Baba Sambhav Ram: सत्य, अध्यात्म, आत्मबल और आत्मनिर्भरता में बड़ी ताकत होती है, लोग देव दुर्लभ शरीर की उपयोगिता को समझेंः बाबा संभव राम जी...
Baba Sambhav Ram: वाराणसी के पड़ाव स्थित अघोर आश्रम में गुरू पूर्णिमा 2024 समारोह का आज आखिरी दिन था। इस मौके पर बाबा संभव राम जी ने शिष्यों को जीवन जीने के तरीके पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि अध्यात्म के अवलंबन से जीवन के कष्ट भी आदमी आसानी से झेल जाता है। उन्होंने कहा, सच्चाई में बड़ी ताकत होती है। काम ऐसा करें कि आप आत्मनिर्भर बनें, न कि हमेशा किसी पर निर्भर रहे। खासकर, उन्होंने युवाओं से कहा कि देव दुर्लभ शरीर के साथ अगर अत्याचार किया जाएगा, तो इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
Baba Sambhav Ram: वाराणसी। गुरू पूर्णिमा 2024 के मौके पर आयोजित तीन दिवसीय कार्यक्रम के आखिरी दिन पड़ाव स्थित अघोर आश्रम में युवा और महिला सम्मेलन हुआ। इसमें शिष्यों को आशीर्वचन देते हुए सर्वेश्वरी समूह के अध्यक्ष औघड़ बाबा संभव राम जी ने कहा कि हम सब लोग देख रहे हैं कि जीव ही जीव का भोग कर रहा है। ‘जीव जीवस्य भोजनम्’। मनुष्य शरीर की उपयोगिता को समझने की कोशिश करिए। जो अभी युवा लोग हैं उनको समझाना बहुत आवश्यक है कि मनुष्य की उपयोगिता क्या है। आज जो यह देव दुर्लभ मनुष्य शरीर हमें मिला है इसके साथ हम अन्याय करेंगे, अत्याचार करेंगे तो उसका प्रतिफल हमें भोगना ही पड़ेगा।
बाबा संभवराम जी ने कहा कि आज की गोष्ठी में युवाओं ने जो विचार रखे उससे ह््रदय बहुत ही गद्गद् होता है, बहुत संतुष्टि होती है कि जो बीजारोपण किया गया है वह अब पुष्पित-पल्लवित होता दिखाई दे रहा है तो आगे चिंता हमें नहीं करनी। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि इतने बड़े देश और समाज में ऐसा नहीं हो रहा है। वह कैसे जागरूक होगा? हमारी बुद्धि, हमारा विवेक और मनुष्य मन की जो प्रकृति है उसके अनुकूल क्या है क्या नहीं है वह तो उन अघोरेश्वर की वाणियों को पढ़ने, सुनने, मनन करने के बाद ही समझ में आएगा। बहुत से भटकाव हैं हमारे सामने, बहुत सी चीजों से हमलोग भटक जाते हैं। समय निकला जा रहा है पता नहीं लग रहा है, कल जो हमारे बीच में थे, वह अब चले गए, हमलोग भी उसी अवस्था से गुजर के यहाँ से चले जायेंगे। हमारे साथ जाएगा क्या?
