Aghoreshwar Baba Sambhav Ram: अनैतिक ढंग से अर्जित संपत्ति का दुष्प्रभाव बच्चों और परिजनों पर पड़ता हैः बाबा संभव राम...

Aghoreshwar Baba Sambhav Ram: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में अघोरेश्वर भगवान राम के महाविभूतिस्थल के वार्षिकोत्सव के समापन अवसर पर बोलते हुए गुरूपद बाबा संभव राम ने कहा कि गलत ढंग से कमाए धन का दुष्प्रभाव उनके परिजनों पर पड़ता है। उनके परिजनों की मानसिकता को दूषित करते हैं।

Update: 2024-05-16 16:22 GMT

Baba Sambhav Ram

Aghoreshwar Baba Sambhav Ram: बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में अघोरेश्वर भगवान राम के महाविभूतिस्थल के वार्षिकोत्सव के समापन अवसर पर बोलते हुए गुरूपद बाबा संभव राम ने कहा कि गलत ढंग से कमाए धन का दुष्प्रभाव उनके परिजनों पर पड़ता है। उनके परिजनों की मानसिकता को दूषित करते हैं।


बाबा ने अपने आर्शीवचन में कहा कि....हम सभी लोग इस तरह के अवसरों में इकट्ठे होते हैं। और सभी लोग कुछ न कुछ ईश्वर के अंश से प्राप्त करने के लिए प्रयत्न शील रहते है। लेकिन हमें यह भी ज्ञात रहे कि ये युद्ध है...आर्थिक युद्ध...और हम सभी उस अर्थ के ही पीछे घूम रहे हैं। झूठ, फरेब भी साथ चल रहा है। उसी बीच में हम सभी लोगों को अपना रास्ता चुनना है...निकालना है। हम सभी लोगों के बीच रहते हुए भी हमें वह रास्ता चुनना है जिसमें हम सुरक्षित चल सकें।


उन्होंने कहा कि इस युग में हम सतर्क नही रहेंगे...अपना रास्ता नहीं बनाएंगे तो हम नही जी पाएंगे। इस आर्थिक युग में, लोभ लालच के युग में लोग एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए जुटे है। इस वातावरण में दूषित, अन्न,जल ग्रहण कर रहे है। जिसके कारण विभिन्न व्याधियां उत्पन्न हो रही है। लोग कैंसर जैसी भयानक बीमारियों से ग्रस्त है। सर्दी खांसी तो हर किसी को है। यदि हम लोग नही चेतेंगे तो न यह हमारे शरीर को स्वस्थ रहने देगा न मानसिकता को स्थिर होने देगा। हम लोग उच्चश्रृंखल होंगे। थोड़ी थोड़ी बातों में किसी को गाली दे देना,किसी को मार देना जैसे कर्म करेंगे और हमारे बर्दाश्त की सीमा खत्म हो जाएगी।


हम उस प्रवृत्ति के हो गए है कि खुद के लिए बटोर ले फिर अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी बटोर लें। ऐसा इसलिए क्योंकि हम अपनी जीविका जैसे कमा रहे है और फिर उससे अपने परिजनों की जीविकोवृत्ति कर रहे है उसका प्रभाव उस धन को उपयोग करने वालों पर भी पड़ता है,उनकी मानसिकता पर पड़ रहा है। आज करोड़पति घर के लोग भी अपने घर के वृद्धों को आश्रमों में छोड़ रहे है। यह इसी का परिणाम है। अब कैसे असर पड़ता है यह इसे ऐसा समझा जा सकता है जैसे कि हम कही जाते है किसी आश्रम में रहते है और वहां का फूल चुराते है, तोड़ते है उसके बाद अपने ईश्वर को चढ़ाते है तो उस चोरी के फूल की आवश्यकता ईश्वर को नही है। फिर भी हम ऐसा करते है,क्योंकि मनुष्य की मनोवृति ऐसे ही हो चुकी है कि वो अपने कलेजे के टुकड़े के लिए कुछ भी कर सकते है।


मैं ये नही कहता कि पैसे मत कमाइए, संसाधन मत जुटाइए। ये भी आज के भौतिकतावादी युग में जरूरी है। पर यह सही रास्तों से हो। जिस प्रकार एक बच्चे को मिठाई अच्छी लगती है और वह अपनी मां से मिठाई मांगता है तो मां मिठाई होते हुए भी इस डर से कि ज्यादा मिठाई खाने से बच्चे के दांत खराब हो जायेंगे कह देती है कि बेटा मिठाई खराब हो जायेगी। इसमें अब मां ने झूठ बोला पर उसमें बच्चे का भला छुपा था। मां को लगा कि बच्चे का पेट खराब हो जायेगा, दांत खराब हो जायेगा यह उसके मस्तिष्क में था। महापुरुषों की शरण में ही जा कर हमारी संस्कृति की रक्षा हो सकेगी।


हमारे नेता और अधिकारीगण खाने पीने की चीजों में मिलावट रोकने में असफल हो रहे है। जिसके चलते हर घर में लोग बीमार हो रहे है। पहले घर के सिर्फ बुजुर्ग बीमार होते थे पर अब बच्चे से लेकर बुजुर्ग सब बीमार हो रहे है। बहुत अधिक मौतें हमारे देश में हो रही है। हम संतुलित,आचार विहार के साथ जीवन जीना छोड़ चुके है। आज एक किलोमीटर भी पैदल चलना पड़े तो हम हांफने लगेंगे। हमारी ऐसी स्थिति हो गई है। शरीर के साथ ऐसा है कि एक तरफ से नदी की तरह आता है और दूसरे तरफ से निकल जाता है तो शरीर स्वस्थ रहता है। पर हमारे शरीर में दूषित तालाब के जल की तरह दूषित चीजे जमा होती जा रही हैं। हमारे आचार विचार व व्यवहार में भी प्रदूषित चीजे आ रही हैं। जिनसे बचने के लिए हमें महापुरुषों की शरण में जाना होगा।

Tags:    

Similar News