Jyotirling Darshan 10 (Kashi Vishwanath Jyotirling) : एक ऐसी नगरी जो बसी है शिव के त्रिशूल पर, मोक्षदायिनी है मंदिरों का यह शहर
Kashi Vishwanath Jyotirling : काशी को ‘मंदिरों का शहर’, ‘भारत की पवित्र नगरी’, ‘भारत की धार्मिक राजधानी’ आदि नामों से जाना जाता है.
Kashi Vishwanath Jyotirling : विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जिसे काशी विश्वनाथ के नाम से जाना जाता है. काशी नगरी के बारे में कहा जाता है कि यह इस धरती का हिस्सा नहीं है. काशी तो शिव के त्रिशूल पर बसी है. ऐसे में इस मोक्ष की नगरी और पाप नाशिनी भी कहा जाता है. इस नगरी के बारे में पुराणों में वर्णित है कि यह भगवान विष्णु की नगरी थी. यहां श्रीहरि के आनंदाश्रु गिरे थे, जहां भगवान के आनंद के आंसू गिर थे, वहां सरोवर बन गया. जहां प्रभु ‘बिंधुमाधव’ के रूप में पूजे गए. कहते हैं कि शिव को यह नगरी इतनी भा गई कि उन्होंने भगवान श्रीहरि से इसे अपने निवास के लिए मांग लिया. आज NPG NEWS आपको ज्योतिर्लिंग दर्शन की कड़ी में काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग से रूबरू करने जा रहे हैं. तो चलिए फिर जानते हैं इनकी महिमा और रहस्य.
काशी को ‘मंदिरों का शहर’, ‘भारत की पवित्र नगरी’, ‘भारत की धार्मिक राजधानी’ आदि नामों से जाना जाता है. काशी विश्वनाथ जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च तक का होता है, जब मौसम ठंडा और सुखद होता है, जो दर्शनीय स्थलों की यात्रा और आध्यात्मिक गतिविधियों के लिए आरामदायक होता है।
विश्व की प्राचीनतम नगरी बनारस यूं नहीं कही जाती है। आदिदेव शिव और मां गंगा के साथ ही 33 कोटि देवी-देवता और तीर्थ भी यहीं विराजते हैं। श्री काशी विश्वनाथ के ज्योर्तिलिंग में भगवान शंकर राजराजेश्वर के स्वरूप में यहां विराजमान होकर अपने भक्तों को समस्त ऐश्वर्य प्रदान करते हैं। देश ही नहीं दुनिया भर से भगवान शिव के भक्त उनके दर्शन के लिए काशी आते हैं।
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग को लेकर पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती विवाह के बाद से कैलाश पर्वत पर रहते थे। एक दिन माता पार्वती ने कहा कि जिस तरह सभी देवी-देवताओं के अपने घर हैं, उस तरह हमारा घर क्यों नहीं है। रावण ने तो लंका को ले लिया है इसलिए हमको दूसरी जगह के बारे में सोचना चाहिए। शिवजी को दिवोदास की नगरी काशी बहुत पसंद आई। निकुंभ नामक शिवगण ने भगवान शिव के लिए शांत जगह के लिए काशी नगरी को निर्मनुष्य कर दिया। ऐसा करने से राजा को बहुत दुख पहुंचा।
राजा ने ब्रह्माजी की तपस्या की और उनको इस बारे में जानकारी देकर दुख दूर करने की प्रार्थना की। दिवोदास ने बोला कि देवता देवलोक में रहें, पृथ्वी तो मनुष्यों के लिए है। ब्रह्माजी के कहने पर शिवजी काशी को छोड़कर मंदराचल पर्वत पर चले गए लेकिन काशी नगरी के लिए अपना मोह नहीं त्याग सके। तब भगवान विष्णु ने राजा को तपोवन में जाने का आदेश दिया। उसके बाद काशी महादेवजी का स्थाई निवास हो गया और यहां आकर भगवान शिव विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए।
भगवान विष्णु ने की थी तपस्या
