Guru Ghasidas Jayanti 2025 : सामाजिक क्रांति के महानायक गुरु घासीदास : जानें सतनाम पंथ के संस्थापक का वह इतिहास, जिसने मनखे-मनखे एक समान का सिद्धांत देकर छत्तीसगढ़ को नई पहचान दी

Guru Ghasidas Jayanti 2025 : हर साल 18 दिसंबर को छत्तीसगढ़ के जन-जन में महान समाज सुधारक और सतनाम पंथ के संस्थापक गुरु घासीदास जी की जयंती का महापर्व पूरे श्रद्धा, उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है।

Update: 2025-12-16 05:05 GMT

 Guru Ghasidas Jayanti 2025 : सामाजिक क्रांति के महानायक गुरु घासीदास : जानें सतनाम पंथ के संस्थापक का वह इतिहास, जिसने मनखे-मनखे एक समान का सिद्धांत देकर छत्तीसगढ़ को नई पहचान दी

Guru Ghasidas Jayanti 2025 : हर साल 18 दिसंबर को छत्तीसगढ़ के जन-जन में महान समाज सुधारक और सतनाम पंथ के संस्थापक गुरु घासीदास जी की जयंती का महापर्व पूरे श्रद्धा, उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह दिवस मात्र एक कैलेंडर तिथि नहीं है, बल्कि यह वह पुण्य अवसर है जब हम उस महान व्यक्तित्व को याद करते हैं जिन्होंने लगभग ढाई शताब्दी पहले छत्तीसगढ़ की धरती से अंधविश्वास, छुआछूत और जातिगत भेदभाव जैसी सामाजिक बुराइयों को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए एक शक्तिशाली, शांत और अहिंसक क्रांति का सूत्रपात किया था। गुरु घासीदास जी का जीवन और उनके द्वारा स्थापित सतनाम पंथ आज भी लाखों लोगों को समता, शांति और आत्म-सम्मान के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

Guru Ghasidas Jayanti 2025 : गुरु घासीदास जी का ऐतिहासिक परिचय और प्रारंभिक जीवन

गुरु घासीदास जी का जन्म छत्तीसगढ़ के गिरौदपुरी गाँव में 18 दिसंबर, 1756 को हुआ था। उनका जन्म एक साधारण कृषक परिवार में हुआ, जहाँ उनके पिता महंगू दास और माता अमरौतिन बाई ने उन्हें प्रारंभिक जीवन के संस्कार दिए। उनकी पत्नी का नाम सफुरा माता था। जिस कालखंड में उन्होंने जन्म लिया, उस समय समाज रूढ़िवादी जाति व्यवस्था और सामंती शोषण के शिकंजे में बुरी तरह जकड़ा हुआ था। बाल्यकाल से ही उन्होंने समाज में व्याप्त असमानता, अस्पृश्यता और निम्न समझे जाने वाले लोगों पर होने वाले अत्याचारों को बहुत करीब से महसूस किया, जिसने उनके संवेदनशील मन को झकझोर कर रख दिया। इसी गहरी सामाजिक पीड़ा ने उन्हें सत्य की खोज और मानव मात्र के कल्याण के लिए समर्पित जीवन जीने की प्रेरणा दी।

ज्ञान की प्राप्ति और सतनाम पंथ की स्थापना

युवावस्था में पहुँचकर, गुरु घासीदास जी ने सांसारिक मोहमाया को त्याग दिया और परम सत्य की खोज में लंबी यात्राएँ शुरू कीं। उन्होंने जैतखाम के नीचे कठोर तपस्या और चिंतन किया, जिसके फलस्वरूप उन्हें आत्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति हुई। इस ज्ञान के प्रकाश में, उन्होंने यह महसूस किया कि ईश्वर एक है, निराकार है, सर्वशक्तिमान है और उसका कोई नाम, रूप, रंग या जाति नहीं है। यह 'सत्य नाम' (सतनाम) ही वास्तविक ईश्वर है। इसी आत्मज्ञान के आधार पर उन्होंने सतनाम पंथ की स्थापना की। उन्होंने घोषणा की कि सभी मनुष्य समान हैं और ईश्वर के नाम का जाप ही मोक्ष का एकमात्र मार्ग है। उनका यह सरल, तार्किक और मानवतावादी दृष्टिकोण तत्कालीन जटिल, कर्मकांडी हिंदू धर्म और ब्राह्मणवादी व्यवस्था के लिए एक खुली चुनौती थी।

सतनाम पंथ के मुख्य सिद्धांत और सप्त शिक्षाओं का महत्व

गुरु घासीदास जी ने समाज को एक नई दिशा देने के लिए अत्यंत सरल और व्यावहारिक सतनाम सिद्धांत दिए, जिन्हें सप्त शिक्षाएँ भी कहा जाता है। ये शिक्षाएँ लाखों अनुयायियों के जीवन का आधार बनीं और उन्हें एक नई पहचान और आत्म-सम्मान प्रदान किया।

