Guru Purnima 2024: भक्ति दिखावे के लिए नहीं होनी चाहिए...लोग राम को पूज रहे, लेकिन उनके चरित्र की अनदेखी कर रहेः बाबा संभवराम जी

Guru Purnima 2024: गुरू पूर्णिमा के अवसर पर शिष्यों को आशीर्वचन देते हुए औघड़ बाबा संभवराम जी ने कहा कि आज मानसिक बीमारी बढ़ रही है, आपस में झगड़े बढ़ रहे हैं। यह दूषित वातावरण, दूषित खानपान का कुप्रभाव है। इससे बचने के दो ही रास्ते हैं। पहला ईश्वर की शरण में, जो कि सर्वव्यापी है और दूसरा खुद के आत्मबल से अपनी रक्षा करके।

Update: 2024-07-22 15:21 GMT

baba sambhav ram

Guru Purnima 2024: वाराणसी। गुरुपूर्णिमा के अवसर पर पड़ाव स्थित अघोर पीठ श्री सर्वेश्वरी समूह पड़ाव आश्रम में आयोजित सायंकालीन गोष्ठी में संस्था के अध्यक्ष पूज्यपाद बाबा औघड़ गुरुपद संभव राम जी ने अपने शिष्यों व श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि भक्ति का मकसद दिखावा और दंभ नहीं होना चाहिए। आवश्यकता है अभ्यंतर के दृष्टिकोण की। गुरु हाड़-मांस का शरीर नहीं होता है, गुरुपीठ में जो विचार व्यक्त होते हैं, उन विचारों की परिपक्वता ही हमारी समझ को बढ़ाती है और हमें अज्ञानता से धीरे-धीरे मुक्त करती है। भक्ति अभ्यंतर की वस्तु होती है। अपनी आँखें खोलकर इस संसार और समाज में देखना-समझना होगा और तदनुरूप निर्णय लेने होंगे। “भक्ति सब कोई करे भरमना नहीं टरे”। बाबा कीनाराम जी ने भी कहा है कि “राम नाम सब कोई कहे, राम की करे न कोय”। आज राम को तो पूज रहे हैं लेकिन उनके चरित्र की अनदेखी कर रहे हैं। राम के चरित्र को अपनाना ही राम होना है। लेकिन हम केवल बाह्य रूप में ही अपनी दृष्टि लगाये हुए हैं। मानसिक शक्ति एक बहुत बड़ी शक्ति है जो हमें उबारती है। मानसिकता खराब और विकृत होगी, हमारी संगत अच्छी नहीं होगी तो हम उस चीज को समझ नहीं पायेंगे। अपने-अपने धर्म, मजहब के हिसाब से लोग ईश्वर को पूजते हैं या उसका दंभ भरते हैं। मुझे नहीं लगता कि वह ईश्वर को मानते हैं। सब अपना-अपना उल्लू सीधा करने के लिए या अपने किसी स्वार्थ के लिए ही यह सब करते हैं। हम सबलोग उस ‘एकेश्वर’ की ही संतान हैं।


लेकिन उसके टुकड़े-टुकड़े करके अपनी-अपनी रुचि और अक्ल के हिसाब से उसको बना लेते हैं। वह तो सर्वव्यापी है, एक ईश्वर है जिसके हम सभी संतान हैं। यह दृष्टिकोण अभ्यंतर में हमलोग नहीं बना पाते हैं जिसके चलते आपस में धर्म के नाम पर लड़ते-झगड़ते हैं। पहले भी धर्म के नाम पर बहुत कत्लेआम, खून-खराबा हुआ, दूसरे धर्म का समझ कर आततायियों ने मंदिरों को तोड़ा, लोगों का कत्लेआम किया। हमारा हिंदू धर्म बहुत ही सहिष्णु है, कई लोग इसको भी बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं। हमारे मनीषियों द्वारा दिए गए उदार विचारों के चलते ही सबको संरक्षण एवं छत्रछाया मिली। हम छिन्न-भिन्न हैं इसीलिए हमलोगों को जाति-उपजाति में स्वार्थी तत्वों द्वारा बाँट दिया जा रहा है। जैसे अंग्रेज किया करते थे वैसे ही सबको लड़ाते-भिड़ाते रहो और राज करो। वर्तमान राजनीति में किसके पास कितनी सीटें आ जाएँ, एमपी-एमएलए हो जायँ, यही सब धंधा चल रहा है। अपनी रक्षा हमें स्वयं करनी है। गुरु या भगवान भी नहीं करेंगे। आपलोग निष्क्रिय होकर बैठे हुए हैं। निष्क्रियता बड़ा भारी अभिशाप है। मानव शरीर की उपयोगिता को समझें।


