Dussehra 2025: CG के इस गांव में नहीं किया जाता रावन का दहन: मिट्टी का रावन बनाकर करते हैं वध, नाभि से निकले अमृत को पीने उमड़ती है भीड़, जानिए क्या है अनूठी परंपरा
Ravan Vadh Ki Anuthi Parampra: कोंडागांव: देशभर में एक ओर जहां दशहरे के अवसर पर रावण दहन किया जाता है। तो वहीं छत्तीसगढ़ के कोंडागांव में एक ऐसा गांव भी हैं, जहां पर रावन का दहन नहीं बल्कि वध किया जाता है। तो चलिए जानते है कि आखिर क्या है यह अनोखी परंपरा और कैसे निभाई जाती है।
Ravan Vadh Ki Anuthi Parampra: कोंडागांव: देशभर में एक ओर जहां दशहरे के अवसर पर रावण दहन किया जाता है। तो वहीं छत्तीसगढ़ के कोंडागांव में एक ऐसा गांव भी हैं, जहां पर रावन का दहन नहीं बल्कि वध किया जाता है। तो चलिए जानते है कि आखिर क्या है यह अनोखी परंपरा और कैसे निभाई जाती है।
मिट्टी के रावण का करते हैं वध
देशभर में कल 2 अक्टूबर को दशहरा का पर्व मनाया जाएगा। एक ओर जहां देशभर के लोग दशहरे के अवसर पर रावण दहन करेंगे, तो वहीं दूसरी ओर छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले के भूमका और हर्री गांव के लोग दशहरे के अवसर पर रावण का दहन नहीं बल्कि रावण का वध करते नजर आएंगे। जी हां गांंव में यह परंपरा कई पीढ़ियों से चली आ रही है। जहां ग्रामिण मिट्टी का विशालकाय रावण बनाकर उसका वध करते हैं।
रावण के नाभि से निकलने वाले तरल पदार्थ को मानते हैं अमृत
पुरानी परंपरा के मुताबिक, रावण की नाभि से अमृत निकालने का विधान है, लेकिन भूमका और हर्री गांव में अनोखी परंपरा निभाई जाती है। यहां पहले विशालकाय रावण बनाया जाता है। फिर रामलीला मंचन के बाद रावण का वध किया जाता है। इस दौरान रावण के नाभि से तरल पदार्थ निकाला जाता है, जिसे ग्रामिण अमृत मानकर अपने माथे पर तिलक के रूप में लगाते हैं।
रावण के नाभि से निकली मिट्टी से जीवन में आती है सुख शांति
भूमका और हर्री गांव के ग्रामिणों का मानना है कि मिट्टी के रावण के नाभि से निकले अमृत का तिलक लगाने से उसने जीवन में सुख शांति और शक्ति आती है। क्षेत्र में निभाई जाने वाली इस अनूठी परंपरा का रावण से कोई संबंध नहीं है, बल्कि यह स्थानीय मान्यताओं और आस्थाओं पर आधारित है। ग्रामिणों का कहना है कि गांव में यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है।
रावण दशहरा की जगह मनाया जाता है कुंभकरण दशहरा
इसी तरह कोंडागांव जिले के रांधना गांव में भी दशहरे के अवसर पर अनूठी परंपरा निभाई जाती है। यहां पर रावण की जगह कुंभकरण को ज्यादा मान्यता दी जाती है। इसलिए यहा रावण दशहरा नहीं बल्कि कुंभकरण दशहरा मनाया जाता है। जिसका आयोजन विजयदशमी के चार दिन बाद होता है। इस दौरान मिट्टी का कुंभकरण बनाकर उसको अलग वेशभूषा में सजाया जाता है और कुंभकरण को तालाब से नाव के माध्यम से रामलीला मंच तक लाया जाता है। फिर उसका वध कर नाभि से निकली मिट्टी से प्रार्थन किया जाता है। क्योंकि कुंभकरण के नाभि से निकली मिट्टी को शुभ और मंगलकारी माना जाता है।