मां सिद्धिदात्री: जानें माता की कथा, मंत्र, स्वरूप और पूजन विधि, अपने भक्तों को सिद्धि देने वाली हैं मां
नवरात्रि की महानवमी पर मां सिद्धिदात्री की पूजा का विधान है। मां का स्वरूप अत्यंत अनुपम है। मां अपने भक्तों को सिद्धियां देने वाली हैं। आइए हम आपको बताते हैं मां की कथा, उनका स्वरूप, उनका पूजन किन मंत्रों से करना चाहिए, साथ ही उनके पूजा की विधि क्या है..
मां सिद्धिदात्री। नवरात्रि की महानवमी पर मां दुर्गा के नौवें स्वरूप सिद्धिदात्री की पूजा का विधान है। मां का स्वरूप अत्यंत अनुपम है। मां अपने भक्तों को सिद्धियां देने वाली हैं। आइए हम आपको बताते हैं मां की कथा, उनका स्वरूप, उनका पूजन किन मंत्रों से करना चाहिए, साथ ही उनके पूजा की विधि क्या है..
हिंदू पंचांग के अनुसार, आज यानि 11 अक्टूबर को महानवमी की शुरुआत दोपहर 12 बजकर 6 मिनट पर होगी। इसका समापन शनिवार 12 अक्टूबर को 10 बजकर 58 मिनट पर होगा।
मां सिद्धिदात्री का अनुपम स्वरूप
मां सिद्धिदात्री की 4 भुजाएं हैं। ये शेर पर सवार हैं। वहीं मां सिद्धिदात्री कमल के आसन पर भी विराजमान होती हैं। इनकी दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में चक्र है। ऊपर वाले हाथ में गदा है, जबकि बाईं ओर के नीचे वाले हाथ में कमल का फूल और ऊपर वाले हाथ में शंख है।
मां सिद्धिदात्री की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक दिन भगवान शिव मां सिद्धिदात्री की घोर तपस्या कर रहे थे। उनकी तपस्या से माता प्रसन्न हो गईं और उन्होंने भगवान शिव को 8 सिद्धियों की प्राप्ति का वरदान दिया। मां ने भगवान को 8 सिद्धियां अणिमा, महिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, गरिमा, लघिमा, ईशित्व और वशित्व प्रदान किया।
भगवान शिव को मां सिद्धिदात्री से मिलीं सिद्धियां
इस वरदान से भगवान शिव का आधा शरीर देवी के रूप में परिवर्तित हो गया। इसके बाद से भगवान शिव अर्धनारीश्वर भी कहलाए। शिवजी का यह रूप संपूर्ण ब्रह्मांड में पूजनीय है।
वहीं दूसरी कथा के अनुसार, दैत्यों के आतंक से ऋषि-मुनि और देवता त्राहिमाम कर उठे। जब पृथ्वी पर महिषासुर नाम के दैत्य ने आतंक मचा रखा था, तब उसके संहार के लिए सभी देवता भगवान शिव, ब्रह्मा और विष्णु जी से सहायता लेने पहुंचे। तब महिषासुर के अंत के लिए सभी देवताओं ने तेज उत्पन्न किया। उस तेज ने इकट्ठा होकर नारी स्वरूप ले लिया। इसके जरिए माता सिद्धिदात्री की उत्पत्ति हुई।
मां सिद्धिदात्री इन सिद्धियों को करती हैं प्रदान
मां सिद्धिदात्री अपने भक्तों को सिद्धियां प्रदान करने वाली हैं। सिद्धियां प्राप्त करने के बाद संसार में उसके लिए कुछ भी अगम्य नहीं रह जाता। जहां मार्कंडेय पुराण में 8 सिद्धियां अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, इशित्व और वशित्व बताई गई है, वहीं ब्रह्मवैवर्तपुराण में श्रीकृष्ण जन्मखंड में ये संख्या 18 बताई गई है, जो इस प्रकार हैं- अणिमा, महिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, इशित्व और वशित्व, सर्वकामावसायिता, सर्वज्ञत्व, दूरश्रवण, परकाया प्रवेशन, वाक् सिद्धि, कल्पवृक्षत्व, सृष्टि, संहारकरणसामर्थ्य, अमरत्व. सर्वन्यायकत्व, भावना, सिद्धि।
मां सिद्धिदात्री का मंत्र
- सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि,
- सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।
दूसरा मंत्र
- या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।।
- नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
मां सिद्धिदात्री का बीज मंत्र
- ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:।।
मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि
- सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- माता की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें।
- फिर माता को फूल, अक्षत, कुमकुम अर्पित करें।
- पूजा स्थल पर घी का दीपक जलाएं।
- माता को भोग लगाएं।
- माता को पूरी-चने और हलवे का भोग लगाया जाता है।
- मां सिद्धिदात्री के मंत्रों का जाप करें।
- दुर्गा चालीसा पढ़ें।
- मां के स्वरूप का महात्म्य पढ़ें।
- इस दिन जातक को हवन जरूर करना चाहिए।
- हवन में सभी देवी-देवताओं के नाम की आहुति दें।
- माता की आरती करें, फिर क्षमा प्रार्थना के बाद सभी में प्रसाद वितरण करें।
- इस दिन कन्या भोज का बहुत महत्व है। कन्याओं का पूजन कर उन्हें उपहार देकर विदा करें।