अक्टूबर से फ़रवरी तक के सर्दियों के महीने पर्यटकों के लिए मल्लिकार्जुन मंदिर का अनुभव करने का सबसे पसंदीदा समय माना जाता है।
Jyotirling Darshan 3 (Mallikarjuna Jyotirling) : पुत्र के खातिर शिव और शक्ति की ज्योति से प्रगट हुई यह ज्योतिर्लिंग, प्रलय के बाद भी रहेगी यह जगह, जानें महिमा और सब कुछ
Jyotirling Darshan 3 : मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में पवित्र शैल पर्वत पर स्थापित है.
Jyotirling Darshan 3 (Mallikarjuna Jyotirling) : मल्लिकार्जुन... याने की 'मल्लिका' (माता पार्वती) और 'अर्जुन' (भगवान शिव) का संयुक्त रूप से 'मल्लिकार्जुन' नाम पड़ा. पौराणिक कथा के अनुसार जब महादेव और माता पार्वती के दोनों पुत्र भगवान कार्तिकेय और भगवान गणेश का विवाह को लेकर आपस में विवाद हुआ तो शिव जी ने धरती के चक्कर लगाने को दोनों को कहा और कहा की जो सबसे पहले चक्कर लगाएगा उनका विवाह किया जायेगा. ऐसे में भगवान कार्तिकेय अपने कार्य हेतु निकल पड़े पर भगवान गणेश ने अपनी बुद्धि का परिचय देते हुए माता-पिता का ही आसान लगवाकर चक्कर लगाया, जिससे वे परीक्षा में सफल हो गए और उनका विवाह हो गया. पर जब कार्तिकेय भगवान लौटे, तो उन्होंने देखा की गणेश जी की शादी हो गई है. ऐसे में वो नाराज होकर क्रोंच पर्वत चले गए. इसके बाद सभी देवता उनसे कैलाश पर्वत पर लौटने की विनती करने लगे लेकिन वह नहीं माने. पुत्र वियोग में माता पार्वती और भगवान शिव दुखी हो गए. जब दोनों से रहा नहीं किया तब वह स्वयं क्रोंच पर्वत पर गए. माता-पिता के आने की खबर सुनकर कार्तिकेय वहां से और दूर चले गए. अंत में पुत्र के दर्शन के लिए भगवान शिव ने ज्योति रूप धारण किया और उसी में माता पार्वती भी विराजमान हो गईं. उसी दिन से इन्हें मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाने लगा. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में पवित्र शैल पर्वत पर स्थापित है. तो चलिए फिर 12 ज्योतिर्लिंग दर्शन की कड़ी में आज NPG NEWS जानिए मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की महिमा और सब कुछ.
आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में पवित्र शैल पर्वत पर मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग स्थापित है. यह भगवान शिव के प्रतिष्ठित स्थलों में से एक हैं. यह ज्योतिर्लिंग करोड़ों भक्तों की आस्था का केंद्र है. यहां माता पार्वती और शिव जी स्थापित हैं और यह ज्योतिर्लिंग के साथ साथ शक्तिपीठ भी है. यहां पर मां सती की ग्रीवा गिरी थी, जिस कारण यह 52 शक्तिपीठों में से एक भी है. आइए जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातें.
श्रीशैल खंडम् में लिखा है कि ‘श्रीशैल शिखरम् दृष्ट पुनर्जन्म न विध्यते।’ इसका अर्थ है कि श्रीशैल शिखर का दर्शन करने वाले का पुनर्जन्म नहीं होता है। यानी वह जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति पा जाता है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की महिमाअनेक धर्मग्रन्थों में इस ज्योतिर्लिंग की महिमा बतायी गई है. महाभारत के अनुसार श्रीशैल पर्वत पर भगवान शिव का पूजन करने से अश्वमेध यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है. कुछ ग्रन्थों में तो यहां तक लिखा है कि श्रीशैल के शिखर के दर्शन मात्र से ही भक्तों के सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं. इसके दर्शन से अनन्त सुखों की प्राप्ति होती है.
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
वेद-पुराणों के अनुसार एक बार भगवान शिव के दोनों पुत्र गणेश जी और कार्तिकेय विवाह के लिए आपस में झगड़ने लगे थे. वह इस बात पर बहस कर रहे थे कि सबसे पहले विवाह कौन करेगा. तब भगवान शिव ने निष्कर्ष निकालने के लिए उन दोनों को एक कार्य सौंपा. उन्होंने कहा कि जो सबसे पहले पृथ्वी का चक्कर लगाकर वापस आ जाएगा, उसी का विवाह सबसे पहले किया जाएगा.
