Bastar Dussehra : 1700 देवी-देवताओं का अनूठा संगम, बस्तर दशहरा में राशन लेने कतार में खड़े हुए देवता

Bastar Dussehra 2025 : बस्तर संभाग के गांव-गांव से जो देवी-देवता दशहरा पर्व में शामिल होने पहुंचते हैं, उनको लाइन में लगकर राशन और पूजा का सामान लेना होता है.

Update: 2025-10-03 07:37 GMT

Bastar Dussehra 2025 :  छत्तीसगढ़ के बस्तर का विश्व प्रसिद्ध त्यौहार बस्तर दशहरा सबसे अनूठा है. 75 दिनों तक चलने वाला यह महापर्व अपनी परम्पराओं और मान्यताओं से विश्व पटल में अपनी अलग ही छाप छोड़ता है. इस दशहरा में रावण दहन नहीं होता, बल्कि पूरे बस्तर संभाग से देवी देवता बस्तर दशहरा (Bastar Dussehra) में शामिल होने के लिए पहुंचते हैं. और इस ऐतिहासिक उत्सव के संगम के इस बार रिकॉर्ड तोड़ 1700 देवी-देवता शामिल हुए. दो दशक पहले तक यह संख्या 500 थी. हर साल आंकड़ा में वृद्धि हो रही है. गौरतलब है की 7 जुलाई से शुरू हुआ यह दशहरा  7 अक्टूबर तक चलेगा. 


बस्तर दशहरा की सबसे अनोखी बात यह है की पूरे संभाग से देवी देवता बस्तर दशहरा (Bastar Dussehra) में शामिल होने के लिए पहुंचते तो हैं ही साथ ही देवी-देवताओं को राशन की लाइन में लगना होता है. जी हां संभाग भर के गांव-गांव से जो देवी देवता दशहरा पर्व में शामिल होने पहुंचते हैं, उनको लाइन में लगकर राशन और पूजा का सामान लेना होता है.


जानकारों  के अनुसार पहले केवल गांव के मुख्य देवी-देवता ही शामिल होते थे. अब लोग अपने घर के कुल देवी-देवता को भी पर्व में शामिल करने लगे हैं और इसी के चलते देवी-देवताओं की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है, जो अब 500 से बढ़कर इस बार 1700 तक पहुंची  है. इनमें सबसे अधिक देवी-देवता बस्तर जिले से है, कुछ ओडिशा और छत्तीसगढ़ की सीमावर्ती बस्तियों से भी पहुंचे हैं. 

इस सामान की एंट्री होती है, तब जाकर मिलता है देवी-देवताओं को राशन



जब देवी देवताओं को लेकर पुजारी लाइन लगाकर प्रशासन के अधिकारी के पास पहुंचते हैं तो अधिकारियों को देवी-देवताओं के चिह्न जिसमें मंदिर का छत्र, तोड़ी और टंगिया आदि की एंट्री करवानी होती है, तब जाकर पूजा सामान मिलता है. इस पूजा के सामान में 2 किलो चांवल, दाल, तेल, घी, नमक, नारियल समेत अन्य जरूरत के सामान दिए जाते हैं.

दशहरा समिति करता है इंतजाम

बस्तर दशहरा पर्व को बेहतर तरीके से मनाने के लिए एक व्यवस्था तैयार होती है जिसे दशहरा समिति के नाम से जाना जाता है. इस समिति के अध्यक्ष बस्तर के सांसद और सचिव तहसीलदार होते हैं. समिति के सचिव पर पूरी व्यवस्था की जिम्मेदारी होती है और पर्व में शामिल होने के लिए पहुंचने वाले देवी देवाताओं को पूजा के सामान के साथ राशन की व्यवस्था भी तहसील कार्यालय से होती है. हर साल की तरह इस साल भी दशहरे की रस्म के दौरान यहां देवी देवताओं को लाइन में लगाकर राशन दिलाया गया.




देवी देवताओं के छत्र और चिन्ह से मिलती है एंट्री

पुजारियों के अनुसार वे अपने गांव के कुल देवी देवताओं को लेकर यहां पहुंचे हैं. वे हर साल ऐसे ही लाइन में लगकर पूजा की सामाग्री और राशन लेते हैं. खास बात ये है कि इस लाइन में अपने साथ देवी देवताओं की छत्र, तोड़ी और अन्य चिन्हों को लेकर भी पुजारी खड़े होते हैं जिसके आधार पर तहसील कार्यालय में उनकी एंट्री की जाती है और इसी आधार पर यह कहा जाता है कि देवी देवता भी लाइन में लगकर सामान ले रहे हैं. इस प्रक्रिया के बाद ही उन्हें पूजा का सामान और राशन दिया जाता है.


भंडारण देवी की कोठी से मिलता है राशन 


बस्तर के देवी-देवताओं को राशन देने की पम्परा भंडारण देवी से जुडी है. मान्यता अनुसार उनकी कृपा से कोठी कभी खाली नहीं होती. 1966 से इसका सञ्चालन हो रहा है. हर साल दशहरा शुरू होते ही कोठी खोली जाती है और यहीं से रोज सामान वितरित होता है . काछनगादी रस्म से लेकर मावली विदाई तक देवी देवताओं का आना-जाना चलता रहता है. 



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