हमारे साथ हमारे संस्कार जाएंगे, हमारे कर्म जाएंगे। भोग किसी का कटता नहीं है, उसको भोगना ही पड़ता है। हम ऐसा कृत्य ही ना करें कि हमें दुःख-कष्ट झेलना पड़े। ऐसे स्थान पर आकर हमें यही शिक्षा मिलती है कि इसको भी हम झेल लेंगे। क्योंकि हमारी या किसी और की त्रुटि के कारण ही हम इस कष्ट को झेल रहे हैं। उसके लिए भी हमें रोना नहीं है, पश्चाताप नहीं करना है। जीवन में आत्मबल होना चाहिए। यह ऐसे ही स्थान से, उन महापुरुषों की वाणियों से, उनकी कृतियों से, उनके कार्यों से ही प्राप्त होगा। क्योंकि यह विवेक किसी स्कूल, कॉलेज में कहीं नहीं मिलता है। हम सब लोग देख रहे हैं कि जीव ही जीव का भोग कर रहा है। ‘जीव जीवस्य भोजनम्’। मनुष्य शरीर की उपयोगिता को समझने की कोशिश करिए। जो अभी युवा लोग हैं उनको समझाना बहुत आवश्यक है कि मनुष्य की उपयोगिता क्या है।
आज जो यह देव दुर्लभ मनुष्य शरीर हमें मिला है इसके साथ हम अन्याय करेंगे, अत्याचार करेंगे तो उसका प्रतिफल हमें भोगना ही पड़ेगा। हमें कहीं पहुँचना है तो हमें ही चल कर पहुँचना होगा। इस संसार में हमको कुछ-न-कुछ करना है, आगे बढ़ते रहना है। हम यह नहीं कह रहे हैं कि आप कुछ न करिए या पीछे ही रहिए। आप आगे बढ़ें, लेकिन सबसे पहले आपको अध्यात्म का अवलंबन लेना ही पड़ेगा। बगैर उसके हमारा जीवन पूर्ण जीवन नहीं है। वह विवेक, वह बुद्धि, वह समझ हमें अपने ध्यान-धारणा से मिलेगी। अपने कार्यों को करने के पश्चात् या उसके पूर्व या उसके मध्य में जब भी हमें समय मिले हमलोग करेंगे तो एक समझ हममें आएगी। जब वह अनुभूति होने लगेगी तो आपको सभी व्यर्थ लगने लगेगा। बाजार से गुजरा हूँ, खरीदार नहीं हूँ।
अध्यात्म की शक्ति को जगाने के बाद संसार में रहते हुए, सब कुछ करते हुए भी हमारी अंतरात्मा, हमारी मनोदशा इस प्रकार की हो जाएगी कि हमें वह दुख कष्ट के बारे में जानकारी होगी, संसार के बारे में, सांसारिकता के बारे में जानकारी होगी तब हम किसी भी कार्य को चाहे किसी भी क्षेत्र में हो उसको करने में सक्षम होंगे। किसी का भला करते हैं, किसी को कुछ देते हैं तो बहुत अच्छा भी लगता है। उसका जो प्रतिफल होता है वह हमें प्राप्त होता है बहुत बड़ी आंतरिक संतुष्टि मिलती है। यह नहीं कह रहा हूं कि कोई निकम्मा आदमी को आप देते रहिए उसका भी जीवन बर्बाद करिए। जैसे हमारे देश में भी देख रहे हैं कि अपना वोट लेने के लिए सबकुछ फ्री में बाँटते जा रहे हैं। इससे लोग और भी निकम्मा हो गए कि अब तो पैसा आ ही रहा है हमको कुछ करना ही नहीं है। क्यों हम काम करें जब बिना मेहनत के आ रहा है। लेकिन जिस दिन बंद हो जाएगा उस दिन तो अराजकता होगी क्योंकि आदत पड़ गई है। आदत एक ऐसी चीज है जो जल्दी छूटती नहीं है। जैसे हम कोई पौधा लगाते हैं और उसमें रोज पानी देते रहेंगे तो उसकी जड़ें पानी लेने के लिए ऊपर आ जाया करेंगी।
