Stambheshwar Mahadev mandir ka itihas: समुद्र की गोद में छिपा है स्तम्भेश्वर महादेव मंदिर; केवल दो बार होते है दर्शन, जानिए मंदिर का प्राचीन इतिहास

आज हम गुजरात राज्य के एक ऐसे शिव मंदिर के बारे में बात करने वाले हैं जो दिन में दो बार समुद्र में समा जाता है। इस अद्भुत घटना के कारण इसे 'गायब होने वाला मंदिर' या 'लुप्त मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है। यह सुनने में काफी आश्चर्य की बात है परंतु यह बिल्कुल सच है। हम बात कर रहे है स्तम्भेश्वर महादेव मंदिर की, जो अपनी अनोखी प्राकृतिक विशेषता के कारण देश-विदेश में चर्चित है। आइए जानते हैं इस मंदिर की पूरी कहानी।

Update: 2025-11-28 06:04 GMT

Stambheshwar Mahadev mandir ka itihas: भारत देश अपनी प्राचीन मंदिरों, गौरवशाली इतिहास और यहां स्थित धार्मिक विरासतों के वजह से विश्व विख्यात है। यहां आपको ऐसे ऐसे मंदिरों के बारे में देखने और सुनने को मिलेगा जो विश्व में कहीं और है ही नहीं। आज हम गुजरात राज्य के एक ऐसे शिव मंदिर के बारे में बात करने वाले हैं जो दिन में दो बार समुद्र में समा जाता है। इस अद्भुत घटना के कारण इसे 'गायब होने वाला मंदिर' या 'लुप्त मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है। यह सुनने में काफी आश्चर्य की बात है परंतु यह बिल्कुल सच है। हम बात कर रहे है स्तम्भेश्वर महादेव मंदिर की, जो अपनी अनोखी प्राकृतिक विशेषता के कारण देश-विदेश में चर्चित है। आइए जानते हैं इस मंदिर की पूरी कहानी।

स्तम्भेश्वर मंदिर का इतिहास

स्तम्भेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। वर्तमान में जो मंदिर संरचना देखने को मिलती है, वह लगभग 150 वर्ष पुरानी बताई जाती है। परंतु इस स्थान पर मंदिर का निर्माण 7वीं शताब्दी के आसपास चावडी संतों द्वारा किया गया था। बाद में श्री शंकराचार्य ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया।

स्कंद पुराण और शिव पुराण की रूद्र संहिता में इस पवित्र स्थान का विस्तृत वर्णन मिलता है। पुराणों के अनुसार, इस स्थान पर समुद्र में पांच शिवलिंग स्थापित हैं, जिनमें से दो अत्यंत प्राचीन माने जाते हैं। इस स्थान को महिसागर संगम तीर्थ या गुप्त तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहां महिसागर नदी का समुद्र से संगम होता है।

मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा

महादेव से रिलेटेड टीवी सीरियलो में अपने ताड़कासुर नाम के असुर के बारे में सुना ही होगा, जिसकी मृत्यु भगवान कार्तिकेय के द्वारा की जाती है। इस मंदिर की कहानी इसी कथा से जुड़ी हुई है। प्राचीन काल में ताड़कासुर नाम का एक अत्यंत शक्तिशाली असुर था। उसने कठोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया। जब भगवान शिव ने उसे वरदान मांगने को कहा, तो चतुर ताड़कासुर ने यह वरदान मांगा कि उसकी मृत्यु केवल शिव पुत्र के हाथों से हो सके। उस समय भगवान शिव अखंड ब्रह्मचारी थे और उनकी कोई संतान नहीं थी, इसलिए ताड़कासुर को लगा कि वह अब अमर हो गया है, इस पर भोलेनाथ ने उसकी यह मांग स्वीकार कर ली।

वरदान पाने के बाद ताड़कासुर का अत्याचार काफी बढ़ता गया। वह देवताओं, ऋषि-मुनियों और प्राणियों को प्रताड़ित करने लगा। देवताओं की पुकार सुनकर भगवान शिव के तेज से कार्तिकेय का जन्म हुआ। भगवान कार्तिकेय ने अपने पराक्रम के साथ ताड़कासुर का वध किया और देवताओं को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई।

लेकिन जब कार्तिकेय को यह ज्ञात हुआ कि ताड़कासुर भगवान शिव का परम भक्त था, तो उन्हें काफी दुख हुआ। इसका प्रायश्चित करने के लिए भगवान विष्णु ने महिसागर नदी और समुद्र के संगम पर एक शिवलिंग स्थापित करने को कहा। यह वही स्थान है जहां ताड़कासुर का वध किया गया था। तभी से यह स्थान स्तम्भेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध हो गया और इसे अत्यंत पवित्र माना जाने लगा।

इस मंदिर की अद्भुत प्राकृतिक घटना

स्तम्भेश्वर महादेव मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है इसका दिन में दो बार पूरी तरह से जलमग्न होना और फिर प्रकट होना। यह घटना पूरी तरह से प्राकृतिक है, जो समुद्र में आने वाले ज्वार-भाटे के कारण होती है। यह मंदिर 24 घंटे में 12 घंटे तक पानी में डूबा रहता है और बाकी 12 घंटे भक्तों के दर्शन के लिए खुला रहता है। भक्तगण इसे समुद्र द्वारा शिवलिंग पर प्राकृतिक अभिषेक मानते हैं। इस मंदिर की एक और खास बात है कि यह कई सौ सालों से समुद्र के खारे पानी में डूबे रहने के बावजूद भी इसकी संरचना पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

कहां स्थित है यह मंदिर

स्तम्भेश्वर महादेव मंदिर गुजरात राज्य के भरूच जिले में कवि कम्बोई नामक गांव पर स्थित है। इस मंदिर की भौगोलिक स्थिति काफी खास है, क्योंकि यह समुद्र तट से मात्र कुछ मीटर की दूरी पर समुद्र के बीचोबीच स्थापित है। राज्य की राजधानी से यह मंदिर लगभग 175 किलोमीटर की दूरी पर है और नजदीकी शहर वडोदरा से इसकी दूरी 78 किमी है।

Tags:    

Similar News