भगवान कार्तिकेय पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए चले गए लेकिन गणेश जी अपने स्थूल शरीर की वजह से विचार में पड़ गए. बुद्धि के देवता गणेश जी ने सोच-विचार करके अपनी माता पार्वती और पिता महादेव से एक आसन पर बैठने का आग्रह किया. उन दोनों के आसन पर बैठ जाने के बाद श्रीगणेश ने उनकी सात परिक्रमा की. इस प्रकार श्रीगणेश माता-पिता की परिक्रमा करके पृथ्वी की परिक्रमा से प्राप्त होने वाले फल की प्राप्ति के अधिकारी बन गये.
उनकी चतुर बुद्धि को देख कर शिव और पार्वती दोनों बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने श्रीगणेश का विवाह करा दिया. जब कार्तिकेय पृथ्वी से वापस लौटे तो गणेश जी को विवाहित पाकर अपने माता-पिता से अत्यंत क्रोधित हो गए. क्रोधित होकर कार्तिकेय क्रोंच पर्वत पर आ गए. इसके बाद सभी देवता उनसे कैलाश पर्वत पर लौटने की विनती करने लगे लेकिन वह नहीं माने. पुत्र वियोग में माता पार्वती और भगवान शिव दुखी हो गए.
जब दोनों से रहा नहीं किया तब वह स्वयं क्रोंच पर्वत पर गए. माता-पिता के आने की खबर सुनकर कार्तिकेय वहां से और दूर चले गए. अंत में पुत्र के दर्शन के लिए भगवान शिव ने ज्योति रूप धारण किया और उसी में माता पार्वती भी विराजमान हो गईं. उसी दिन से इन्हें मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाने लगा. इसमें मल्लिका माता पार्वती का नाम है, जबकि अर्जुन भगवान शंकर को कहा जाता है. इस प्रकार सम्मिलित रूप से ‘मल्लिकार्जुन’ ज्योतिर्लिंग पूरे जगत में प्रसिद्ध है.
मंदिर द्रविड़ शैली में बना है, जिसमें ऊंचे स्तंभ और विशाल आंगन हैं. इसका निर्माण सातवीं शताब्दी में चालुक्य राजाओं ने करवाया था, और 16वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य ने इसका जीर्णोद्धार किया. छत्रपति शिवाजी महाराज ने मंदिर के उत्तरी गोपुरम का निर्माण करवाया था.
प्रलय के बाद भी रहेगी यह जगह
मंदिर की आधिकारिक वेबसाइट श्रीशैलदेवस्थानम में दी गई जानकारी के अनुसार, मंदिर की महिमा का वर्णन प्राचीन लिपियों, रामायण, पुराणों आदि में किया गया है। शिवरहस्यम के अनुसार, श्रीशैलेश्वरलिंगतुल्यममलं लिंगं न भूमंडले ब्रह्माण्डप्रलयपि तस्यविलया नष्टति वेदोक्तयः
इसका अर्थ है कि श्रीशैलेश्वर लिंग के समान इस भूमंडल में कोई दूसरा लिंग नहीं है। ब्रह्मांड में प्रलय के बाद भी रहने वाला भगवान शिव का एकमात्र धाम श्रीशैल क्षेत्र है।
यहां पर कुमार, अगस्त्य, वशिष्ठ, लोपामुद्रा, व्यास महर्षि, गर्ग महर्षि, दुर्वासोमा महर्षि, मन्मधुडु, शंकरचार्युलु जैसे कई ऋषि, तपस्वियों ने साधना की है। भगवान श्री राम, पांडव के अलावा रावण और हिरण्यकश्यप जैसे असुर भी भोलेनाथ की भक्ति के लिए यहां पहुंचे थे।
कैलास जैसा आनंद पाते हैं यहां भोलेनाथ
श्रीशैल खंडम अस्थि में नियतावासः कैलास इति सर्वधा भुवि श्रीपर्वतथो नाम सह सर्वसुरोत्तमै। अत्र मे हृदयं देवी यधा पृथिमापगथम न ठाधा रामथे तत्र कैलासे कामदायनि।
इसका अर्थ है- हे पार्वती, हर कोई जानता है कि मैं केवल कैलास में रहता हूं। लेकिन, पृथ्वी पर एकमात्र स्थान, जो मुझे खुशी देता है वह श्रीशैल की पहाड़ी है। देवी! मेरा हृदय श्रीशैलम में उसी प्रकार आनंद से भर जाता है, जैसे कैलास पर्वत पर आनंद से लहराता है।
मुख्य बातें
धार्मिक महत्व :
- यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है.
- यह "दक्षिण का कैलाश" कहलाता है.
- यह 52 शक्तिपीठों में से एक भी है.
- यहां दर्शन से अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य मिलता है.
- यहां शिव और शक्ति दोनों की पूजा की जाती है, और उनके आशीर्वाद से मनोकामनाएं पूरी होती हैं.