Railway Track Ballast Ki Puri Jankari: रेलवे ट्रैक पर अजीबो-गरीब पत्थर क्यों बिछाए जाते हैं? जानिए इसके पीछे का साइंटिफिक रीजन
Railway Track Ballast Ki Puri Jankari: अक्सर जब हम ट्रेन का सफर करते है और ट्रेन के पटरियों को देखते है तो एक चीज जरूर अजीब लगती है वह है पटरियों के आसपास ढेर सारे पत्थर। कभी आपने सोचा है कि ये पत्थर यहां क्यों बिछाए जाते हैं?
Railway Track Ballast Ki Puri Jankari: अक्सर जब हम ट्रेन का सफर करते है और ट्रेन के पटरियों को देखते है तो एक चीज जरूर अजीब लगती है वह है पटरियों के आसपास ढेर सारे पत्थर। कभी आपने सोचा है कि ये पत्थर यहां क्यों बिछाए जाते हैं? और इन्हें बिछाने के पीछे क्या कारण है? रेलवे की पटरी को बनाना कोई आसान काम नहीं है। आज हम पटरियों के किनारे बिछे पत्थरों की पूरी साइंस समझने वाले हैं साथ ही इसके कुछ मुख्य उपयोगों को भी जानेंगे।
रेलवे ट्रैक की बनावट
रेलवे ट्रैक को ऊपर से देखने पर केवल दो लोहे की पटरियां आगे बढ़ती हुई दिखाई देती हैं, लेकिन वास्तव में इसके नीचे कई परतों की एक जटिल संरचना होती है। सबसे निचली परत में सामान्य जमीन होती है, जिसे अच्छे से समतल और मजबूत बनाया जाता है। इसके ऊपर दो तरह की अलग मिट्टी की परतें बिछाई जाती हैं जो नींव को और मजबूती प्रदान करती हैं।
इन मिट्टी की परतों के ऊपर नुकीले पत्थर डाले जाते हैं जिन्हें बैलेस्ट या गिट्टी कहा जाता है। फिर इन पत्थरों पर कंक्रीट के बने स्लीपर्स रखे जाते हैं और सबसे अंत में इन स्लीपर्स पर लोहे की मुख्य पटरियां लगाई जाती हैं जिन पर ट्रेन दौड़ती है। यह सभी परत मिलकर एक मजबूत रेलवे ट्रैक का निर्माण करते हैं।
इन नुकीले पत्थरों का रहस्य
रेलवे ट्रैक पर बिछे यह पत्थर काफी अनोखे होते हैं इनका डिजाइन हमेशा नुकीले और आकर एक जैसा नहीं होता। यदि इन नुकीले पत्थरों की जगह गोल पत्थरों का उपयोग किया जाता तो इन पत्थरों के बीच घर्षण बहुत ही कम होता और यह ट्रैक से बाहर हो जाते। जिससे पटरियों के खिसकने का डर बना रहता। ये नुकीले पत्थर एक दूसरे में फंस जाते हैं और एक प्रकार की इंटरलॉकिंग सिस्टम बनाते हैं। जब ऊपर से दबाव पड़ता है, तो ये पत्थर और भी मजबूती से एक दूसरे में फंस जाते हैं और पटरियों को स्थिरता प्रदान करते हैं। यह पत्थर कठोर ग्रेनाइट चट्टानों को तोड़कर बनाई जाती हैं।
भारी वजन को संभालने में इन पत्थरों का उपयोग
जब भी रेलवे ट्रैक पर कोई पैसेंजर गाड़ी या मालगाड़ी पटरियों से गुजरती है तो उन पर काफी दबाव पड़ता है। यहीं पर इन पत्थरों की भूमिका शुरू होती है। जब ट्रेन पटरियों पर से गुजरती है, तो उसका पूरा वजन पहले पटरियों पर आता है, फिर स्लीपर्स के माध्यम से इन पत्थरों पर फैल जाता है। ये पत्थर इस वजन को बड़े क्षेत्र में फैला देते हैं।
वाइब्रेशन को कम करने में उपयोगी
जब कोई तेज गति से चलती हुई ट्रेन पटरियों पर से गुजरती है, तो काफी तीव्र कंपन और शोर उत्पन्न होता है। भारी भरकम ट्रेन के गुजरने से आसपास की जमीन वाइब्रेट करने लग जाती है। यह पटरियों और ट्रैक की संरचना के लिए खतरनाक होता है। इन पत्थरों की परत एक प्राकृतिक शॉक एब्जॉर्बर की तरह काम करती है। जब कंपन पत्थरों की परत तक पहुंचते हैं, तो ये पत्थर उन्हें सोख लेते है और जमीन तक बहुत ही कम कंपन पहुंचता है।