Puducherry ka bharat me vilay: पुडुचेरी के भारत में विलय का इतिहास, जानिए कैसे लिया गया ऐतिहासिक निर्णय, पढ़िए पूरी डिटेल…
Puducherry ka bharat me vilay: 01 नवंबर का दिन, 71 साल पहले इसी तारीख को भारत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भारत को वापस मिला था। हम बात कर रहे है पुडुचेरी की, जिसे पहले पांडिचेरी के नाम से जाना जाता था।
Puducherry ka bharat me vilay: 01 नवंबर का दिन, 71 साल पहले इसी तारीख को भारत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भारत को वापस मिला था। हम बात कर रहे है पुडुचेरी की, जिसे पहले पांडिचेरी के नाम से जाना जाता था। भारत का यह हिस्सा 300 वर्षों से फ्रांसीसियों के कब्जे में था, आखिरकार सन 1954 में भारतीय संघ का हिस्सा बना।
जब सन 1947 में देश आजाद हुआ था तो अंग्रेजों ने भले ही भारत छोड़ दिया था, लेकिन कुछ छोटे-छोटे यूरोपीय उपनिवेश अभी भी भारतीय भूमि पर मौजूद थे। पुर्तगाल के पास गोवा, दमन और दीव था और फ्रांस के पास पांडिचेरी, करैकल, माहे, यानम और चंदननगर जैसे इलाके थे। इन सभी को भारत में मिलाना एक बड़ी चुनौती थी क्योंकि यूरोपीय देश अपनी जमीन आसानी से छोड़ने वाले नहीं थे। ऐसे में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने जो रणनीति अपनाई वह आज भी तारीफ के काबिल है।
भारत में फ्रांसीसीयो का इतिहास
फ्रांसीसी व्यापारी 17वीं शताब्दी की शुरुआत में भारत पहुंचे थे। उस समय यूरोप में व्यापार और उपनिवेशवाद का दौर चल रहा था। सभी यूरोपीय शक्तियां भारत में अपना दबदबा बनाना चाहती थी। अंग्रेजों और पुर्तगालियों के बाद फ्रांस ने भी अपना व्यापार स्थापित किया। इसी सोच के साथ सन 1664 में फ्रांस ने अपनी ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की।
10 साल बाद सन 1674 में एक महत्वपूर्ण घटना हुई। फ्रांसीसी गवर्नर फ्रांकोइस मार्टिन नाम के एक अधिकारी ने तमिलनाडु के तट पर स्थित एक छोटे से मछुआरों के गांव को अपना ठिकाना बनाने का फैसला किया। उस समय वह इलाका शिवाजी महाराज के अधीन आने वाले स्थानीय नायकों के नियंत्रण में था। मार्टिन ने उनसे इस जमीन को पट्टे पर लिया और यहीं से पांडिचेरी में फ्रांसीसी शासन की नींव पड़ी। शुरुआत में यह सिर्फ एक छोटा सा व्यापारिक केंद्र था जहां फ्रांसीसी व्यापारी मसाले, कपड़े और अन्य सामान खरीदते थे।
18वीं शताब्दी में जोसेफ फ्रांकोइस डुपलीक्स नाम के एक बेहद प्रतिभाशाली गवर्नर पांडिचेरी आया। उसने केवल व्यापार तक ही खुद को सीमित नहीं रखा बल्कि दक्षिण भारत की राजनीति में गहरा हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया। वह स्थानीय राजाओं और नवाबों के झगड़ों में शामिल होता था और उन्हें सैन्य सहायता देकर अपना प्रभाव बढ़ाता था।
इस दौरान फ्रांस और ब्रिटेन के बीच कई युद्ध हुए। कभी अंग्रेज पांडिचेरी पर कब्जा कर लेते थे तो कभी संधियों करके वापस फ्रांस को लौटा देते थे। अंततः सन 1763 की पेरिस संधि ने यह तय कर दिया कि भारत में ब्रिटिश ही मुख्य औपनिवेशिक ताकत रहेंगे।
स्वतंत्रता के बाद की चुनौतियां
15 अगस्त 1947 को भारत आजाद तो हुआ पर यूरोपीय देशों के उपनिवेश अभी भी भारतीय भूमि पर मौजूद थे। पुर्तगाल ने गोवा पर और फ्रांस अपने पांच इलाकों को लेकर अभी भी सोच विचार कर रहा था। पंडित नेहरू को यह समझ थी कि अगर भारत बल प्रयोग करता है तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसे गलत नजर से देखा जाएगा।
सन 1948 में वी सुब्बैया और उनके साथियों ने फ्रेंच इंडिया कांग्रेस नामक संगठन बनाया। यह संगठन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से प्रेरित था और इसका मुख्य उद्देश्य पांडिचेरी का भारत में विलय करवाना था। इस समय में पंडित जवाहरलाल नेहरू की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण थी। उनके सामने गोवा और पांडिचेरी दोनों की समस्या थी लेकिन उन्होंने दोनों के लिए अलग-अलग रणनीति अपनाई। पुर्तगाल की तानाशाही सरकार के खिलाफ गोवा में सैन्य कार्रवाई करनी पड़ी। लेकिन फ्रांस एक लोकतांत्रिक देश था और वहां जनमत सग्रह द्वारा भारत में विलय कराया गया।
1954 का ऐतिहासिक निर्णय
1 नवंबर 1954 को पांडिचेरी के सरकारी भवन में एक औपचारिक समारोह हुआ। फ्रांसीसी विदेश मंत्रालय के अधिकारी पियरे लैंडी ने भारत को पांडिचेरी का प्रशासन सौंपा। दोनों तरफ के अधिकारियों ने अपनी-अपनी सरकारों की ओर से हस्तांतरण के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए। फ्रांसीसी ध्वज को उतारा गया और उसकी जगह भारतीय तिरंगा फहराया गया। 300 सालों की गुलामी खत्म हो गई और पांडिचेरी अब आजाद भारत का हिस्सा था। पांडिचेरी में भारतीय स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त की जगह 16 अगस्त को मनाया जाता है और साथ ही 1 अगस्त को लिब्रेशन डे मनाने का प्रावधान किया गया है।