Sangeet Vishwavidyalaya Khairagarh: एशिया का पहला कला व संगीत विश्वविद्यालय, जानिए स्थापना से आज तक का पूरा इतिहास

Indira Kala Sangeet Vishwavidyalaya Khairagarh: कला और संगीत भारतीय संस्कृति की आत्मा रहे हैं। इन्हीं को समर्पित एक ऐसा विश्वविद्यालय है जिसने न केवल भारत बल्कि पूरे एशिया में अपनी अलग पहचान बनाई है, इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ (Indira Kala Sangeet Vishwavidyalaya, Khairagarh)। यह केवल एक शैक्षणिक संस्थान नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर है, जिसकी नींव त्याग, समर्पण और भारतीय कलाओं को जीवित रखने की भावना पर रखी गई थी।

Update: 2025-09-16 12:31 GMT

Indira Kala Sangeet Vishwavidyalaya Khairagarh: कला और संगीत भारतीय संस्कृति की आत्मा रहे हैं। इन्हीं को समर्पित एक ऐसा विश्वविद्यालय है जिसने न केवल भारत बल्कि पूरे एशिया में अपनी अलग पहचान बनाई है, इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ (Indira Kala Sangeet Vishwavidyalaya, Khairagarh)। यह केवल एक शैक्षणिक संस्थान नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर है, जिसकी नींव त्याग, समर्पण और भारतीय कलाओं को जीवित रखने की भावना पर रखी गई थी।

विश्वविद्यालय की शुरुआत और नामकरण

इस विश्वविद्यालय की शुरुआत 14 अक्टूबर 1956 को हुई। इसकी स्थापना खैरागढ़ रियासत के राजा बिरेंद्र बहादुर सिंह और रानी पद्मावती देवी ने अपने राजमहल को दान देकर की थी। यह कदम केवल एक शैक्षिक संस्थान बनाने का नहीं बल्कि कला और संगीत के संरक्षण की दिशा में एक महान संकल्प था।

विश्वविद्यालय का नाम उनकी पुत्री "इंदिरा" के स्मरण में रखा गया, जिनका कम उम्र में ही निधन हो गया था। इंदिरा को संगीत से गहरी रुचि थी और उनके माता-पिता ने उनकी स्मृति को अमर बनाने के लिए यह विश्वविद्यालय स्थापित किया। इस प्रकार यह संस्थान एक व्यक्तिगत भावनात्मक लगाव और सामाजिक जिम्मेदारी का अद्वितीय संगम है।

विश्वविद्यालय की विशिष्ट पहचान

इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह एशिया का पहला विश्वविद्यालय है जो पूरी तरह से संगीत, नृत्य, ललित कला और रंगमंच जैसी विधाओं को समर्पित है। यहां शिक्षा का उद्देश्य केवल डिग्री प्रदान करना नहीं बल्कि कला को जीवन और संस्कृति के रूप में स्थापित करना है।

यह विश्वविद्यालय भारतीय शास्त्रीय संगीत की गहराई, नृत्य की विविध शैलियों, रंगमंच की परंपराओं और ललित कलाओं की सुंदरता को संरक्षित और प्रोत्साहित करने का केंद्र है। यहां से निकले छात्र न केवल कलाकार बने बल्कि कला के दूत बनकर देश-विदेश में भारत की सांस्कृतिक पहचान को मजबूत किया।

प्रारंभिक विकास का दौर

स्थापना के बाद विश्वविद्यालय ने धीरे-धीरे अपनी अकादमिक संरचना विकसित की। 1958 में पुस्तकालय की स्थापना हुई, जिसमें संगीत और ललित कला से संबंधित दुर्लभ ग्रंथ, पांडुलिपियां और शोध सामग्री संग्रहीत की गई। समय के साथ विभिन्न विभाग गठित हुए जिनमें हिंदुस्तानी संगीत, नृत्य, ललित कला और रंगमंच प्रमुख थे।

बाद में विश्वविद्यालय ने आधुनिक शिक्षा पद्धतियों को अपनाते हुए नए विभाग जोड़े, जिनमें कर्नाटक संगीत विभाग (2011) एक उल्लेखनीय उपलब्धि है। इसने दक्षिण भारतीय संगीत की समृद्ध परंपरा को भी अपनी शैक्षणिक छतरी के अंतर्गत शामिल किया।

शैक्षणिक मान्यता और उपलब्धियाँ

इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय को यूजीसी (UGC) से मान्यता प्राप्त है। यह मान्यता न केवल शैक्षणिक गुणवत्ता का प्रमाण है बल्कि इस विश्वविद्यालय की विश्वसनीयता और प्रभाव को भी स्थापित करती है।

2014 में, विश्वविद्यालय को NAAC से "A" ग्रेड प्राप्त हुआ, जो इसकी उच्च शैक्षणिक और प्रशासनिक गुणवत्ता का प्रतीक है। यह उपलब्धि दर्शाती है कि कला शिक्षा को भी उतना ही गंभीरता और सम्मान मिलना चाहिए जितना विज्ञान और प्रौद्योगिकी को दिया जाता है।

प्रशासन और नेतृत्व की जिम्मेदारी

विश्वविद्यालय का कुलाधिपति (Chancellor) राज्यपाल होते हैं। समय-समय पर यहां योग्य और दूरदर्शी कुलपतियों ने इसकी बागडोर संभाली और इसे नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। वर्तमान में इसकी कमान प्रोफेसर लवली शर्मा के हाथों में है, इनके 26 रिसर्च पेपर और 7 किताबें प्रकाशित हो चुके हैं। जो इसे और आधुनिक बनाने तथा राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने की दिशा में कार्यरत हैं।

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