Ganesh Chaturthi 2025 : गणेश जी का हर स्वरूप कहता है बहुत कुछ, जाने क्या चढ़ाये क्या ना चढ़ाये, किन मंत्रों का जाप करें, दूर्वा-मोदक चढ़ाने के लाभ
गणेश जी का स्वरूप कुछ ऐसा है कि मनुष्य को अपने व्यक्तित्व से सम्बंधित सुधारों के लिये इन से प्रेरणा ले सकता है.आइये जानें स्वरूप के साथ गणेश जी के बारे में सब कुछ।
1.गणेश जी को शूर्प कर्ण कहा जाता है
गणेश जी के कान सूपा जैसे हैं | सूपा का कार्य है, सिर्फ ठोस धान को रखना और भूसा को उडा देना, अर्थात आधारहीन बातों को वजन न देना | हमें कान का कच्चा नहीं सच्चा होना चाहिए। कान से सुनें सभी की, लेकिन उतारें अंतर में सत्य को।
2.गणेश जी की आँखें सूक्ष्म
गणेश जी की आँखें सूक्ष्म हैं जो जीवन में सूक्ष्म दृष्टि रखने की प्रेरणा देती हैं। नाक लम्बी और बडी है जो बताती है किघ्राण शक्ति अर्थात सूंघने की शक्ति, जिससे तात्पर्य परिस्थिति और समस्याओं से है, सशक्त होनी चाहिये| मनुष्य को सुक्ष्म प्रकृति का होना चाहिये विपदा को दूर से ही सूंघ लेने का सामर्थ्य होना चाहिये |3.गणेशजी के दो दाँत हैं एक अखंड और दूसरा खंडित। अखंड दाँत श्रद्धा का प्रतीक है यानि श्रद्धा हमेशा बनाए रखनी चाहिए। खंडित दाँत है बुद्धि का प्रतीक इसका तात्पर्य एक बार बुद्धि भले ही भ्रमित हो, लेकिन श्रद्धा न डगमगाए।
तुलसी न चढायें, लाल फूल चढायें
गणेशजी पर तुलसी कभी भी नहीं चढ़ाई जाती। कार्तिक माहात्म्य में भी कहा गया है कि 'गणेश तुलसी पत्र दुर्गा नैव तु दूर्वाया' अर्थात गणेशजी की तुलसी पत्र और दुर्गाजी की दूर्वा से पूजा नहीं करनी चाहिए। भगवान गणेश को गुड़हल का लाल फूल विशेष रूप से प्रिय है। इसके अलावा चाँदनी, चमेली या पारिजात के फूलों की माला बनाकर पहनाने से भी गणेश जी प्रसन्न होते हैं। गणपति का वर्ण लाल है, उनकी पूजा में लाल वस्त्र, लाल फूल व रक्तचंदन का प्रयोग किया जाता है।
दुर्वा (दूबी) अर्पण से लाभ ही लाभ
1. गणेश कृपा हेतु गुड़ में दूर्वा लगाकर नंदी को खिलाने से रुका हुआ धन प्राप्त होता है।
2. दूर्वा के गणेश बनाकर दूर्वा से पूजा करना महान पुण्यप्रद माना जाता है।
3. गणेशजी को दूर्वा, मोदक, गुड़ फल, मिष्ठान आदि अर्पण करें। ऐसा करने से भगवान गणेश सभी मनोकामनाएं पूरीकरते हैं।
4. कुंवारी कन्या या अविवाहित युवक अपने विवाह की कामना से गणेश को मालपुए अर्पण करते हैं तो उनका शीघ्र विवाह होता है।
5. गणेश चतुर्थी को कार्य सिद्धि हेतु ब्राह्मण पूजा करके गुड़-लवण-घी आदि दान करने से धन प्राप्ति होती है। विनायक को 21 दूर्वा चढ़ाते वक्त नीचे लिखे मंत्रों को बोलें यानी हर मंत्र के साथ दो दूर्वा चढ़ाएं और आखिरी बची दूर्वा चढ़ाते वक्त सभी मंत्र बोलें।
ये मंत्र :
1.ऊँ विघ्न राजाय नम:
2.ऊँ हेरम्बाय नम:
3.ऊँ ब्रह्म वित्त माय नम:
4.ऊँ समस्त जगदाधाराय नम:
5.ऊँ वर मूषक वाहनाय नम:
6.ऊँ पार्वती शंकरोत्संग खेलनो ललनाये नम:|
मंत्रों के साथ पूजा के बाद यथाशक्ति मोदक का भोग लगाएं। 21 मोदक का चढ़ावा श्रेष्ठ माना जाता है। अंत में श्री गणेश आरती कर क्षमा प्रार्थना करें। कार्य में विघ्न बाधाओं से रक्षा की कामना करें।
स्वयं वास्तु स्वरूप हैं गणेश जी
गणेश पुराण में वर्णित है: "प्राच्यां रक्षतु बुद्धिशा ,अग्नेयां सिद्धिदायक: दक्षिणस्याम उमापुत्रो, नैऋत्यं तु गणेश्वर,प्रतिच्यां विघ्नहर्ताव्यां वायव्याम गजकर्णक:" इसतरह से गणेश जी के विभिन्न स्वरूप समस्त दिशाओं मे हमारी रक्षा करते हैं l
वास्तुदेवता की संतुष्टि गणेशजी की आराधना के बिना अकल्पनीय है। नियमित गणेशजी की आराधना से वास्तु दोष उत्पन्न होने की संभावना बहुत कम होती है।
1. यदि घर के मुख्य द्वार पर एकदंत की प्रतिमा या चित्र लगाया गया हो तो उसके दूसरी तरफ ठीक उसी जगह पर दोनों गणेशजी की पीठ मिली रहे इस प्रकार से दूसरी प्रतिमा या चित्र लगाने से वास्तु दोषों का शमन होता है।
2. भवन के जिस भाग में वास्तु दोष हो उस स्थान पर घी मिश्रित सिन्दूर से स्वस्तिक दीवार पर बनाने से वास्तु दोष का प्रभाव कम होता है।
4. घर या कार्यस्थल के किसी भी भाग में वक्रतुण्ड की प्रतिमा अथवा चित्र लगाए जा सकते हैं। किन्तु यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि किसी भी स्थिति में इनका मुँह दक्षिण दिशा या नैऋत्य कोण में नहीं होना चाहिए। 5.घर में बैठे हुए गणेशजी तथा कार्यस्थल पर खड़े गणपतिजी का चित्र लगाना चाहिए, किन्तु यह ध्यान रखें कि खड़े गणेशजी के दोनों पैर जमीन का स्पर्श करते हुए हों। इससे कार्य में स्थिरता आने की संभावना रहती है।
6.भवन के ब्रह्म स्थान अर्थात केंद्र में, ईशान कोण एवं पूर्व दिशा में सुखकर्ता की मूर्ति अथवा चित्र लगाना शुभ रहता है।