काशी को सृष्टि की आदिस्थली भी कहा जाता है। एक मत के अनुसार, भगवान विष्णु ने इसी स्थान पर सृष्टि की कामना के लिए काशी में तपस्या की थी। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने भगवान विष्णु को दर्शन दिए और सृष्टि के निर्माण और संचालन के लिए कुछ उपाय भी बताए। जहां भगवान शिव प्रकट हुए वहां आज भी शिवलिंग की पूजा की जाती है।
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की एक और कहानी
काशी विश्वनाथ को लेकर एक दिलचस्प पौराणिक कथा प्रचलित है। इससे हमें इसकी कहानी का पता चलता है। एक बार भगवान विष्णु और ब्रह्मा में बहस छिड़ गई कि कौन अधिक शक्तिशाली है। इस बहस की मध्यस्थता करने के लिए भगवान शिव ने विशाल ज्योतिर्लिंग का रूप धारण कर लिया था। शिव ने भगवान विष्णु और ब्रह्मा को विशाल ज्योतिर्लिंग के स्रोत और ऊंचाई का पता लगाने को कहा। ब्रह्मा जी अपने हंस पर बैठकर आकाश की तरफ गए ऊंचाई का पता लगाने और विष्णु जी शूकर का रूप धारण करके पृथ्वी के अंदर खुदाई करने लगे, ताकि इसकी गहराई का पता चल सके। दोनों कई युगों तक भी उसके गहराई और ऊंचाई का पता नहीं लगा सके। हारकर भगवान विष्णु ने शिव जी के आगे नतमस्तक हो गए, लेकिन ब्रह्मा जी ने झूठ बोल दिया कि उन्होंने इसकी ऊंचाई का पता लगा लिया। इस झूठ पर क्रोधित शिव ने उन्हें श्राप देते हुए कहा कि आपकी पूजा नहीं होगी, इसलिए ब्रह्मा जी के मंदिर नहीं मिलते।
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के कुछ अनसुने रहस्य
1. काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का स्वरूप दो भागों में विभाजित है। दाहिनी ओर शक्ति स्वरूपा मां भगवती का वास है, जबकि बाईं ओर भगवान शिव सुंदर रूप में विराजमान हैं। यह संयोजन शिव और शक्ति की एकात्मकता को दर्शाता है, जो अत्यंत दुर्लभ और पवित्र है। इसी कारण काशी को मुक्ति क्षेत्र कहा जाता है, क्योंकि यहां शिव और शक्ति के मिलन से आत्मा को परम शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
2. मां भगवती के दाहिनी ओर स्थित होने से मोक्ष का मार्ग केवल काशी में खुलता है। ऐसा कहा जाता है कि यहां मृत्यु का अर्थ अंत नहीं, बल्कि मुक्ति है। भगवान शिव स्वयं मृत्यु के समय भक्त के कान में तारक मंत्र फूंकते हैं, जिससे आत्मा मुक्त हो जाती है और पुनर्जन्म के बंधन से छूट जाती है। अकाल मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति को भी यदि शिव की उपासना प्राप्त हो जाए, तो वह मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।
3. श्रृंगार के समय सभी मूर्तियां पश्चिम मुखी होती हैं, और यही वह क्षण होता है जब शिव और शक्ति दोनों की उपस्थिति स्पष्ट होती है। काशी विश्वनाथ ही वह अद्वितीय स्थान है जहां शिव और शक्ति एक साथ पूजित होते हैं। एक ही गर्भगृह में, एक ही ज्योतिर्लिंग में। ऐसा संगम संसार के किसी अन्य तीर्थ या मंदिर में नहीं देखने को मिलता।
4. मंदिर के गर्भगृह के ऊपर स्थित शिखर श्री यंत्र से मंडित है, जो इसे तांत्रिक साधना के लिए एक अत्यंत सिद्ध स्थान बनाता है। श्री यंत्र, लक्ष्मी और शक्ति साधना का प्रतिनिधित्व करता है, और इसका शिवलिंग के ऊपर होना यह दर्शाता है कि यहां केवल भक्ति ही नहीं, अपितु तंत्र और साधना की ऊंचाई भी प्राप्त की जा सकती है। यह स्थल उन साधकों के लिए विशेष फलदायी है जो गूढ़ विद्याओं की खोज में हैं।
