Mahakal Bhasm Aarti Live today : उज्जैन से महाकाल लाइव : भस्म आरती के बाद साक्षात् दर्शन, राख में लिपटे भोलेनाथ के अलौकिक स्वरूप को देख निहाल हुए भक्त, आप भी करें घर बैठे दर्शन

Mahakal Bhasm Aarti Live today : धर्म और आस्था की नगरी उज्जैन में आज सुबह का सूर्योदय भगवान महाकालेश्वर के जयकारों और डमरू की गूंज के साथ हुआ।

Update: 2025-12-21 01:21 GMT

Mahakal Bhasm Aarti Live today : उज्जैन से महाकाल लाइव : भस्म आरती के बाद साक्षात् दर्शन, राख में लिपटे भोलेनाथ के अलौकिक स्वरूप को देख निहाल हुए भक्त, आप भी करें घर बैठे दर्शन 

Mahakal Bhasm Aarti Live today : उज्जैन। धर्म और आस्था की नगरी उज्जैन में आज सुबह का सूर्योदय भगवान महाकालेश्वर के जयकारों और डमरू की गूंज के साथ हुआ। विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग बाबा महाकालेश्वर के दरबार में अलसुबह होने वाली भस्म आरती के साथ ही अवंतिका नगरी की जागृति हुई। कड़ाके की ठंड और सुबह की ओस के बीच हजारों श्रद्धालुओं ने 'जय महाकाल' के उद्घोष के साथ मंदिर परिसर में प्रवेश किया। जैसे ही मंदिर के पट खुले, पूरा वातावरण शिवमय हो गया। बाबा महाकाल को जल, दूध, दही, घी और शहद से पंचामृत स्नान कराया गया, जिसके पश्चात उनका दिव्य श्रृंगार हुआ। भस्म आरती के दौरान बाबा का स्वरूप इतना मनमोहक था कि भक्त अपनी सुध-बुध खोकर बस निहारते रह गए।

Mahakal Bhasm Aarti Live today : आरती के पश्चात मंदिर की विशेष हलचल

भस्म आरती संपन्न होने के बाद मंदिर की गतिविधियों में और तेजी आ जाती है। आरती के तुरंत बाद भगवान महाकाल का राजभोग श्रृंगार प्रारंभ होता है। सुबह लगभग 7:30 से 8:15 बजे के बीच 'दद्योदक' आरती की जाती है, जिसमें भगवान को दही और भात का भोग लगाया जाता है। इसके पश्चात मंदिर परिसर में दर्शनार्थियों की लंबी कतारें लग जाती हैं। प्रशासन द्वारा सुव्यवस्थित व्यवस्था के कारण श्रद्धालु निरंतर चलायमान रहते हैं, जिससे गर्भगृह और नंदी हॉल में भक्तों का सैलाब उमड़ता है।

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Mahakal Bhasm Aarti Live today : सुबह के इस प्रहर में मंदिर परिसर के अन्य देवालयों, जैसे सिद्धि विनायक गणेश मंदिर, माता पार्वती मंदिर और कार्तिकेय मंदिर में भी विशेष पूजा-अर्चना शुरू हो जाती है। भक्त मुख्य दर्शन के बाद इन मंदिरों में मत्था टेकते हैं और परिसर में स्थित कोटि तीर्थ कुंड के समीप बैठकर कुछ पल मौन साधना करते हैं। कुंड की शांति और मंदिर के शिखर का दर्शन मन को असीम शांति प्रदान करता है।

दिन भर चलने वाले अनुष्ठान और परंपराएं

महाकाल मंदिर में सुबह की आरती के बाद अभिषेक और पूजन का क्रम अनवरत जारी रहता है। कई श्रद्धालु अपनी मन्नतें पूरी होने पर अभिषेक और रुद्राभिषेक करवाते हैं। इसके लिए मंदिर के पंडित और पुरोहित विशेष मंत्रोच्चार के साथ पूजन संपन्न कराते हैं। सुबह 10:30 बजे के आसपास भगवान की 'भोग आरती' होती है, जिसमें उन्हें शुद्ध सात्विक भोजन का नैवेद्य अर्पित किया जाता है।

मंदिर के बाहर का दृश्य भी काफी जीवंत रहता है। फूलों की खुशबू, प्रसाद की दुकानें और भस्म आरती देख कर निकले भक्तों के चेहरों पर एक अलग ही तेज नजर आता है। उज्जैन के स्थानीय निवासी भी अपनी दिनचर्या की शुरुआत बाबा के दर्शन से ही करते हैं। मंदिर प्रशासन द्वारा श्रद्धालुओं के लिए निःशुल्क अन्नक्षेत्र की व्यवस्था भी सुचारू रूप से चलती है, जहाँ हजारों भक्त प्रसाद ग्रहण करते हैं।

उज्जैन में अन्य धार्मिक स्थलों का भ्रमण

महाकाल दर्शन के पश्चात श्रद्धालुओं का कारवां हरसिद्धि माता मंदिर (शक्तिपीठ), काल भैरव और मंगलनाथ की ओर रुख करता है। विशेष रूप से काल भैरव मंदिर में मदिरा अर्पण की परंपरा और मंगलनाथ पर होने वाली भात पूजा भक्तों के आकर्षण का केंद्र रहती है। क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित रामघाट पर भी सुबह-सुबह स्नान और तर्पण करने वालों की भीड़ देखी जा सकती है।