क्योंकि उसकी आदत बन जाती है। दो दिन पानी नहीं दीजिए तो सूखने लगेगा। और यदि उसको बढ़िया से जमीन तैयार करके, गड्ढा खोद के खाद देकर, उसी में पानी डाल दिए, गर्मी में या बरसात के बाद कभी भी, किसी भी मौसम में और उसमें पानी डालने के बाद पौधे को लगाकर सूखी मिट्टी ऊपर से डालकर खूब दबा दिए तो उसकी आदत बन जाएगी नीचे ही से पानी लेने की। फिर उसको लम्बे समय तक पानी देने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। क्योंकि उसकी आदत बन गई है। वह नीचे अपनी जड़ों को ले जा रहा है और नीचे ही से पानी ले ले रहा है। वह स्वपोषित हो जाता है। यही गुण, यही स्वभाव यदि हमलोगों में हो जाय तो हमलोग भी आत्मनिर्भर बन जायेंगे। यही सब बताया जाता है आश्रमों में, यहाँ आकर आप अपनी जड़ों को मजबूत करें। अपनी जड़ों को कहाँ रखना है उसके बारे में भी हमलोग सोचें। महापुरुषों की बातों का अवलंबन लें।
धर्म, हम कहते हैं- कि हमारा सुबह का धर्म, दोपहर का धर्म, शाम का धर्म, रात का धर्म, माता-पिता के सामने का धर्म, बड़ों के सामने का, छोटों के सामने का, बुजुर्गों के सामने का, समाज में जिसकी जो भी परिस्थिति है उनके सामने का धर्म, तो हमारा धर्म यही है। हमारी संस्था भी विशुद्ध आध्यात्मिक और सामाजिक संस्था है। बगैर आध्यात्मिक हुए समाज में टिक नहीं पायेंगे। जैसा आज का समाज है वह तो बर्बाद करके रख दे रहा है। हमारे अगुआ लोगों का जो चरित्र है, कार्य है, वही देख रहा है कि सब कुछ झूठ-साँच चल रहा है। सत्य में जो शक्ति होती है उसको हमलोग पहचानें। उसको भी पहचानना जरूरी है। सत्य बोलने की दुहाई देंगे तो हमसे बड़ा झूठा भी कोई नहीं होगा। हम जानते हैं किसी चीज को किसी को देने से उसका नुकसान होगा, बीमार होगा, उसकी जान भी जा सकती है, लेकिन सत्य कहकर उसको दे देंगे तो उसका नुकसान होगा। जिस तरह माँ के पास मिठाई होती है, बच्चा माँगता है तो माँ झूठ बोल देती है कि नहीं है। तो यह झूठ नहीं है। वही बड़ा सत्य है कि उसका स्वास्थ्य उसके दांत, उसका पेट खराब होगा इस चीज देने से। आप अपने कर्म पर ध्यान दीजिए, अपने-आप पर ध्यान दीजिए, अपने-आप पर विश्वास करना सीखें। अपने-आप पर विश्वास करिए, दूसरे पर विश्वास करेंगे तो हो सकता है धोखा भी खा जायँ। विश्वास भी अति आवश्यक चीज है बिना विश्वास के कुछ नहीं होता है।
इस सम्मलेन की अध्यक्षता प्रयागराज की डॉ० वीणा सिंह ने किया। अन्य वक्ताओं में राष्ट्रदीप सिंह, यदुनाथ शाहदेव, सिद्धार्थ गौतम, अलोक सिंह, आशुतोष बहादुर, सीमा सिंह, शशि सिंह, डॉ० नेहा ठाकुर, जाह्नवी, शुभ्रा ने अपने विचार व्यक्त किये। पूर्णिमा, शालिनी, रेखा और नचिकेता ने भजन गाया तथा राशी ने मंगलाचरण किया। मंच संचालन सुष्मिता ने तथा संस्था के मंत्री डॉ० एस०पी० सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
इससे पूर्व प्रातः 7 बजे सफलयोनि का सामूहिक पाठ किया गया और 8 बजे से श्री सर्वेश्वरी समूह का 63वाँ अखिल भारतीय वार्षिक अधिवेशन संस्था अध्यक्ष पूज्यपाद बाबा औघड़ गुरुपद संभव राम जी की अध्यक्षता में संपन्न किया गया। इस अधिवेशन में श्री सर्वेश्वरी समूह की देश भर में फैली शखाओं के पदाधिकारियों ने अपने जनसेवा के कार्यों का दिशा निर्देश संस्था के केन्द्रीय पदाधिकारियों से प्राप्त किया और अपने सुझाव व अपनी शाखा द्वारा भविष्य में किये जाने वाले जनसेवा कार्यक्रमों की रूपरेखा रखी।