Danteshwari Mandir Dantewada: छत्तीसगढ़ में देश का ऐसा शक्तिपीठ जहां साल में 3 बार मनता है नवरात्र, देवी एक बार मंदिर से बाहर भी निकलती हैं

Update: 2023-10-16 08:52 GMT

रायपुर। वैसे तो पुराणों में 51 शक्तिपीठ का जिक्र होता है। लेकिन छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा का दंतेश्वरी मंदिर देश के 52 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब विष्णु भगवान ने अपने चक्र से सती के शरीर को 52 भागों में विभक्त किया था, तो उनके शरीर के 51 अंग देशभर के विभिन्न हिस्सों में गिरे। 52 वां अंग उनका दांत यहां गिरा था। इसलिए देवी का नाम दंतेश्वरी और जिस ग्राम में दांत गिरा था उसका नाम दंतेवाड़ा पड़ा। बदलते वक्त के साथ मंदिर की तस्वीर भी बदलती गई। लेकिन मां दंतेश्वरी का अपने भक्तों पर आशीर्वाद ऐसा रहा कि लोगों की आस्था और विश्वास समय के साथ बढ़ता गया। नवरात्र पर दंतेवाड़ा में चारों ओर मां दंतेश्वरी के भक्तों का रेला है। कोई जमीन पर लोटते हुए नारियल लेकर पहुंच रहा है, तो कोई मन्नत की चुनरी लेकर, कोई आशीर्वाद से अभिभूत होकर आया है, तो कोई मुरादों की पोटली लिए पहुंचा है। जय मां दंतेश्वरी के जयकारे से पूरा आसमान गूंज उठा है।


6 भुजाओं वाली है मां दंतेश्वरी की प्रतिमा

डाकिनी और शाकिनी नदी के संगम पर स्थित मां दंतेश्वरी मंदिर में स्थापित देवी दंतेश्वरी बस्तर क्षेत्र के चालुक्य राजाओं की कुल देवी थीं। इन्होंने ही इस मंदिर की स्थापना की थी। जिसका गर्भगृह करीब आठ सौ साल से भी पुराना है। चार भागों में विभाजित इस मंदिर का निर्माण द्रविड़ शैली में हुआ था। इस मंदिर के अवयवों में गर्भगृह, महा मंडप, मुख्य मंडप और सभा मंडप शामिल हैं। गर्भगृह और महामंडप का निर्माण पत्थरों से किया गया है। गर्भगृह में स्थापित 6 भुजाओं वाली माता दंतेश्वरी की प्रतिमा ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित है। देवी ने दाईं ओर की भुजा में देवी ने शंख, खड्ग और त्रिशूल धारण कर रखे हैं, जबकि बाईं ओर देवी के हाथों में घंटी, पद्म और राक्षसों के बाल हैं। प्रतिमा के ऊपरी भाग में भगवान नरसिंह अंकित हैं। इसके अलावा देवी की प्रतिमा के ऊपर चांदी का एक छत्र है।


सरई और सागौन से बना मंदिर

सैकड़ों साल पहले जब दंतेश्वरी मंदिर स्थापित हुआ तो उस समय सिर्फ गर्भगृह ही था। मंदिर जैसा कुछ नहीं था, बाकी का पूरा हिस्सा खुला था। आसपास कोई और स्ट्रक्चर नहीं था। लेकिन जैसे-जैसे बस्तर राज परिवार के राजा बदले तो उन्होंने अपनी आस्था के अनुसार मंदिर का स्वरूप भी बदला। लेकिन मंदिर के गर्भगृह से कभी कोई छोड़खानी नहीं की गई। गर्भगृह स्थित मां दंतेश्वरी देवी की मूर्ति ग्रेनाइट पत्थरों से बनी है। फिलहाल जो मंदिर है, उसके बाहर का हिस्सा बस्तर की रानी प्रफुल्लकुमारी देवी ने बनवाया था। ये बेशकीमती इमारती लकड़ी सरई और सागौन से बना हुआ है। आज अपने इस अनोखे स्वरुप के साथ दंतेश्वरी मंदिर भव्य रूप ले चुका है।


हर साल होती है तीन नवरात्र

देश के सारे शक्तिपीठों में जहां हर साल चैत्र और शारदीय दो नवरात्र मनाए जाते हैं। लेकिन ये बात बहुत कम लोग ही जानते हैं कि दंतेवाड़ा ऐसी जगह है जहां साल में दो नहीं, तीन नवरात्र मनाए जाते हैं। हिंदी कैलेंडर के मुताबिक फागुन के महीने में यहां फागुन नवरात्र होता है। स्थानीय भाषा में इसे फागुन मड़ई भी कहते हैं। फागुन मड़ई के दौरान भी 9 दिनों तक नवरात्र की तरह विधि-विधान से दंतेश्वरी देवी की पूजा अर्चना की जाती है।