सतनाम की आराधना: उन्होंने यह स्थापित किया कि ईश्वर निराकार है, वह सत्य नाम है, और केवल उसी की आराधना करनी चाहिए।

मूर्ति पूजा का निषेध : उन्होंने आडंबर और कर्मकांडों का विरोध करते हुए कहा कि पत्थर की मूर्तियों की पूजा करने के बजाय सत्य और न्याय की पूजा करो।

मनखे-मनखे एक समान : यह उनका सबसे क्रांतिकारी संदेश था। उन्होंने घोषणा की कि सृष्टि के सभी मनुष्य समान हैं, उनमें जाति या वर्ण के आधार पर कोई भेद नहीं है।

मांसाहार और मदिरापान का त्याग : उन्होंने शुद्ध आचरण और सात्विक जीवन पर जोर देते हुए मांसाहार, मदिरापान और अन्य सभी प्रकार के नशे को त्यागने का निर्देश दिया।

पशु बलि का विरोध : उन्होंने दया, करुणा और अहिंसा के सिद्धांत को अपनाते हुए निर्दोष पशुओं की बलि देने जैसी प्रथाओं का कड़ा विरोध किया।

चोरी और जुआ का विरोध : उन्होंने अपने अनुयायियों को ईमानदार और नैतिक जीवन जीने के लिए चोरी, जुआ और झूठ बोलने से दूर रहने की शिक्षा दी।

हल्दी रंग की जनेऊ धारण : पहचान और एकता के प्रतीक के रूप में, उन्होंने अपने अनुयायियों के लिए रुई से बनी पीले रंग की जनेऊ (जिसे सतनामी जनेऊ कहा जाता है) धारण करने का नियम बनाया।

गुरु घासीदास जी का सामाजिक और धार्मिक योगदान

गुरु घासीदास जी का योगदान केवल धार्मिक उपदेशों तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने छत्तीसगढ़ के सामाजिक ताने-बाने में एक युगांतरकारी बदलाव ला दिया।

उन्होंने दलितों, शोषितों लोगों को संगठित किया और उन्हें आत्म-गौरव के साथ जीना सिखाया। सतनाम पंथ ने इन समुदायों को एक सामूहिक पहचान दी, जिससे वे शोषण और अत्याचार का विरोध करने में सक्षम हुए। जमींदारी प्रथा और जातिगत उत्पीड़न के खिलाफ सतनामियों का यह संगठित प्रतिरोध एक बड़ी सामाजिक क्रांति थी। वे छत्तीसगढ़ में मानवाधिकारों की वकालत करने वाले पहले व्यक्ति थे। उन्होंने लोगों को शिक्षा, समानता और न्याय का महत्व समझाया। उन्होंने समाज के वंचित वर्ग को एक ऐसे जीवन की आशा दी जहाँ उन्हें केवल उनके कर्मों से पहचाना जाए, न कि उनकी जाति से। सतनाम पंथ छत्तीसगढ़ की लोक-संस्कृति, गीत (पंथी गीत) और कला का एक अभिन्न अंग बन गया है। उनके उपदेश आज भी लोक गीतों और नृत्यों के माध्यम से पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित हो रहे हैं।

गुरु घासीदास जयंती समारोह का वर्तमान स्वरूप और प्रासंगिकता

गुरु घासीदास जयंती हर साल 18 दिसंबर को छत्तीसगढ़ के कोने-कोने में बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है। इस पर्व का केंद्र गिरौदपुरी धाम होता है, जहाँ विश्व प्रसिद्ध जैतखाम स्थापित है। यह सफेद जैतखाम सत्य, शांति और सादगी का प्रतीक है।

जयंती के अवसर पर लाखों अनुयायी गिरौदपुरी और दामाखेड़ा (सतनामियों का एक अन्य महत्वपूर्ण केंद्र) में एकत्रित होते हैं। इस दौरान भव्य शोभायात्राएँ निकाली जाती हैं, जिसमें पारंपरिक पंथी नृत्य समूह उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं। पंथी नर्तक अपनी वेशभूषा, लयबद्ध संग बनाकर गुरु घासीदास जी के संदेशों को दर्शाते हैं। पूरे राज्य में सत्संग, भजन-कीर्तन और गुरु के संदेशों पर आधारित व्याख्यान आयोजित किए जाते हैं।

आज के आधुनिक युग में, जहाँ धार्मिक असहिष्णुता, सामाजिक विभाजन और आर्थिक असमानता एक वैश्विक समस्या बनी हुई है, गुरु घासीदास जी का 'मनखे-मनखे एक समान' का सिद्धांत और भी अधिक प्रासंगिक हो जाता है। उनका संदेश हमें याद दिलाता है कि मनुष्यता ही सबसे बड़ा धर्म है और सभी तरह के भेदभाव से ऊपर उठकर ही एक सच्चे, न्यायपूर्ण और विकसित समाज का निर्माण किया जा सकता है। गुरु घासीदास जयंती हमें उनके सिद्धांतों का अनुसरण करने और एक समतामूलक समाज के निर्माण के उनके सपने को साकार करने की प्रेरणा देती है।


Tags:    

Similar News