Mahakal Bhasma Aarti Live : त्रिकालदर्शी महाकाल का अलौकिक श्रृंगार, भस्म आरती में उमड़ी भक्तों की भारी भीड़, लाइव दर्शन यहां
Mahakal Bhasma Aarti Live : आज, 15 दिसंबर 2025, सोमवार के दिन, भगवान शिव को समर्पित यह दिन उज्जैन के श्री महाकालेश्वर मंदिर में एक विशेष उत्साह और भक्ति के साथ शुरू हुआ।
Mahakal Bhasma Aarti Live : त्रिकालदर्शी महाकाल का अलौकिक श्रृंगार, भस्म आरती में उमड़ी भक्तों की भारी भीड़, लाइव दर्शन यहां
Mahakal Bhasma Aarti Live : उज्जैन | आज, 15 दिसंबर 2025, सोमवार के दिन, भगवान शिव को समर्पित यह दिन उज्जैन के श्री महाकालेश्वर मंदिर में एक विशेष उत्साह और भक्ति के साथ शुरू हुआ। शीतकाल के प्रभाव को देखते हुए, बाबा महाकाल को प्रातःकाल में गर्म जल से स्नान कराया गया। इसके बाद, पुजारियों के समूह ने वैदिक मंत्रों के उच्चारण के साथ बाबा का पंचामृत अभिषेक किया, जिसमें दूध, दही, घी, शहद और शक्कर का प्रयोग किया गया। यह अभिषेक न केवल परंपरा का हिस्सा है, बल्कि यह बाबा को प्रकृति के हर विकार से बचाने का प्रतीक भी माना जाता है। इस दौरान, मंदिर का पूरा वातावरण "जय महाकाल" के जयकारों और शंख-डमरू की ध्वनि से गूँज उठा, जिसने भक्तों को एक गहन आध्यात्मिक अनुभव प्रदान किया।
Mahakal Bhasma Aarti Live : अभिषेक के पश्चात, बाबा महाकाल का दिव्य श्रृंगार आरंभ हुआ, जिसकी प्रतीक्षा में देश-विदेश से आए श्रद्धालु कतारबद्ध थे। आज सोमवार होने के कारण, बाबा को विशेष रूप से चंदन और भांग से आकर्षक रूप दिया गया। उनके माथे पर त्रिपुंड लगाया गया और उन्हें सुगंधित इत्र से लेपित किया गया, जिससे मंदिर परिसर में एक मनमोहक महक फैल गई। इस श्रृंगार में, विविध रंगों के ताजे फूलों, बिल्व पत्रों और रुद्राक्ष की मालाओं का प्रयोग किया गया। विशेषकर, आज उन्हें स्वर्ण (सोने) और रजत (चांदी) के आभूषणों से सजाया गया, जिसमें सर्प कुंडल और मुकुट प्रमुख थे, जिससे बाबा का स्वरूप अत्यंत भव्य और राजसी प्रतीत हो रहा था। यह श्रृंगार इस बात का प्रतीक है कि बाबा महाकाल तीनों लोकों के स्वामी हैं।
श्रृंगार के तुरंत बाद, विश्व प्रसिद्ध भस्म आरती का मुख्य अनुष्ठान शुरू हुआ। मंदिर के कपाट खुलने से पहले ही, सैकड़ों की संख्या में भक्तगण इस अलौकिक दृश्य को देखने के लिए अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे। भस्म आरती के समय, जब नंदी हॉल में जयकारे गूँजे और पवित्र भस्म से बाबा का मस्तक और पूरा विग्रह ढँक दिया गया, तो वातावरण में एक क्षणिक सन्नाटा छा गया, जिसके बाद भक्तों की आँखें नम हो गईं। यह भस्म आरती शिव के वैराग्य और जीवन-मृत्यु के चक्र का सार प्रस्तुत करती है, जो भक्तों को मोक्ष का संदेश देती है।
आज दिनभर की गतिविधियां और आगामी अनुष्ठान