जब मंदिर से बाहर निकलती हैं देवी

दंतेश्वरी मंदिर शायद देश की इकलौती ऐसी देवी मंदिर है, जहां की देवी साल में एक बार मंदिर से बाहर भी निकलती हैं। बस्तर दशहरा में शामिल होने के लिए मां दंतेश्वरी मंदिर से बाहर निकलतीं हैं। बस्तर दशहरा पूरे विश्व में विख्यात है, जहां रावण का दहन नहीं किया जाता। बल्कि रथ निकाली जाती है और ये नगर परिक्रमा करती है। विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व में शामिल होने हर साल शारदीय नवरात्र की पंचमी पर आराध्य देवी मां दंतेश्वरी को निमंत्रण देने के लिए बस्तर के राज परिवार के सदस्य मंदिर पहुंचते हैं। यह प्रथा सदियों से चली आ रही है। अष्टमी पर माता अपने भक्तों को आशीर्वाद देने मंदिर से निकलती हैं। माता के छत्र और डोली को बस्तर दशहरा में ले जाया जाएगा। इस दौरन जगह-जगह माता की डोली और छत्र का भव्य रूप से स्वागत किया जाता है। जब तक दंतेश्वरी माता दशहरा में शामिल नहीं होती हैं, तब तक यहां दशहरा नहीं मनाया जाता है। करीब 610 साल पुरानी बस्तर दशहरा की रस्में 75 दिनों तक चलती है।

देवी के बाद करें भैरव बाबा के दर्शन

गर्भगृह के बाहर दोनों तरफ मां दंतेश्वरी के अंगरक्षक भैरव बाबा की दो बड़ी मूर्तियां हैं। चार भुजाओं वाली इन मूर्तियों के बारे में कहा जाता है कि देवी दर्शन करने के बाद भैरव बाबा के दर्शन करना जरूरी है। ऐसी मान्यता है कि भक्त भैरव बाबा को प्रसन्न कर लें तो वे उनकी मुराद माता तक पहुंचा देते हैं और उनकी मनोकामना जल्दी पूरी हो जाती है।

मन्नत पूरी करता है गरुण स्तंभ

सदियों पहले यहां गंगवंशीय और नागवंशीय राजाओं का राजपाठ था। फिर काकतीय वंश यहां के राजा बने। जितने भी राजा थे उनमें कोई देवी की उपासना करता था तो कोई शिवजी का भक्त था। कुछ विष्णु भगवान के भी भक्त हुआ करते थे। जिन्होंने मंदिर के मुख्य द्वार के सामने गरुड़ स्तंभ की स्थापना करवाई। गरुड़ स्तंभ के बारे में कहा जाता है कि इस स्तंभ को जो भी अपने दोनों हाथों में समा ले और उसके दोनों हाथों की उंगलियां आपस में मिल जाएं तो उसकी मन्नत पूरी होती है।

ऐसे पहुंचें दंतेवाड़ा

दंतेवाड़ा पहुंचने के लिए रायपुर और विशाखापट्टनम निकटतम प्रमुख हवाई अड्डे हैं। ये दोनों जगह जिले मुख्यालय दंतेवाड़ा से सड़क मार्ग दूरी करीब 350 किलोमीटर हैं। दंतेवाड़ा से 74 किलोमीटर की दूरी पर जगदलपुर निकटतम मिनी हवाई अड्डा है जिसमें रायपुर, हैदराबाद और विशाखापट्टनम के साथ उड़ान कनेक्टिविटी है। विशाखापट्टनम जिला मुख्यालय दंतेवाड़ा से ट्रेन से जुड़ा हुआ है। विशाखापट्टनम और दंतेवाड़ा के बीच दो दैनिक ट्रेनें उपलब्ध हैं। इसके अलावा रायपुर और दंतेवाड़ा के बीच नियमित लग्जरी बस सेवाएं उपलब्ध हैं। दंतेवाड़ा नियमित बस सेवाओं के माध्यम से हैदराबाद और विशाखापट्टनम से भी जुड़ा हुआ है। ओडिशा, तेलंगाना, और महाराष्ट्र के भक्तों के लिए भी राह आसान है। ओडिशा के भक्त पहले जगदलपुर, तेलंगाना के सुकमा और महाराष्ट्र के बीजापुर जिला होते हुए सीधे दंतेवाड़ा पहुंच सकते हैं। ये तीनों जिले दंतेवाड़ा के पड़ोसी जिले हैं।

Tags:    

Similar News