History of Shivrinarayan Temple: गुप्त प्रयाग मानी जाती है छत्तीसगढ़ की ये जगह, जानिए यहां का रोचक इतिहास
History of Shivrinarayan Temple: छत्तीसगढ़ की धरती अपने प्राचीन मंदिरों, संस्कृति और आस्था के लिए जानी जाती है। इन्हीं में से एक प्रमुख नाम है शिवरीनारायण मंदिर, जो जांजगीर-चांपा जिले में स्थित है। यह मंदिर न केवल स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है, बल्कि धार्मिक मान्यता और ऐतिहासिक महत्व के कारण भी विशेष स्थान रखता है।
History of Shivrinarayan Temple: छत्तीसगढ़ की धरती अपने प्राचीन मंदिरों, संस्कृति और आस्था के लिए जानी जाती है। इन्हीं में से एक प्रमुख नाम है शिवरीनारायण मंदिर, जो जांजगीर-चांपा जिले में स्थित है। यह मंदिर न केवल स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है, बल्कि धार्मिक मान्यता और ऐतिहासिक महत्व के कारण भी विशेष स्थान रखता है।
स्थान और भौगोलिक स्थिति
शिवरीनारायण मंदिर महानदी, शिवनाथ और जोंक नदियों के संगम के पास स्थित है। यह स्थान “गुप्त प्रयाग” के नाम से भी जाना जाता है। संगम स्थल के कारण यहां की भूमि को सदैव पवित्र माना गया है। जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर बसे इस स्थल तक सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है। नजदीकी बड़ा हवाई अड्डा रायपुर में है, जबकि जांजगीर-नैला और चांपा इसके प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं।
मंदिर का पौराणिक महत्व
रामायण काल से जुड़ी मान्यता के अनुसार यही वह स्थान है जहाँ माता शबरी ने प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण का स्वागत कर उन्हें प्रेमपूर्वक बेर अर्पित किए थे। शबरी की निःस्वार्थ भक्ति और भगवान राम का उनसे मिलना इस स्थान को विशेष बनाता है। शिवरीनारायण में स्थित शबरी आश्रम इसी कथा का प्रतीक है, जहाँ उन्होंने वर्षों तपस्या की और प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा की। परिसर में शबरी माता का भी मंदिर स्थित है।
कृष्णवट वृक्ष: एक अनोखा पेड़
शिवरीनारायण धाम का आंगन एक अनोखी आस्था का साक्षी है। यहाँ स्थित कृष्णवट वृक्ष सदियों से श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र रहा है। मंदिर प्रांगण में स्थित यह वट वृक्ष सामान्य वृक्ष नहीं है। इसकी पत्तियों का आकार प्राकृतिक रूप से दोने जैसा होता है। जनश्रुति के अनुसार, इन्हीं पत्तों के दोने में माता शबरी ने बेर रखकर प्रभु को परोसे थे। इस कारण इसे कृष्णवट कहा जाता है। पौराणिक उल्लेखों और धार्मिक मान्यताओं के चलते इसे अक्षय वट भी कहा जाता है, क्योंकि इसका अस्तित्व युगों से अटूट माना जाता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
माना जाता है कि मंदिर का निर्माण हैह्य वंश के राजा रत्नदेव प्रथम ने लगभग 11वीं शताब्दी में करवाया था। मंदिर की स्थापत्य शैली वैष्णव परंपरा का अनुसरण करती है। गर्भगृह और प्रवेश द्वार पर की गई नक्काशी उस समय की अद्भुत शिल्पकला का प्रमाण है। मंदिर को “नर-नारायण मंदिर” के नाम से भी जाना जाता है। परिसर में चंद्रचूड़ महादेव मंदिर भी स्थित है, जो काफी प्राचीन है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
शिवरीनारायण को भगवान जगन्नाथ से भी जोड़ा जाता है। जनश्रुति है कि जगन्नाथ जी की मूल प्रतिमा का संबंध कभी इसी क्षेत्र से रहा था। इसके अलावा हर वर्ष माघ पूर्णिमा पर यहां विशाल मेला लगता है, जिसमें दूर-दराज़ से श्रद्धालु आकर धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। मंदिर के पास स्थित “रोहिणी कुंड” को भी पवित्र माना जाता है। कहते हैं कि इस कुंड का जल कभी कम नहीं होता और इसका उपयोग धार्मिक क्रियाओं में किया जाता है।
मंदिर की वर्तमान स्थिति
हाल के वर्षों में छत्तीसगढ़ सरकार ने “राम वन गमन पर्यटन परिकल्पना” के अंतर्गत इस स्थल का नवीनीकरण किया है। मंदिर परिसर को नया रूप दिया गया है ताकि श्रद्धालु और पर्यटक दोनों यहां आकर प्राचीन इतिहास और संस्कृति का अनुभव कर सकें। यह परियोजना न केवल धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दे रही है, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए रोजगार का साधन भी बनी है।