Maatru Navami 2025 : मृत्यु कभी भी हो पर श्राद्ध कार्य होता है नवमीं तिथि पर... नहीं तो हो सकता है अनर्थ, जानें इस दिन क्या करें जिससे तृप्त हो माताएं

Matru Navami 2025 : इस दिन सुहागिन स्त्रियों को सुहाग का सामान जैसे चूड़ियाँ, बिंदी, सिंदूर या वस्त्र भेंट करना शुभ फल देता है।

Update: 2025-09-14 15:44 GMT

Maatru Navami 2025 :  पितृपक्ष का हर दिन अपने आप में खास महत्व रखता है। पितृ पक्ष में मातृ नवमी ही एक ऐसी तिथि है जिसमें परिवार या कुल की महिलाएं कभी भी मृत हो पर उनका श्राद्ध कार्य पितृ पक्ष में नवमीं तिथि को ही किया जाता है. और इसके पीछे मान्यता यह भी है की अगर ऐसा नहीं किया जाये तो घोर अनर्थ हो सकता है. 


गरुड़ पुराण और शकुन शास्त्र में स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि सौभाग्यवती माता और स्त्रियों के श्राद्ध की तिथि अलग से बताई गई है. इसे मातृ नवमी कहते हैं. मान्यता है कि यदि सौभाग्यवती माता का श्राद्ध उनकी मृत्यु तिथि पर करने के बजाय नवमी तिथि को न किया जाए, तो पितृ प्रेत योनि में भटकते रहते हैं. इससे परिवार में अशांति, दरिद्रता, दुख और आर्थिक संकट जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं. इसलिए माताओं का श्राद्ध कार्य नवमीं तिथि पर ही किया जाता है. 





 साल 2025 में श्राद्ध पक्ष की शुरुआत 7 सितंबर (भाद्रपद पूर्णिमा) से होगी और यह 21 सितंबर (आश्विन अमावस्या) तक चलेगा. इस बार मातृ नवमी का श्राद्ध 15 सितंबर सोमवार यानि की आज होगा. इस दिन को मातृ नवमी कहा जाता है और इसे दोपहर 12 बजे से पहले करना शुभ माना गया है.


मातृ नवमी पर क्या करें ?

मातृ नवमी के दिन श्राद्ध के साथ-साथ दान-पुण्य करना अत्यंत आवश्यक माना गया है। परंपरा है कि इस दिन सुहागिन स्त्रियों को सुहाग का सामान जैसे चूड़ियाँ, बिंदी, सिंदूर या वस्त्र भेंट करना शुभ फल देता है। वृद्ध महिलाओं को उपहार देना और उनका आशीर्वाद लेना भी कल्याणकारी माना गया है। इसके अतिरिक्त किसी ब्राह्मण पत्नी को आदरपूर्वक भोजन कराना तथा पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाना इस दिन विशेष पुण्यदायी होता है।




 ये भी करना शुभ 


इसके अलावा गाय, कुत्ते, चींटी, मछली और कौवे को अन्न-जल देने का भी विधान है। मान्यता है कि इन जीवों को दिया गया अन्न सीधे पितरों तक पहुँचता है और उनकी आत्मा को शांति प्रदान करता है। इस दिन दिवंगत माताओं और बहनों को स्मरण करके उनकी आत्मा की तृप्ति हेतु श्रद्धा और प्रेम से कार्य करना चाहिए। यही सच्ची मातृ श्रद्धा मानी जाती है।


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