देश में बहुत कानून बने हैं, उसका असर क्या है? यह तो उन व्यक्तियों पर निर्भर करता है जो उसका पालन करवा रहे हैं। लेकिन कोई भी कानून मिलावटखोरी को प्रतिबंधित करने या इंसेक्टिसाइड, पेस्टिसाइड के नियंत्रण में सफल नहीं लग रहा है। लोग जानते हुए भी बाजार का जहर खा रहे हैं, उसका असर है कि सब बीमार हैं। पहले आमतौर पर बुखार, सर्दी और खाँसी ही होती थी परन्तु अब तो कैंसर, किडनी, लिवर और दिल की बीमारी आम हो गई है। लोग खड़े-खड़े खत्म हो जा रहे हैं। धन के वशीभूत लोग यह कुचक्र चला रहे हैं जो हमारे स्वास्थ्य, मनोदशा, आराम, चैन, सुख, शांति को खत्म करते हुए धन-संपत्ति प्राप्त करना चाहते हैं। आज न्यायालय के कानून और आदेश देखते होंगे- किसी की गलती से एक्सीडेंट हो गया और कोई मर गया तो उसकी भी सजा हो जाती है कि यह गैर इरादतन हत्या है। लेकिन जो जानबूझकर इतने लोगों को बर्बाद कर रहे हैं; परिवार, स्वास्थ्य, शरीर इन सब की हत्या जानबूझ के कर रहे हैं, उनके लिए कोई कानून नहीं है। आप जहर खाते रहिए, तड़पते रहिए, मरते रहिए, अपना धन लुटाते रहिए। जो हत्या कर रहे हैं, बीमार कर रहे हैं, हमारा सब कुछ छीन रहे हैं उसके लिए कोई कानून नहीं है और यदि है तो लागू नहीं है। हमलोग आंख बंद किये घूम रहे हैं। आंख बंद करेंगे तो ईश्वर भी नहीं दिखाई देगा।


इस तरह यदि हमलोग रहेंगे तो क्या होगा हमारे समाज का, परिवार का, राष्ट्र का? इस हमाम में सभी नंगे हैं, बहुत कम लोग हैं जो सज्जन हैं, सज्जन नेता है, सज्जन अधिकारी हैं। लेकिन उनको जो उचित स्थान मिलना चाहिए वह नहीं मिल रहा है। उनको किसी कोने में इधर-उधर डाल दिया जाता है। एक ईमानदार आदमी के पीछे सौ-पचास लोग पड़ जाएंगे, उसको बदनाम कर देंगे, उसको हटा देंगे, भगा देंगे, प्रताड़ित करेंगे तो वह रह नहीं पाएगा। इन लोगों के भरोसे रहेंगे तो फिर वही होगा जो पहले हमारे इतिहास में हुआ, ना उस समय हमलोग जागरूक थे ना आज हम जागरूक हैं। आज मानसिक रोग बहुत बढ़ रहे हैं, आपस के झगड़े बढ़ रहे हैं, यह सब दूषित अन्न-जल का, दूषित वातावरण का प्रभाव है। हमलोग शुद्धता पायेंगे- एक तो ईश्वर की शरण में जो सर्वव्यापी है और दूसरा अपने स्वयं के आत्मबल से अपनी रक्षा करके। आज राम भी आ जाएंगे तो लोग उन्हें रहने नहीं देंगे। कहेंगे अरे ये कहाँ से आ गये? हाँ, यदि राम का चरित्र हममें आ जाय तो हम राम नहीं तो कम-से-कम राम-तुल्य तो हो ही सकते हैं और अपने जीवन को बदल सकते हैं।


गोष्ठी की अध्यक्षता उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य सेवाओं के पूर्व अपर निदेशक डॉ०वि०पी० सिंह ने की। अन्य वक्ताओं में अवकाश प्राप्त आईएएस श्रीप्रकाश सिंह, मुम्बई की शिक्षाविद् श्रीमती गुणिता मल्होत्रा, बोकारो झारखण्ड की समाज सेविका श्रीमती श्वेता सिंह, रांची के सुमन कुमार चौबे एवं लखनऊ के भोलानाथ त्रिपाठी ने अपने विचार व्यक्त किये। मंगलाचरण यशवंत नाथ शाहदेव ने किया। गोष्ठी सञ्चालन डॉ० वामदेव पाण्डेय ने और धन्यवाद् ज्ञापन संस्था के व्यवस्थापक हरिहर यादव ने किया।

Full View

Tags:    

Similar News