Mahakal Bhasm Aarti Live Today : उज्जैन से लाइव : दिव्य श्रृंगार और भस्म की सुगंध से महकी अवंतिका नगरी, देखें बाबा का मनमोहक स्वरूप
Mahakal Bhasm Aarti Live Today : धर्म और आस्था की नगरी उज्जैन में आज तड़के रोज की तरह विश्वप्रसिद्ध बाबा महाकाल की भस्म आरती का आयोजन किया गया।
Mahakal Bhasm Aarti Live Today : उज्जैन से लाइव : दिव्य श्रृंगार और भस्म की सुगंध से महकी अवंतिका नगरी, देखें बाबा का मनमोहक स्वरूप
Mahakal Bhasm Aarti Live Today : उज्जैन : 29 दिसंबर 2025 धर्म और आस्था की नगरी उज्जैन में आज तड़के रोज की तरह विश्वप्रसिद्ध बाबा महाकाल की भस्म आरती का आयोजन किया गया। पौष मास की इस शीतल सुबह में जब पूरी दुनिया निद्रा में लीन थी, तब जय महाकाल के उद्घोष से अवंतिकापुरी गूँज उठी। आज बाबा महाकाल का दिव्य श्रृंगार इतना मनमोहक था कि भक्त अपनी सुध-बुध खोकर बस निर्लिप्त भाव से उन्हें निहारते रह गए।
Mahakal Bhasm Aarti Live Today : नूतन श्रृंगार: चंदन और आभूषणों की दिव्यता आज सुबह मंदिर के पट खुलते ही सबसे पहले भगवान महाकाल का जल और पंचामृत से अभिषेक किया गया। इसके पश्चात बाबा को विशेष चन्दन लेपन के साथ वैष्णव स्वरूप में सजाया गया। भांग, सूखे मेवे और ताजे पुष्पों से किया गया यह 'यूनिक' श्रृंगार बाबा के निराकार से साकार होने की अद्भुत गाथा सुना रहा था। मस्तक पर अर्धचंद्र और त्रिपुंड के साथ बाबा का मुखारविंद किसी अलौकिक तेज से चमक रहा था।
भस्म आरती का अलौकिक दृश्य
जैसे ही महानिर्वाणी अखाड़े की ओर से कपाल भस्म अर्पित की गई, पूरा गर्भगृह धुआं-धुआं हो गया। भस्म की सफेद चादर के बीच बाबा का स्वरूप ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो साक्षात शिव कैलाश पर्वत पर विराजमान हों। शंख, डमरू और घंटों की ध्वनि के बीच जब 'भस्मीभूत' शिव के दर्शन हुए, तो उपस्थित श्रद्धालुओं की आँखें सजल हो उठीं। आरती की लौ में बाबा का दिव्य चेहरा हर क्षण एक नई आभा बिखेर रहा था।
भक्तों का जनसैलाब और आस्था का संगम
कड़ाके की ठंड के बावजूद आज हजारों की संख्या में श्रद्धालु इस दृश्य के साक्षी बनने पहुंचे। मंदिर प्रशासन द्वारा की गई सुव्यवस्थित व्यवस्था के चलते भक्तों ने कतारबद्ध होकर शांतिपूर्ण दर्शन किए। नंदी हॉल से लेकर कार्तिकेय मंडपम तक, हर कोना शिवमय नजर आया। मान्यता है कि आज के इस विशेष स्वरूप के दर्शन मात्र से ही जीवन के समस्त कष्टों का निवारण हो जाता है और मन को अपार शांति मिलती है।
भस्म आरती के बाद अन्य आरतियाँ
दद्योदक आरती बाल स्वरूप का पूजन : भस्म आरती के संपन्न होने के कुछ समय बाद दद्योदक आरती की जाती है। यह आरती सुबह लगभग 7:30 से 8:15 के बीच होती है। इस आरती की विशेषता यह है कि इसमें भगवान महाकाल को भगवान गणेश के समान बाल स्वरूप मानकर पूजन किया जाता है। इसमें मुख्य रूप से दही और भात (चावल) का भोग लगाया जाता है। यह आरती अत्यंत सौम्य होती है और भक्तों को एक नई ऊर्जा से भर देती है।
भोग आरती, राजसी ठाट-बाट : दोपहर के समय, लगभग 10:30 से 11:15 के बीच भोग आरती का आयोजन होता है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, इस समय बाबा महाकाल को राजसी भोजन का भोग अर्पित किया जाता है। इस दौरान बाबा का श्रृंगार भी एक राजा की तरह किया जाता है। शुद्ध घी से बनी मिठाइयां, फल और पंचामृत का नैवेद्य लगाकर बाबा से संसार के कल्याण की प्रार्थना की जाती है। इस आरती के दर्शन से जीवन में सुख-समृद्धि आने की मान्यता है।
