Chhath Puja Thekua Recipe: आखिर छठ पूजा में ठेकुआ क्यों बनाया जाता है? क्या है इसके पीछे की मान्यता और इसे बनाने की विधि
Thekua History In Hindi: छठ पूजा में बहुत से पकवान छठी मैया के लिए बनते हैं, लेकिन कहा जाता है कि, बिना 'ठेकुआ' के छठ पूजा अधूरी होती है। क्या बिना ठेकुआ के हो सकती है छठ पूजा? क्या है इसका महत्व और इसे बनाने की रेसिपी क्या है?
Chhath Puja Thekua Recipe
Chhath Puja 2025: उत्तर भारत और बिहार के लोगों का एक बड़ा और खास त्योहार छठ पूजा जो, इस साल 25 अक्टूबर से शुरू होने वाला है। यह पर्व सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि आस्था और विश्वास का प्रतीक है। इसे खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार में इसे बहुत ही जोश और श्रद्धा से मनाया जाता है। छठ पूजा की शुरुआत ‘नहाय-खाय’ से होती है, जिसमें पूजा के पहले साफ-सफाई और शुद्धि की जाती है।
यह त्योहार कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की छठी तारीख को मनाया जाता है और इसका संबंध सूर्य देव और छठी माता से होता है। इस पूजा में कई तरह के प्रसाद बनाए जाते हैं, लेकिन ठेकुआ (महा प्रसाद) को सबसे ज्यादा खास माना जाता है और इसे बड़े प्यार से बनाया और बांटा जाता है। लोग इसे बहुत श्रद्धा और धूमधाम से मनाते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि, ठेकुआ को ही इतना महत्व क्यों दिया जाता है। क्या इसके पीछे कोई पौराणिक कथा या मान्यता है। तो आज हम आपको इन्ही सब सवालों के जवाब देने वाले है। तो आइये जानते है इसके बारे में विस्तार से..
ठेकुआ (प्रसाद नहीं आस्था का प्रतीक)
छठ पूजा के दौरान ठेकुआ को मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ियों की आंच में बनाया जाता है। इसे बनाते समय महिलाएं पारंपरिक लोकगीत गाती हैं, जिससे माहौल पूरी तरह भक्तिमय हो जाता है। सुबह और शाम अर्ध्य देते समय ठेकुआ को पूजा में विशेष रूप से शामिल किया जाता है। यह प्रसाद न सिर्फ स्वादिष्ट होता है बल्कि इसे बनाने में जो भाव और श्रद्धा जुड़ी होती है, वह इसे और भी खास बना देती है।
'ठेकुआ' नाम की दिलचस्प कहानी
ठेकुआ नाम को लेकर दो मान्यताएं प्रचलित हैं। पहली मान्यता के अनुसार, यह शब्द 'ठोकना' क्रिया से लिया गया है, जिसका मतलब होता है हथौड़ा मारना। पुराने समय में ठेकुआ के आटे को सांचे में दबाने के लिए भारी वस्तु या हथौड़े का इस्तेमाल किया जाता था। इसलिए इसे ठेकुआ, ठकुआ, ठेकरी, खजूर या रोठ जैसे नामों से भी जाना जाता है। दूसरी मान्यता के अनुसार, ठेकुआ शब्द बिहारी भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है 'उठाना' या 'स्थापित करना'। छठ पूजा में व्रती जब अर्ध्य देने के बाद प्रसाद उठाते हैं और उसे खाते हैं, तो यह क्रिया ठेकुआ नाम से जुड़ी मानी जाती है।
ठेकुआ का इतिहास और धार्मिक मान्यता
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ठेकुआ का इतिहास बहुत पुराना है। यह छठी मैया का प्रिय प्रसाद माना जाता है। मान्यता है कि, इस प्रसाद को छठी मैया को अर्पित करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है। पूजा के समापन पर ठेकुआ को प्रसाद के रूप में सभी लोगों में बांटा जाता है। वही, कुछ इतिहासकारों का मानना है कि, करीब 3700 साल पहले ऋग्वैदिक काल में एक मिष्ठान 'अपूप' का जिक्र मिलता है, जो ठेकुआ से काफी मिलता-जुलता है। एक और कथा के अनुसार जब भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद बोधिवृक्ष के नीचे 49 दिनों का व्रत रखा था, तब दो व्यापारी उन्हें आटा, घी और शहद से बना एक व्यंजन अर्पित किया था।
ठेकुआ बनाने के लिए जरूरी सामग्री
1. गेहूं का आटा (2 कप)
2. गुड़ (आधा कप)
3. इलायची पाउडर (1 चम्मच)
4. 3 या 4 बड़े चम्मच घी
5. काजू, किशमिश आदि
ठेकुआ बनाने की आसान विधि
सबसे पहले पानी में गुड़ को उबालें जब तक वह पूरी तरह पिघल न जाए, फिर गैस बंद कर दें। अब एक थाली में आटा लेकर गुड़ वाले पानी की मदद से उसे गूंथ लें। इसमें इलायची पाउडर और ड्राई फ्रूट्स मिलाएं। जब आटा अच्छी तरह तैयार हो जाए तो उसकी छोटी-छोटी लोइयां बना लें और फिर उन्हें ठेकुआ के आकार में ढालें। एक पैन गर्म करें, उसमें घी डालकर ठेकुओं को अच्छी तरह तल लें। इस तरह आपका छठ पूजा का स्वादिष्ट ठेकुआ तैयार हो जाता है।
छठ पूजा में ठेकुआ का महत्व
छठ पूजा में ठेकुआ को विशेष स्थान दिया जाता है। यह प्रसाद व्रती के संकल्प और श्रद्धा का प्रतीक होता है। इसे बनाते समय महिलाएं पारंपरिक गीत गाती हैं और पूरे माहौल को भक्तिमय बना देती हैं। पूजा के बाद इसे घर-परिवार और आस-पड़ोस में बांटा जाता है, जिससे प्रेम और भाईचारा बढ़ता है।
ठेकुआ से जुड़ी कुछ खास बातें
ठेकुआ को मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ियों की आग से बनाया जाता है और इसे बनाते समय कभी भी आधुनिक उपकरण या गैस का इस्तेमाल नहीं होता। महिलाएं जब ठेकुआ बनाती हैं तो वह पारंपरिक गीत गाती हैं जिससे पूरा माहौल पवित्र और भक्तिमय हो जाता है। यह प्रसाद पूरी तरह से शुद्ध और सात्विक होता है, इसलिए छठ पूजा के बाद इसे सबमें बांटना बहुत शुभ माना जाता है।