5. बाबा विश्वनाथ के दरबार में चार प्रमुख द्वार हैं – शांति द्वार, कला द्वार, प्रतिष्ठा द्वार और निवृत्ति द्वार। ये द्वार केवल प्रवेशमार्ग नहीं, बल्कि तांत्रिक साधना और चेतना के विशेष आयाम हैं। ऐसा दुर्लभ संयोजन पूरे विश्व में कहीं और नहीं मिलता जहां शिवशक्ति की साक्षात उपस्थिति हो और साथ ही चारों तांत्रिक द्वार भी मौजूद हों।
6. गर्भगृह में बाबा का ज्योतिर्लिंग ईशान कोण में स्थित है, जो दिशा शास्त्र और वास्तु के अनुसार विद्या, कला, साधना और ब्रह्मज्ञान का प्रतीक है। ईशान कोण में शिव का वास यह दर्शाता है कि यहां भगवान का नाम केवल शंकर ही नहीं, ईशान के रूप में विद्या और तंत्र का अधिपति स्वरूप भी है। इस दिशा से संपूर्ण ब्रह्मांडीय ऊर्जा प्रवाहित होती है।
7. मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण मुखी है, और बाबा का मुख उत्तर दिशा की ओर अर्थात अघोर दिशा में स्थित है। जब भक्त मंदिर में प्रवेश करता है, तो सबसे पहले उसे शिव के अघोर रूप के दर्शन होते हैं। जो समस्त पापों, तापों और बंधनों को नष्ट कर देने की शक्ति रखते हैं। इसलिए यहां प्रवेश करते ही व्यक्ति के पुराने पाप क्षय होने लगते हैं और आत्मा शुद्ध होती जाती है।
8. भौगोलिक दृष्टि से काशी एक त्रिशूल रचना पर स्थित है, जिसमें ज्ञानवापी क्षेत्र त्रिशूल का मध्य बिंदु है, मैदागिन और गौदौलिया दो ओर की धाराएं हैं। कहा जाता है कि प्राचीन काल में मंदाकिनी और गोदावरी नदियां इन क्षेत्रों से बहती थीं। इस त्रिशूल रचना के कारण काशी में प्रलय भी नहीं आता, क्योंकि भगवान शिव स्वयं इसे अपने त्रिशूल पर धारण किए रहते हैं।
9. बाबा विश्वनाथ काशी में गुरु और राजा दोनों स्वरूपों में विद्यमान हैं। दिन में वे गुरु रूप में काशीवासियों को दिशा देते हैं और रात्रि के समय, विशेषकर नौ बजे की श्रृंगार आरती में, वे राज वेश धारण करते हैं। इसी कारण उन्हें राजराजेश्वर कहा जाता है। यह रूप न केवल सौंदर्य का प्रतीक है, बल्कि यह दर्शाता है कि शिव जन-जन के राजा और संरक्षक हैं।
10. बाबा विश्वनाथ और मां भगवती काशी में प्रतिज्ञाबद्ध हैं। मां भगवती यहां अन्नपूर्णा के रूप में हर जीव का पोषण करती हैं, और बाबा विश्वनाथ मृत्यु के उपरांत आत्मा को तारक मंत्र देकर मुक्ति प्रदान करते हैं। यह शिव-शक्ति का दुर्लभ संयोग काशी को दिव्यता, पूर्णता और सनातन ऊर्जा का स्रोत बनाता है।
11. बाबा विश्वनाथ के अघोर दर्शन से जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं। विशेषकर शिवरात्रि के दिन बाबा औघड़ रूप में नगर में विचरण करते हैं, और उनकी बारात में भूत, प्रेत, देवता, पशु, पक्षी, सभी प्रकार की आत्माएं सम्मिलित होती हैं। यह दर्शन दर्शाता है कि शिव हर रूप, हर स्थिति और हर प्राणी के भीतर व्याप्त हैं, वे समभाव के स्वामी हैं।
काशी के कोतवाल हैं भैरव
काशी विश्वनाथ के इस मंदिर को कई बार आक्रांताओं के द्वारा छिन्न-भिन्न करने की कोशिश की गई लेकिन, हिंदू आस्था हर बार इतनी ताकतवर रही कि मंदिर का निर्माण फिर से भव्य तरीके से कर दिया गया. वहीं काशी विश्वनाथ के साथ इस नगरी में शिव के गण और पार्वती के अनुचर भैरव काशी के कोतवाल के रूप में विराजते हैं. ऐसे में काशी विश्वनाथ के दर्शन से पहले भैरव के दर्शन की परंपरा है. मंदिरों के इस शहर की हर गलियां सनातन की समृद्ध परंपरा की गवाही है. यह मोक्ष की नगरी है ऐसे में लोग काशी में अपने जीवन का अंतिम वक्त बीताने आते हैं.