संध्या आरती निराकार से साकार का मिलन : सूर्यास्त के समय होने वाली 'संध्या आरती' का दृश्य बेहद भव्य होता है। शाम करीब 6:30 बजे होने वाली इस आरती में पूरा मंदिर दीपों की रोशनी से जगमगा उठता है। संध्या आरती में बाबा का भांग और सूखे मेवों से अद्भुत श्रृंगार किया जाता है। भारी डमरू और झांझ-मंजीरों की थाप पर जब पुजारी आरती करते हैं, तो पूरा वातावरण शिव की भक्ति में लीन हो जाता है। यह वह समय होता है जब भक्त दिनभर की थकान भूलकर शिव की शक्ति में खो जाते हैं।
शयन आरती विश्राम का अलौकिक क्षण : दिनभर के पूजन और अनुष्ठानों के बाद रात लगभग 10:30 बजे 'शयन आरती' की जाती है। यह दिन की अंतिम आरती होती है। इसमें बाबा को विश्राम कराया जाता है। आरती के समय मंत्रों का उच्चारण बहुत ही मधुर और शांत स्वर में होता है। शयन आरती के बाद बाबा के लिंग स्वरूप पर फूलों की चादर चढ़ाई जाती है और गर्भगृह के द्वार बंद कर दिए जाते हैं। मान्यता है कि इस आरती के बाद महादेव कैलाश पर विश्राम के लिए प्रस्थान करते हैं।
महाकाल मंदिर का स्वर्णिम इतिहास: उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर का इतिहास उतना ही प्राचीन है जितना कि स्वयं सृष्टि। यह केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि भारतीय सनातन संस्कृति का वह केंद्र है जिसने सदियों से उत्थान और पतन के कई कालखंड देखे हैं। पुराणों के अनुसार, उज्जैन (अवंतिका) की स्थापना स्वयं ब्रह्मा जी ने की थी और महाकाल यहाँ के अधिपति देवता के रूप में अनंत काल से विराजमान हैं।
पौराणिक मान्यता और स्वयंभू स्वरूप
महाकालेश्वर को 'स्वयंभू' माना जाता है, जिसका अर्थ है कि यह लिंग स्वयं प्रकट हुआ है। शिव पुराण के अनुसार, दूषण नामक राक्षस के अत्याचार से भक्तों की रक्षा करने के लिए भगवान शिव धरती फाड़कर प्रकट हुए थे और यहीं ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए। विश्व के 12 ज्योतिर्लिंगों में महाकाल ही एकमात्र ऐसे हैं जो दक्षिणमुखी हैं, जो इन्हें तंत्र साधना और अकाल मृत्यु से मुक्ति के लिए सबसे विशेष बनाता है।
प्राचीन निर्माण और विदेशी आक्रमण
ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो मंदिर की प्राचीनता का वर्णन कालिदास के 'मेघदूतम' में भी मिलता है। 11वीं शताब्दी में परमार राजाओं के काल में इस मंदिर की भव्यता शिखर पर थी। हालांकि, इतिहास के पन्नों में एक काला अध्याय तब आया जब 1234-35 ईस्वी में दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने उज्जैन पर आक्रमण कर प्राचीन मंदिर को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया और ज्योतिर्लिंग को पास के कोटि तीर्थ कुंड में फेंक दिया। लगभग 500 वर्षों तक बाबा का दरबार वैसी भव्यता के बिना रहा।
मराठा काल और आधुनिक भव्यता
18वीं शताब्दी में जब मालवा पर मराठों का अधिकार हुआ, तब बाबा महाकाल के वैभव की पुनर्स्थापना हुई। 1734 ईस्वी में राणोजी सिंधिया के दीवान रामचंद्र बाबा शेणवी ने मंदिर का भव्य पुनर्निर्माण कराया। आज हम जिस मंदिर के दर्शन करते हैं, उसका मुख्य ढांचा इसी काल की देन है। इसके बाद सिंधिया राजवंश के विभिन्न शासकों ने समय-समय पर मंदिर का विस्तार और सुंदरीकरण किया।
महाकाल लोक आधुनिक भारत का गौरव
वर्तमान समय में, भारत सरकार और मध्य प्रदेश सरकार के प्रयासों से 'श्री महाकाल लोक' कॉरिडोर का निर्माण किया गया है। इसने मंदिर की भव्यता को एक नए वैश्विक आयाम पर पहुँचा दिया है। आज महाकाल मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि वास्तुकला, इतिहास और आध्यात्मिकता का एक ऐसा अनूठा संगम है, जहाँ आकर हर भक्त काल के बंधन से मुक्त महसूस करता है।