छत्तीसगढ़ में मां चंडी का वो मंदिर, जहां भालू भी आते हैं प्रसाद ग्रहण करने, भक्तों की सभी मनोकामनाएं होती हैं पूरी, जानें इतिहास
छत्तीसगढ़ में माता के कई प्रसिद्ध देवी मंदिर मौजूद हैं, जिनके प्रति लोगों में बहुत आस्था है। ऐसा ही एक मंदिर महासमुंद जिले के घुंचापाली गांव में है, जहां मां चंडी निवास करती हैं। आइए हम आपको इस मंदिर के बारे में बताते हैं..
Maa Chandi Mandir Ghunchapali: छत्तीसगढ़ एक प्राचीन नगरी रही है, जिसे प्राचीन समय में दक्षिण कोशल के नाम से जाना जाता था। यहां कई प्रसिद्ध देवी मंदिर हैं, जिनकी पूरी देश में बहुत मान्यता है। आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताएंगे, जहां भालू भी माता का प्रसाद ग्रहण करने के लिए आते हैं।
तांत्रिक सिद्धियों के लिए जाना जाता था चंडी मंदिर
मां चंडी का मंदिर महासमुंद शहर से 40 किलोमीटर दूर घुंचापाली गांव में स्थित है। प्राचीन काल से ये मंदिर तांत्रिक सिद्धियों के लिए जाना जाता था। यहां तांत्रिक और अघोरी सिद्धियां प्राप्त करने के लिए तप और साधना करने के लिए आते थे। बाद में साल 1950-51 के आसपास लोगों के लिए चंडी माता मंदिर को खोल दिया गया।
मां चंडी की प्रतिमा साढ़े 23 फुट ऊंची और दक्षिण मुखी
इसके बाद से यहां माता की पूजा-अर्चना आम लोग भी करने लगे। तांत्रिक के साथ ही वैदिक रीति से भी माता की पूजा-अर्चना शुरू हुई। यहां मां चंडी की प्रतिमा साढ़े 23 फुट ऊंची और दक्षिण मुखी है। दक्षिण मुखी प्रतिमा होने के कारण इसका बहुत महत्व है। पहले गोड़ बाहुल्य और ओडिशा भाषीय क्षेत्र होने के कारण यह तंत्र साधना के लिए महत्वपूर्ण स्थान था। उस वक्त ये गुप्त साधना स्थली था। कालांतर में तंत्रोक्त प्रसिद्ध उड्डीस शक्ति पीठ के नाम से भी ये प्रचलित हो गया।
माता की प्रतिमा बढ़ने का दावा
इधर मंदिर के पुजारी का दावा है कि माता की प्रतिमा साढ़े 23 फीट से पहले छोटी थी, लेकिन इसकी ऊंचाई धीरे-धीरे बढ़ रही है और अब ये साढ़े 23 फीट की है। माता का मंदिर मनोरम प्राकृतिक दृश्यों से घिरा हुआ है। यहां की नैसर्गिक सुंदरता लोगों का ध्यान बरबस ही खींच लेती है। श्रद्धालु 2 पहाड़ियों के बीच से होकर मंदिर तक पहुंचते हैं।
भालू का परिवार भी आता है प्रसाद खाने
इस मंदिर की बहुत मान्यता है। मान्यता है कि मां सभी भक्तों की मनोकामना जरूर पूरा करती हैं। वहीं हैरानी की बात ये है कि मंदिर में भालू भी माता का प्रसाद खाने के लिए आते हैं और किसी भी श्रद्धालु को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। वे मां का प्रसाद पाकर वापस जंगल में चले जाते हैं।
आरती में भी शामिल होते हैं भालू, गर्भ गृह तक भी जाते हैं
भालू माता की आरती में भी शामिल होते हैं और गर्भ गृह तक भी जाते हैं, ये देखकर यहां आने वाले श्रद्धालु भी आश्चर्यचकित हो जाते हैं। हर साल चैत्र और शारदीय नवरात्र पर यहां सौकड़ों की संख्या में मनोकामना ज्योत प्रज्वलित होते हैं। यहां नवरात्र के मौके पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है।
साल में दो बार चैत्र और शारदीय नवरात्र पर लगता है मेला
चैत्र और शारदीय नवरात्रि में दो बार यहां हर साल मेला भी लगता है, जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु मां चंडी के दर्शन के लिए आते हैं। यहां चंडी मां के मंदिर के अलावा बटुक भैरव, बजरंग बली, गुफा के अंदर मां काली और शिव जी के मंदिर भी देखने लायक हैं। यहां नवरात्रि पर हर दिन विभिन्न आयोजन और जसगीत होते हैं। यहां भंडारे का भी आयोजन होता है।