Lady Justice ka itihas: जानिए अदालत में रखी न्याय की देवी का इतिहास, आखिर क्यों बंधी है आंखों में काली पट्टी?
Lady Justice ka itihas: जब भी हम किसी अदालत या किसी कोर्ट रूम में जाते हैं, तो हमें एक खास मूर्ति दिखाई देती है। यह मूर्ति एक महिला की होती है जिसकी आंखों पर पट्टी बंधी होती है, एक हाथ में तराजू और दूसरे हाथ में तलवार होता है। अधिकतर लोग नहीं समझ पाते कि इस मूर्ति का क्या मतलब है? असल में यह हमारी पूरी न्यायिक व्यवस्था का प्रतीक है। इस मूर्ति को न्याय की देवी या Lady Justice के नाम से जाना जाता है।
Lady Justice ka itihas: जब भी हम किसी अदालत या किसी कोर्ट रूम में जाते हैं, तो हमें एक खास मूर्ति दिखाई देती है। यह मूर्ति एक महिला की होती है जिसकी आंखों पर पट्टी बंधी होती है, एक हाथ में तराजू और दूसरे हाथ में तलवार होता है। अधिकतर लोग नहीं समझ पाते कि इस मूर्ति का क्या मतलब है? असल में यह हमारी पूरी न्यायिक व्यवस्था का प्रतीक है। इस मूर्ति को न्याय की देवी या Lady Justice के नाम से जाना जाता है।
न्याय की देवी का इतिहास और प्रचलित कथाएं
न्याय की देवी का इतिहास हजारों साल पुराना है। सबसे पहले प्राचीन मिस्र में ”मात” नाम की देवी को सत्य और व्यवस्था की देवी माना जाता था। यूनानी सभ्यता में थेमिस और डिकी नाम की देवियों को न्याय का प्रतीक माना गया। थेमिस को दैवीय व्यवस्था और कानून की देवी माना जाता था। यूनानी लोग मानते थे कि थेमिस ही वह देवी है जो सही और गलत में फर्क करती है। सम्राट ऑगस्टस के समय में जस्टिशिया को आधिकारिक रूप से न्याय की देवी घोषित किया गया। यही रोमन परंपरा आज की आधुनिक न्यायिक व्यवस्था में चली आई है।
मूर्ति की आंखों पर पट्टी की कहानी
जब भी न्याय की मूर्ति को आप देखे तो दिखता है कि उसकी आंखों पर काली पट्टी बंधी हुई है। कुछ लोग इसे फिल्मों के डायलॉग "कानून अंधा होता है" से जोड़कर देखते हैं, परंतु सच ऐसा नहीं है। इसका वास्तविक अर्थ है कि न्याय किसी के चेहरे को नहीं देखता। चाहे सामने खड़ा व्यक्ति अमीर हो या गरीब, राजा हो या रंक, ब्राह्मण हो या शूद्र, बिना धर्म भेदभाव के न्याय सबके साथ समान व्यवहार करता है। हंस गिएंग नाम के एक कलाकार ने सन 1543 में बर्न शहर में पहली बार आंखों पर पट्टी वाली न्याय की देवी की मूर्ति बनाई। उस समय यूरोप में भ्रष्टाचार और पक्षपात बहुत था।
मूर्ति के हाथ में रखी तराजू का महत्व
न्याय की देवी के एक हाथ में तराजू होता है। यह तराजू भी एक बहुत महत्वपूर्ण प्रतीक है। तराजू का मतलब है संतुलन की स्थिति। जब हम कोई चीज तौलते हैं तो तराजू के दोनों पलड़ों में वजन डालकर देखते हैं कि कौन सा पलड़ा भारी है। ठीक इसी तरह अदालत में भी दोनों पक्षों के तर्कों और सबूतों को ध्यान में रखते हुए बराबर न्याय किया जाता है।
देवी के दूसरे हाथ में तलवार का महत्व
न्याय की देवी के दूसरे हाथ में तलवार होती है। यह तलवार शक्ति और अधिकार को दर्शाती है। तलवार का मतलब यह है कि अदालत के पास फैसले को सुनाने और लागू करने की ताकत है। अगर कोई व्यक्ति अदालत के फैसले को नहीं मानता तो उसे जबरन लागू किया जा सकता है।
न्याय की देवी का परिधान
न्याय की देवी जो वस्त्र पहनती है वह भी महत्वपूर्ण है। आमतौर पर देवी रोमन टोगा जैसा लबादा पहनती है। यह वस्त्र चिंतन और गंभीरता का प्रतीक है। प्राचीन रोम में टोगा पहनना सम्मान की बात थी। केवल रोमन नागरिक और विद्वान लोग ही टोगा पहन सकते थे।
2024 में हुए मूर्ति में बदलाव
अक्टूबर 2024 में भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने एक बड़ा कदम उठाया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के जजों की लाइब्रेरी में न्याय की देवी की एक नई मूर्ति स्थापित करवाई। यह मूर्ति पुरानी मूर्तियों से काफी अलग थी और इसमें कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए गए थे।
- नए मूर्ति की आंखों पर पट्टी नहीं बांधी गई है।
- देवी के हाथ में तलवार की जगह भारतीय संविधान की किताब रखी गई।
- तराजू को इस नई मूर्ति में भी रखा गया क्योंकि यह संतुलन और समानता का प्रतीक है।
- नई मूर्ति में देवी भारतीय परिधान व आभूषण में दिखाई देती है।
- नए मूर्ति को सफेद रंग के वर्गाकार प्लेटफॉर्म पर रखा गया है।