भस्म आरती के समापन के बाद, मंदिर में दिनभर के अन्य अनुष्ठान शुरू हो गए। महाकाल के दर्शन के लिए दिनभर लाखों भक्तों की आवाजाही जारी रहेगी। सुबह 10:30 बजे पर भगवान को भोग लगाया जाएगा, जिसके बाद उनकी नियमित आरती होगी। दोपहर 12:00 बजे से मंदिर के पट सामान्य दर्शनार्थियों के लिए निरंतर खुले रहेंगे। शाम होते ही, संध्या पूजन का क्रम शुरू होगा, जिसके बाद शाम 7:30 बजे भव्य संध्या आरती होगी, जो दिन के अंतिम प्रमुख अनुष्ठानों में से एक है। अंत में, रात 10:30 बजे शयन आरती के बाद मंदिर के पट बंद कर दिए जाएंगे, जिससे दिनभर के अनुष्ठानों का समापन होगा। मंदिर प्रबंधन ने सभी भक्तों से अपील की है कि वे मंदिर परिसर में शांति और व्यवस्था बनाए रखें। आज का दिन शिव भक्ति में लीन रहने के लिए अत्यंत शुभ माना गया है
भगवान भोलेनाथ की पूजा का आध्यात्मिक महत्व
भगवान भोलेनाथ, जिन्हें शिव के नाम से जाना जाता है, हिंदू धर्म में त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) में संहार के देवता माने जाते हैं। उनकी पूजा का महत्व अत्यंत गहरा और बहुआयामी है। शिव को आदिगुरु, महायोगी, और काल के नियंत्रक के रूप में पूजा जाता है। उनकी पूजा करने से व्यक्ति को मोक्ष (मुक्ति), शांति, और मन की स्थिरता प्राप्त होती है। शिव को सरल और सहज देवता माना जाता है, जो केवल एक लोटा जल या बिल्व पत्र अर्पित करने से ही प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए, उन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता है। उनकी आराधना करने से जीवन के कष्टों और पापों का नाश होता है। सोमवार का दिन विशेष रूप से शिव की पूजा के लिए समर्पित है। शिव की पूजा हमें यह सिखाती है कि जीवन के हर पहलू में संतुलन आवश्यक है—वे विष पीने वाले नीलकंठ भी हैं, तो संसार को चलाने वाले कल्याणकारी भी। उनकी पूजा का अंतिम लक्ष्य मनुष्य को भौतिक मोहमाया से ऊपर उठाकर आध्यात्मिक उत्थान की ओर ले जाना है।
श्री महाकालेश्वर मंदिर, उज्जैन का गौरवशाली इतिहास
उज्जैन स्थित श्री महाकालेश्वर मंदिर का इतिहास अत्यंत गौरवशाली और प्राचीन है। यह मंदिर भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों (बारह प्रमुख स्वयंभू लिंगों) में से एक है और एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जो दक्षिणमुखी है, जिसका अपना एक विशेष तांत्रिक और धार्मिक महत्व है। इस मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण और कई प्राचीन भारतीय ग्रंथों में मिलता है, जो इसकी अति प्राचीनता को सिद्ध करता है। कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना अनादि काल से है, परंतु इसका कई बार जीर्णोद्धार हुआ है। मध्यकाल में, महाकाल मंदिर को कई विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट करने के प्रयास किए गए थे, जिसमें सबसे प्रमुख 1234 ईस्वी में दिल्ली सल्तनत के शासक इल्तुतमिश का आक्रमण था। हालाँकि, मराठा काल में, विशेषकर सिंधिया शासकों के संरक्षण में, 18वीं शताब्दी में मंदिर का भव्य पुनर्निर्माण और जीर्णोद्धार किया गया, जिससे इसका वर्तमान स्वरूप सामने आया। यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि भारतीय स्थापत्य कला और सांस्कृतिक विरासत का एक अमूल्य प्रतीक भी है।