Hareli Par Tona Totka: नीम की डंडी, भूत-प्रेत और शमशान की तपस्या- हरेली की रात के खौफनाक सच से उठेगा पर्दा! पढ़िए चौंकाने वाला सच!
Hareli Par Tona Totka: रायपुर: आज पूरे छत्तीसगढ़ में पारंपरिक तिहार हरेली उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। हरेली तिहार खेतों में हरियाली का उत्सव है। इस दिन बैलों और हल की पूजा की जाती है। हरेली के दिन घरों के बाहर नीम के डाल लगाए जातें हैं। छत्तीसगढ़ के कुछ इलाके हरेली की रात में टोना टोटका होने जैसी अंधविश्वास से भी जुड़ जाते हैं। जी हां ग्रामिणों का मानना है कि इस दिन भूत प्रेत और बुरी आत्माएं सक्रिय हो जाती है। तो चलिए जानते हैं हरेली तिहार के बारे में....
Hareli Par Tona Totka: रायपुर: आज पूरे छत्तीसगढ़ में पारंपरिक तिहार हरेली उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। हरेली तिहार खेतों में हरियाली का उत्सव है। इस दिन बैलों और हल की पूजा की जाती है। हरेली के दिन घरों के बाहर नीम के डाल लगाए जातें हैं। छत्तीसगढ़ के कुछ इलाके हरेली की रात में टोना टोटका होने जैसी अंधविश्वास से भी जुड़ जाते हैं। जी हां ग्रामिणों का मानना है कि इस दिन भूत प्रेत और बुरी आत्माएं सक्रिय हो जाती है। तो चलिए जानते हैं हरेली तिहार के बारे में....
क्यों मनाया जाता है हरेली तिहार
हरेली तिहार छत्तीसगढ़ का प्रमुख तिहार है। जब धान की रोपाई का काम अंतिम चरण पर होता है और खेत-खलिहान में चारों ओर हरियाली छाई रहती है। तो मन प्रसन्न हो उठता है। जिसके बाद हरेली तिहार मनाकर किसान प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। हरेली तिहार खास तौर पर श्रावण मास की अमावस्या पर मनाया जाता है। इस दिन किसान अपने कृषि औजारों जैसे कि हल, कुदाली और नांगर की पूजा करते हैं। साथ ही बैलों को नहलाकर उन्हें हल्दी तेल लगाकर सजाया जाता है। इतना ही नहीं बैलों को मीठा चीला और फरा भी खिलाए जाते हैं।
बनाए जाते हैं पारंपरिक व्यंजन
हरेली के दिन छत्तीसगढ़ में कई पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं, जैसे कि गेहूं आटा और गुड़ का चीला, बोबरा, गुलगुला भजिया, खुरमी, फरा और चौसेला बनाया जाता है। यह सभी छत्तीसगढ़ के पारंपरिक व्यंजन है।
गेड़ी के बिना हरेली अधूरा
छत्तीसगढ़ का हरेली तिहार गेड़ी के बिना अधूरा माना जाता है। बता दें कि बांस से गेड़ी बनाई जाती है। गेड़ी के साथ ही युवा, बच्चे गांव के गली में नारियल फेंक और कबड्डी जैसे कई तरह के खेल खेलते हैं। गेड़ी से चलते समय रच रच की आवाज आती है जो वातावरण को आनंनद से भर देती है।
घर के बाहर लगाए जाते हैं नीम के डाल
इसी के साथ ही हरेली तिहार पर छत्तीसगढ़ के गांवों में एक खास परंपरा निभाई जाती है घर के बाहर नीम की डंडियां लगाने की। जी हां हरेली तिहार पर घरों के बाहर नीम की डंडियां लगाई जाती है। वैज्ञानिकों के अनुसार, नीम की गंध और तेल में मौजूद एंटी बैक्टीरियल और एंटी वायरस गुण कीटाणुओं को दूर रखते हैं। जो मानसून में बीमारियां फैला सकते हैं। लेकिन धार्मिक मान्यता के मुताबिक, नकारात्मक शक्तियों को दूर रखने के लिए घरों के बाहर नीम की डंडियां लगाई जाती है।
भूत-प्रेत और बुरी आत्माएं होती है सक्रिय
एक ओर जहां हरेली तिहार आस्था और प्रकृति पूजन का पर्व है, तो वहीं दूसरी ओर छत्तीसगढ़ के कुछ इलाकों में हरेली तिहार पर टोना टोटका करने जैसी अंधविश्वास भी चरम पर रहती है। ग्रामिणों का मानना है कि इस दिन भूत प्रेत और बुरी आत्माएं सक्रिय हो जाती है। कुछ असमाजिक तत्व इसी डर का फायदा उठाकर लोगों को ठगने का काम भी करते हैं। इतना ही नहीं कई बार महिलाओं पर (टोनहीं) होने का आरोप भी लगाया जाता है, जिसके कारण कई बार सामाजिक बहिष्कार जैसी घटना भी हो जाती है।
शमशान घाट में करते हैं तप!
हरेली तिहार और श्रावण मास की अमावस्या को लेकर ग्रामिण क्षेत्रों में ऐसी मान्यता है कि हरेली की रात यानी की अमावस्या की रात काला जादू या फिर टोना टोटका करने वालों के लिए बेहद अहम होता है। काला जादू या फिर टोना टोटका करने वालों साल भर अमावस्या की रात का इंतजार रहता है। कहा जाता है कि किसी से बदला लेने या फिर अपनी शक्तियों को बढ़ाने के लिए वे लोग अधी रात शमशान घाट में तप करते हैं। इसी कारण गांवों में हरेली के दिन बच्चों को घर से बाहर निकलने से मना किया जाता है।
सामाजिक संस्था कर रही जागरुक
ऐसे कई सामाजिक संस्था भी है जो इन्हीं अंधविश्वास को लेकर मोर्चा खोले हुए हैं। गांव और घरों में जाकर नुक्कड़ नाटक, रैलियों या फिर अन्य तरीकों से लोगों को जागरुक करने का काम भी कर रही है। ताकि लोग भ्रम और डर से बाहर आकर प्रकृति पूजन के पर्व का आनंद ले सकें।
(अस्वीकरण: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और सामान्य जानकारियों पर आधारित है। NPG NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता)