Aghor Peeth Varanasi: स्थिरता और एकाग्रता के बिना ईश्वरीय तत्वों को पाना संभव नहीं: बाबा संभव राम....
Aghor Peeth Varanasi: माँ महा मैत्रायणी योगिनी जी का निर्वाण दिवस के मौके पर गुरुपद बाबा संभव राम जी ने कहा कि भजन और प्रवचन सुनने का तभी मतलब है, जब उसे अपने आचरण में उतारें।
Aghor Peeth Varanasi: वाराणसी। माँ गंगा के पावन तट पर स्थित अघोरेश्वर महाविभूति स्थल के प्रांगण में अघोरेश्वर भगवान राम जी की जननी “माँ महा मैत्रायणी योगिनी जी” का 32वाँ निर्वाण दिवस आज श्रद्धा एवं भक्तिमय वातावरण में मनाया गया। इस अवसर पर प्रातः आश्रम परिसर की साफ-सफाई की गई।पूज्यपाद बाबा गुरुपद संभव राम जी ने परमपूज्य अघोरेश्वर महाप्रभु एवं माताजी की समाधि पर माल्यार्पण, पूजन एवं आरती किया। इसके बाद पृहबीपाल सिंह ने सफलयोनि का पाठ किया। तत्पश्चात् पूज्य बाबा ने हवन-पूजन किया।
इसके बाद मध्याह्न एक पारिवारिक विचार गोष्ठी आयोजित की गयी जिसमें वक्ताओं ने माँ महा मैत्रायणी योगिनी जी को याद करते हुए उनसे प्रेरणा लेने की बात कही। वक्ताओं में डॉ० कमला मिश्र, ममता सिंह, गिरिजा तिवारी, दामिनी थीं। कुमारी अपर्णा एवं कुमारी अल्का ने बेटियों को भ्रूण हत्या से बचाने की मार्मिक भावना से ओतप्रोत भजन प्रस्तुत किया। आश्रम प्रांगण में संचालित अवधूत भगवान राम नर्सरी विद्यालय के छात्र वीर सैनी ने भजन प्रस्तुत किया। इसी विद्यालय की छात्रा शुभदा पाण्डेय ने मंगलाचरण किया। गोष्ठी का सञ्चालन उक्त विद्यालय की अध्यापिका अनीता ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन संस्था के मंत्री डॉ० एस. पी. सिंह ने किया।
महापुरुषों की प्रेरणाओं का अनुशीलन आवश्यक- पूज्यपाद बाबा गुरुपद संभव राम जी अपने आशीर्वचन में संस्था के अध्यक्ष पूज्यपाद बाबा औघड़ गुरुपद संभव राम जी ने कहा कि आज माँ महा मैत्रायणी जी के निर्वाण दिवस पर हमलोग एकत्रित हुए हैं। हम अपने अनुभवों को एक-दूसरे से आदान-प्रदान करते हैं। भजन, प्रवचन या जो बातें कही जाती हैं उनका महत्व तभी है जब उसको हम अपने आचरण में उतारें। अपने अनुभव से ही हम आगे बढ़ते हैं। आज की परिस्थितियों में महापुरुषों की वाणियों का अनुपालन, अनुशीलन करना आवश्यक है तभी हम इन भयावह परिस्थितियों से अपने-आप को बचा सकेंगे।
यह संसार है और इसमें शारीरिक, मानसिक और पारिवारिक अनेक प्रकार के दुखों का हमें सामना करना पड़ता है। हम अपने अत्यधिक मोह के चलते उसमें उलझे हुए हैं। यद्यपि हम सभी जानते हैं कि हमारी आत्मा अजर-अमर है, फिर भी इतना बोझा हम अपने सिर पर लादे हुए हैं। इन सभी शिक्षाओं को जब तक हम अपने में उतरेंगे नहीं तब तक हम हर ऊँची चढ़ाई पर लुढ़कते रहेंगे। हर छोटी-छोटी बात में हमारी स्थिरता चली जाती है। थोड़े सी परेशानी में परेशान हो जाते हैं, जरा सा लालच में मचल जाते हैं। बगैर स्थिरता और एकाग्रता के हम उस ईश्वरीय तत्व को प्राप्त नहीं कर सकते। यहाँ आने का हमारा मकसद इन्हीं सब कारणों से पूर्ण नहीं हो पाता। कितना हमने ग्रहण किया है वह हमारे आचरण-व्यवहार से पता चल जाता है। इस संसार में सबकुछ करते हुए भी हम अपने आत्मोद्धार के प्रति बराबर जागरूक रहें। यही प्रेरणा हमें महापुरुषों से, माताजी से मिलती है। अपने कर्मों का फल तो हमें भोगना ही पड़ता है।