Karu bhat Aaj : छत्तीसगढ़ में तीजा पर्व की परंपरा करू भात से शुरू, जानिए क्यों खाई जाती है करू भात, निर्जला उपवास में मिलती है मदद

Karoo bhat : इस व्रत पूजा से एक दिन पहले शाम के समय भोजन में करेला की सब्जी भात खायेंगी और खीरा खाकर सोएंगी, ताकि अन्न की डकार न आए. इसके बाद कुछ भी नहीं खाती हैं

Update: 2025-08-24 11:08 GMT

Karoo bhat : पति की दीर्घायु जीवन और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना का पर्व हरितालिका तीजा मंगलवार 26 अगस्त को मनायी जायेगी.

इससे एक दिन पहले महिलाएं मायके पहुंचकर करू भात खायेंगी। दअरसल छत्तीसगढ़ में तीज मायके में मानते हैं. महिलाएं सोमवार को यानी की कल करू भात खाकर अपना व्रत शुरू करेंगी.


क्या होता है करू भात

छत्तीसगढ़ी में कड़वा मतलब ‘करू‘ होता है और पके हुए चावल को ‘भात‘ कहा जाता है. इस व्रत पूजा से एक दिन पहले शाम के समय भोजन में करेला की सब्जी भात खायेंगी और खीरा खाकर सोएंगी, ताकि अन्न की डकार न आए. इसके बाद कुछ भी नहीं खाती हैं. इस दिन छत्तीसगढ़ के हर घर में करेले की सब्जी खासतौर पर बनाई जाती है.




100 रुपए प्रति किलो बिक रहा करेला

बाजारों में इस दिन करेले की सर्वाधिक मांग होती है. यही वजह है कि करेले का भाव भी बढ़ जाता है. बालोद में करेला 100 रुपए प्रति किलो की दर से बेचा जा रहा है. महंगा होने के बावजूद लोग इसे खरीद रहे हैं, क्योंकि करू-भात के रिवाज के बिना व्रत अधूरा माना जाता है.

करू भात रिवाज के पीछे की मान्यता

महिलाएं बताती हैं कि तीज व्रत के एक दिन पहले करेला इसलिए खाया जाता है, क्योंकि करेला खाने से कम प्यास लगती है. हरतालिका तीज का उपवास महिलाएं निर्जल होकर करती है. इस दिन करेला खाने का दूसरा कारण ये भी है कि मन की शुद्धता के लिए करेले की कड़वाहट जरूरी है, जिससे मन शांत हो जाता है.

कैसे रखा जाता है तीजा पर व्रत


ज्योतिषाचार्य पंडित मनोज शुक्ला ने बताया कि छत्तीसगढ़ में तीजा पर्व पर करू (कड़वा) भात खाने की परंपरा है. तीजा व्रत रखने के एक दिन पहले करू भात खाया जाता है. करू भात का तात्पर्य है कि करेले की सब्जी बनाकर उस दिन भोजन किया जाता है. इससे यह होता है कि दूसरे दिन जब निर्जला व्रत रखा जाता है उस दिन कड़वा करेला शरीर में एक प्रकार से तरल पदार्थ को उत्सर्जित करती है. इससे प्यास नहीं लगती है, इसलिए छत्तीसगढ़ में परंपरा है कि बहन-बेटियों को करेला सब्जी बना करके भोजन कराया जाता है. यह करू भात के नाम से प्रचलित है.

हरतालिका तीज का महत्व

हरतालिका दो शब्दों हरत और आलिका से मिलकर बना है. हरत का अर्थ अपहरण और आलिका का अर्थ सहेली है. हरतालिका तीज की पृष्ठभूमि में माता पार्वती के जीवन की एक कथा है. कहते हैं कि माता पार्वती के पिता उनका विवाह भगवान विष्णु से कराना चाहते थे, लेकिन देवी पार्वती को शिव प्रिय थे. तब उनकी सहेलियों ने पार्वती जी को महल से ले जाकर, एक गुफा में छिपा दिया. वहां माता पार्वती ने कठोर तप से भगवान शिव को पति स्वरूप में प्राप्त किया.

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