Uttrakhand Swargarohini Parvat : इस पर्वत से होकर जाती है स्वर्ग की सीढ़ियां, यही से पांडवों ने किया था धरती से स्वर्ग प्रस्थान, जानिए स्वर्गारोहिणी पर्वत की कहानी…
Uttrakhand Swargarohini Parvat : आज हम हिमालय के जिस जगह की बात करने वाले हैं उसका नाम है स्वर्गरोहिणी। यह स्थान महाभारत काल के मुख्य पात्र पांच पांडवों से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि पांडवों की अंतिम यात्रा इसी स्थान से शुरू हुई थी।
Uttrakhand Swargarohini Parvat: हिमालय क्षेत्र सदियों से ही अपनी प्राचीन नदियों, धार्मिक स्थलों और रहस्यो के लिए प्रसिद्ध है। आज हम हिमालय के जिस जगह की बात करने वाले हैं उसका नाम है स्वर्गरोहिणी। यह स्थान महाभारत काल के मुख्य पात्र पांच पांडवों से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि पांडवों की अंतिम यात्रा इसी स्थान से शुरू हुई थी। इसी जगह से पांच पांडवों में केवल युधिष्ठिर ही सशरीर स्वर्ग पहुंचने में समर्थ हुए थे। इस लेख में हम इस बात की सच्चाई और इस जगह के बारे में जानने वाले हैं।
कहां स्थित है स्वर्ग रोहिणी पर्वत
स्वर्गरोहिणी पर्वत श्रृंखला, उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल हिमालय के सरस्वती रेन्ज में स्थित है, जिसे स्थानीय भाषा में बन्दरपूंछ भी कहा जाता है। यह गंगोत्री शिखर समूह के पश्चिमी हिस्से में पड़ता है। इस जगह की सुंदरता देखते ही बनती है। यह चार अलग-अलग शिखरों का एक समूह है जो मिलकर एक अद्भुत संरचना बनाते हैं।इनमें सबसे प्रमुख और ऊंचा शिखर स्वर्गरोहिणी-1 है जिसकी ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 6252 मीटर है। बन्दरपूंछ पर्वत समूह के साथ मिलकर स्वर्गारोहिणी यमुना और भागीरथी नदियों के बीच एक प्राकृतिक विभाजन रेखा का काम करती है।
महाभारत से जुड़ी पौराणिक कथा
जब हम स्वर्गारोहिणी के बारे में बात करते हैं तो सबसे पहले हमारे मन में महाभारत का अंतिम अध्याय आता है। महाभारत में कुल अठारह पर्व हैं, जिसमें सत्रहवां पर्व है महाप्रस्थानिक पर्व। इस पर्व में पांडवों की अंतिम यात्रा का वर्णन है जो अत्यंत सीखने योग्य है। कुरुक्षेत्र के महायुद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद पांडवों ने कई वर्षों तक राज किया। लेकिन एक समय ऐसा आया जब उन्हें अपने जीवन की समाप्ति का एहसास हुआ। सभी भाइयों और द्रौपदी ने अपने महलों, राज्य और सभी सुख सुविधाओं को त्याग दिया और तपस्वियों की तरह केवल साधारण वस्त्रों में हिमालय की ओर प्रस्थान किए।
जैसे जैसे वे आगे बढ़ते गए उनके साथ अजीब घटनाएं होने लगीं। सबसे पहले द्रौपदी गिर गईं और उनकी मृत्यु हो गई। जब भीम ने युधिष्ठिर से इसका कारण पूछा तो युधिष्ठिर ने बताया कि द्रौपदी पांचों भाइयों की पत्नी थीं लेकिन उनके मन में अर्जुन के प्रति विशेष लगाव था। यह पक्षपात उनकी कमजोरी थी और इसीलिए वे इस यात्रा को पूरा नहीं कर सकीं।
कुछ दूर और चलने के बाद सहदेव गिर गए। सहदेव अत्यंत ज्ञानी थे लेकिन उन्हें अपने ज्ञान पर घमंड था। फिर नकुल की बारी आई जो अपने सौंदर्य पर अत्यधिक गर्व करते थे। उनका यह अभिमान उनके मृत्यु का कारण बना। अर्जुन जो कि महान धनुर्धर और योद्धा थे वे भी इस यात्रा में गिर गए। युधिष्ठिर ने बताया कि अर्जुन को अपनी वीरता और धनुर्विद्या पर अत्यधिक अभिमान था।
भीम जो अपने बल और खाने के लिए प्रसिद्ध थे वे भी अंततः गिर गए। उनका दोष था उनका अत्यधिक खाने का लालच और अपने बल पर अहंकार करना। अंत में केवल धर्मराज युधिष्ठिर ही बचे जो अपने जीवन में कभी झूठ नहीं बोले थे और सदैव धर्म के मार्ग पर चले थे।
युधिष्ठिर के साथ एक कुत्ता भी था जो शुरू से ही उनके साथ चल रहा था। जब युधिष्ठिर स्वर्गारोहिणी के शिखर पर पहुंचे तो स्वर्ग से एक दिव्य विमान उन्हें लेने आया। लेकिन विमान चालकों ने कहा कि कुत्ते को साथ नहीं ले जाया जा सकता। युधिष्ठिर ने स्पष्ट मना कर दिया और कहा कि जिस कुत्ते ने मेरे साथ इतनी कठिन यात्रा की है उसे छोड़कर मैं स्वर्ग नहीं जाऊंगा। यह सुनकर वह कुत्ता अपने असली रूप में आया जो कि स्वयं धर्मराज यानी यमराज थे। उन्होंने युधिष्ठिर को आशीर्वाद दिया और कहा कि तुमने अंतिम परीक्षा में भी धर्म का पालन किया है। इस प्रकार युधिष्ठिर सशरीर स्वर्ग गए।
यहां पहुंचने का मार्ग
स्वर्गारोहिणी तक पहुंचना आज भी उतना ही कठिन है। यह यात्रा बद्रीनाथ धाम से शुरू होती है जो चारधाम में से एक है। बद्रीनाथ से नारायण पर्वत तक का सफर लगभग 30 किलोमीटर का है जिसे पैदल तय करना होता है। रास्ते का अधिकतर हिस्सा बर्फ से ढका रहता है इसलिए यहां तक पहुंचने में 3 दिन लग जाते हैं।