बुकिंग या 'चलो ऐप' का उपयोग करना सुविधाजनक रहेगा। मंदिर परिसर में मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स ले जाना वर्जित है, इसलिए उन्हें क्लॉक रूम में जमा करना न भूलें।
बाबा महाकाल की महिमा और भस्म का रहस्य
उज्जैन के अधिपति भगवान महाकालेश्वर की महिमा शब्दों की सीमा से परे है। उन्हें 'काल का भी काल' कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि जो समय और मृत्यु के चक्र से परे है, वह महाकाल है। आज 28 दिसंबर 2025 की सुबह जब भस्म आरती का शंखनाद हुआ, तो वह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के शाश्वत सत्य का साक्षात्कार था। मान्यता है कि जो व्यक्ति महाकाल के दरबार में शीश नवाता है, उसके जीवन से अकाल मृत्यु का भय सदा के लिए समाप्त हो जाता है।
भस्म आरती: पंचतत्वों का मिलन महाकाल मंदिर की भस्म आरती विश्व का एकमात्र ऐसा अनुष्ठान है जहाँ महादेव को श्मशान की भस्म से जगाया जाता है। आध्यात्मिक दृष्टि से भस्म 'वैराग्य' और 'पवित्रता' का प्रतीक है। यह हमें याद दिलाती है कि यह शरीर नश्वर है और अंत में मिट्टी में ही मिल जाना है, परंतु आत्मा अजर-अमर है। आज की आरती में ताजी भस्म का अर्पण इस बात का संकेत था कि नया साल आने से पहले हम अपने भीतर के विकारों और पुराने अहंकार को भस्म कर एक नई चेतना के साथ आगे बढ़ें।
अवंतिका का केंद्र और ब्रह्मांडीय ऊर्जा वैज्ञानिक और ज्योतिषीय दृष्टि से उज्जैन (अवंतिका) को पृथ्वी का नाभि केंद्र माना गया है। प्राचीन काल से ही यहीं से 'शून्य' की गणना और काल (समय) का निर्धारण होता आया है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग दक्षिणमुखी है, जिसे 'तांत्रिक साधना' और 'मुक्ति' के लिए सर्वोच्च माना जाता है। आज जब हजारों भक्तों ने एक साथ 'ओम नमः शिवाय' का जाप किया, तो उस सामूहिक ऊर्जा ने पूरे परिसर को एक दिव्य शक्ति पुंज में बदल दिया।
आस्था का महाकुंभ और मनोवैज्ञानिक शांति आज की भीड़ केवल पर्यटकों की नहीं, बल्कि उन विश्वासियों की थी जो अपनी साल भर की थकान और तनाव को बाबा के चरणों में छोड़ने आए थे। मनोविज्ञान कहता है कि महाकाल की आरती के दौरान बजने वाले डमरू और झालरों की ध्वनि तरंगें मस्तिष्क की कोशिकाओं को पुनर्जीवित करती हैं, जिससे मानसिक शांति का अनुभव होता है। बाबा का वह दिव्य स्वरूप, जिसमें वे कभी निराकार तो कभी साकार रूप में दर्शन देते हैं, भक्तों को यह भरोसा दिलाता है कि संसार के हर संकट का समाधान 'महाकाल' के पास है।
अंततः, महाकाल की यह महिमा ही है जो युगों-युगों से इस धरा को ऊर्जावान बनाए हुए है। आज की भस्म आरती केवल एक शुरुआत है, जो भक्तों को आने वाले नए साल के लिए नई शक्ति और सकारात्मकता प्रदान करती है।