आज की सुबह बाबा महाकाल के चरणों में समर्पित रही। आस्था का यह सैलाब इस बात का प्रमाण है कि उज्जैन आज भी अध्यात्म का केंद्र बना हुआ है। यदि आप भी शांति और ईश्वरीय अनुभूति की तलाश में हैं, तो महाकाल की यह भोर आरती आपके जीवन का सबसे स्मरणीय अनुभव हो सकती है।


यहाँ जरुर जाएँ 

उज्जैन की पावन भूमि पर महाकालेश्वर के दर्शन के बाद श्रद्धालुओं की यात्रा काल भैरव मंदिर के बिना अधूरी मानी जाती है। यह मंदिर उज्जैन के सबसे रहस्यमयी और जागृत स्थानों में से एक है। भगवान काल भैरव को उज्जैन का "कोतवाल" कहा जाता है, जिनका कार्य पूरी नगरी की सुरक्षा करना है। यहाँ की सबसे अनोखी और दुनिया को अचंभित करने वाली परंपरा भगवान को मदिरा का भोग लगाना है। जब पुजारी पात्र में शराब भरकर भगवान के मुख के पास ले जाते हैं, तो वह देखते ही देखते गायब हो जाती है। तांत्रिक क्रियाओं और अघोरी साधना के लिए भी यह स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। भक्तों का विश्वास है कि यहाँ मत्था टेकने से जीवन के सारे भय और बाधाएं समाप्त हो जाती हैं।

आध्यात्मिक यात्रा के अगले पड़ाव में माता हरसिद्धि का दरबार आता है, जो भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहाँ सती की कोहनी गिरी थी। यह मंदिर सम्राट विक्रमादित्य की आराध्य देवी का स्थान है। मंदिर परिसर की भव्यता देखते ही बनती है, विशेषकर यहाँ स्थित दो विशाल दीप स्तंभ, जो सैकड़ों वर्षों से अपनी जगह पर अडिग खड़े हैं। शाम के समय जब इन स्तंभों पर हजारों मिट्टी के दीपक प्रज्वलित किए जाते हैं, तो पूरा मंदिर परिसर स्वर्णमयी आभा से जगमगा उठता है। भक्तों के लिए यह दृश्य किसी दिव्य स्वप्न जैसा होता है, जहाँ श्रद्धा और प्रकाश का अद्भुत मिलन देखने को मिलता है।

उज्जैन का मंगलनाथ मंदिर न केवल धार्मिक बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत खास है। मत्स्य पुराण के अनुसार, उज्जैन को पृथ्वी का केंद्र माना गया है और इसी स्थान पर मंगल ग्रह की उत्पत्ति हुई थी। यही कारण है कि इसे "मंगल की जन्मभूमि" कहा जाता है। दुनिया भर से जिन लोगों की कुंडली में मंगल भारी होता है या जो मंगल दोष से पीड़ित होते हैं, वे यहाँ आकर विशेष 'भात पूजा' करवाते हैं। कर्क रेखा (Tropic of Cancer) भी इसी मंदिर के ऊपर से होकर गुजरती है, जो इसके भौगोलिक और ज्योतिषीय महत्व को और भी बढ़ा देती है। यहाँ की शांति और शिप्रा तट का सानिध्य मन को एक अलग ही ऊर्जा से भर देता है।

शिक्षा और गुरु-शिष्य परंपरा की बात करें तो सांदीपनि आश्रम उज्जैन का वह गौरवशाली स्थान है, जहाँ स्वयं भगवान श्री कृष्ण, बलराम और सुदामा ने अपनी शिक्षा प्राप्त की थी। यह वह पवित्र स्थल है जहाँ कन्हैया ने 64 दिनों में 64 कलाओं और 14 विद्याओं का ज्ञान अर्जित किया था। आश्रम के भीतर आज भी वह 'गोमती कुंड' विद्यमान है, जिसके बारे में मान्यता है कि गुरु पुत्र को वापस लाने की प्रसन्नता में कृष्ण ने सभी पवित्र नदियों को यहाँ बुलाया था। यहाँ का शांत वातावरण आज भी द्वापर युग की याद दिलाता है और भक्तों को यह संदेश देता है कि ज्ञान की प्राप्ति के लिए स्वयं ईश्वर को भी गुरु की शरण लेनी पड़ी थी।

अंत में, चिंतामण गणेश और सिद्धवट जैसे स्थान उज्जैन की धार्मिक संपदा को पूर्ण करते हैं। चिंतामण गणेश मंदिर में भक्त अपनी चिंताओं के निवारण के लिए आते हैं, जहाँ भगवान गणेश की तीन प्रतिमाएं एक साथ विराजमान हैं। वहीं, शिप्रा के तट पर स्थित 'सिद्धवट' को प्रयाग के अक्षयवट के समान माना गया है। यहाँ पितरों के तर्पण और कालसर्प दोष की शांति के लिए हजारों लोग जुटते हैं। इस प्रकार, उज्जैन का हर कोना किसी न किसी पौराणिक गाथा से जुड़ा हुआ है, जो यहाँ आने वाले हर श्रद्धालु को भक्ति के गहरे सागर में डुबो देता है।

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