ईशान कोण में है काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग
वैसे भी पौराणिक और ऐतिहासिक तथ्यों पर गौर करें तो वाराणसी दुनिया का सबसे प्राचीन शहर है. विश्व के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में भी काशी का जिक्र मिलता है. वहीं महाभारत और उपनिषद में भी इसके बारे में वर्णित है. यहां काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह में बाबा का ज्योतिर्लिंग ईशान कोण में स्थित है, जो दिशा शास्त्र और वास्तु के अनुसार विद्या, कला, साधना और ब्रह्मज्ञान का प्रतीक है. ईशान कोण में शिव का वास यह दर्शाता है कि यहां भगवान का नाम केवल शंकर ही नहीं, ईशान के रूप में विद्या और तंत्र का अधिपति स्वरूप भी है.
कई रोगों को नष्ट करता है मृत्युंजय महादेव मंदिर का पानी
वहीं विशेसरगंज में हेड पोस्ट ऑफिस के पास वाराणसी का महत्वपूर्ण एवं प्राचीन मंदिर है. भगवान काल भैरव जिन्हें ‘वाराणसी के कोतवाल’ के रूप में माना जाता है, बिना उनकी अनुमति के कोई भी काशी में नहीं रह सकता है. यहीं कालभैरव मंदिर के निकट दारानगर के मार्ग पर भगवान शिव का मृत्युंजय महादेव मंदिर स्थित है. इस मंदिर का पानी कई भूमिगत धाराओं का मिश्रण है और कई रोगों को नष्ट करने के लिए उत्तम है.
सड़क, रेल या हवाई मार्ग से मंदिर तक कैसे पहुंचें ?
वाराणसी देश के सभी शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। रोडवेज के अलावा प्राइवेट बसें भी सीधे बनारस के लिए मिलती हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचने के लिए रोडवेज बस स्टैंड या शहर के किसी भी हिस्से से गोदौलिया के लिए टैक्सी, ई रिक्शा, ऑटोरिक्शा आराम से मिल जाएगा। गोदौलिया से दशाश्वमेध घाट की तरफ बढ़ने पर सिंहद्वार है जो ढुंढिराज गणेश की तरफ से मंदिर में पहुंचता है। वहीं बांसफाटक की तरफ से विश्वनाथ गली जाने वाला रास्ता भी मंदिर लेकर जाता है। इसके अलावा ज्ञानवापी की तरफ से भी मंदिर परिसर में प्रवेश के लिए द्वार है।
ट्रेन से कैसे पहुंचे
वाराणसी में चार रेलवे स्टेशन हैं। मंदिर से वाराणसी सिटी स्टेशन की दूरी दो किमी, वाराणसी जंक्शन की दूरी करीब 6 किमी है और बनारस रेलवे स्टेशन की दूरी चार किलोमीटर है। वहीं मुगल सराय रेलवे स्टेशन मंदिर से 17 किमी की दूरी पर है। यह सभी स्टेशन भारत के दूसरे शहरों से ट्रेनों के जरिए जुड़े हुए हैं। स्टेशन के बाहर से मंदिर के लिए सीधे रिक्शा, आटो या टैक्सी उपलब्ध है।
हवाई मार्ग से कैसे पहुंचे
बाबतपुर स्थित लाल बहादुर शास्त्री एयरपोर्ट देश और विदेश के सभी शहरों से जुड़ा हुआ है। एयरपोर्ट से काशी विश्वनाथ मंदिर की दूरी 20 से 25 किमी की है। टूरिस्ट टैक्सी या कैब लेकर एयरपोर्ट से मंदिर पहुंच सकते हैं।