Kutumsar Gufa: छत्तीसगढ़ की रहस्यमयी गुफा, जहां पाई जाती है अंधी मछलियां, गुफा की छतों पर लटकते हैं अजीबोगरीब संरचना

Kutumsar Gufa: छत्तीसगढ़ अपने अनोखे प्राकृतिक स्थलों के लिए जाना जाता है। यहां स्थित अनेक घाटियां ,पर्वत और गुफाएं लोगों को आश्चर्य चकित करती आई हैं। इन्हीं में से एक है यह चूना पत्थर की गुफा, जिसे कुटुमसर या गोपनसर के नाम से भी जाना जाता है। गुफा के अंदर ग्रेनाइट चट्टाने भी पाई जाती हैं।

Update: 2025-09-30 09:58 GMT

Kutumsar Gufa: छत्तीसगढ़ अपने अनोखे प्राकृतिक स्थलों के लिए जाना जाता है। यहां स्थित अनेक घाटियां ,पर्वत और गुफाएं लोगों को आश्चर्य चकित करती आई हैं। इन्हीं में से एक है यह चूना पत्थर की गुफा, जिसे कुटुमसर या गोपनसर के नाम से भी जाना जाता है। गुफा के अंदर ग्रेनाइट चट्टाने भी पाई जाती हैं। यह न केवल अपने भूगर्भीय सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसमें छिपी जैव विविधता और धार्मिक महत्व के लिए भी पर्यटकों और शोधकर्ताओं के बीच आकर्षण का केंद्र है।

गुफा का इतिहास

कुटुमसर गुफा का इतिहास और भौगोलिक संरचना काफी प्राचीन है। इस गुफा को आदिवासियों ने सन 1900 में ही खोज लिया था परंतु इसका व्यवस्थित अन्वेषण 1950 के दशक में भूगोल के प्रोफेसर डॉ. शंकर तिवारी ने शुरू किया। सीमित संसाधनों के बावजूद उनकी मेहनत ने इस गुफा को वैज्ञानिक नजरों में लाया। पास में स्थित कुटुमसर गांव के कारण इसका नाम कुटुमसर गुफा पड़ा। 1993 में यह पर्यटकों के लिए खोली गई। ऐसी भी मान्यता है कि श्री राम ने वनवास के कुछ समय यहां बिताए थे।

गुफा की संरचना

कुटुमसर गुफा चूना पत्थर की पट्टी पर बनी है, जो लगभग 33 करोड़ वर्ष पुरानी है। यह गुफा वर्षा जल के अम्लीय प्रभाव से चूना पत्थर के घुलने की प्रक्रिया से बनी, जो लाखों वर्षों तक चली। यह गुफा प्रागैतिहासिक काल की मानी जाती है। इसमें स्टैलेक्टाइट (छत से लटकने वाली संरचनाएं) और स्टैलेग्माइट (फर्श से उभरने वाली संरचनाएं) प्राकृतिक कला का अद्भुत नमूना हैं। इनमें विभिन्न प्रकार के पशु पक्षी एवं वस्तुओं की प्रतिमाएं बनी हुई है। यह गुफा 400 मीटर गहरी, 330 मीटर चौड़ी और 4500 मीटर लंबी है जो इसे भारत की सबसे लंबी प्राकृतिक गुफाओं में से एक बनाती है। यह गुफा जमीन से लगभग 54 फीट नीचे है। गुफा में एक भूमिगत नदी भी बहती है, जो मानसून के दौरान बाढ़ग्रस्त हो जाती है।

पाई जाती है अनोखी अंधी मछली

कुटुमसर गुफा केवल अपने प्राकृतिक संरचना तक ही सीमित नहीं है इसके अंदर अपना खुद का जैव विविधता वातावरण बसा हुआ है। यहां पाई जाने वाली रंग बिरंगी अंधी मछली, जिसे कप्पी ओला शंकराई, प्रोफेसर शंकर तिवारी के नाम पर (इंडोरियनेक्टेस एवेजार्डी) रखा गया है। यह मछली पूर्ण अंधेरे में जीवित रहने के लिए अनुकूलित है। गुफा में चमगादड़, आर्थ्रोपॉड्स, बैक्टीरिया और विभिन्न सूक्ष्म जीव भी पाए जाते हैं। ये जीव वैज्ञानिकों के लिए विकास और पर्यावरण अनुकूलन के अध्ययन का महत्वपूर्ण स्रोत हैं।

यहां स्थित है प्राचीन शिव मंदिर

कुटुमसर गुफा का धार्मिक महत्व भी कम नहीं है। हिंदू पौराणिक मान्यताओं में गुफाएं पवित्र मानी जाती हैं, और यहां की एक विशाल स्टैलेग्माइट चट्टान, जो शिवलिंग जैसी दिखती है। यह भी तीर्थ यात्रियों को अपनी और आकर्षित करती है। गुफा की प्राकृतिक संरचनाएं एक अनोखा आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती हैं।

गुफा में लगने वाले शुल्क

यह पर्यटकों के लिए एक रोमांचक लेकिन सावधानीपूर्वक यात्रा का स्थान है। गुफा का प्रवेश शुल्क भारतीय पर्यटकों के लिए लगभग 20-40 प्रति व्यक्ति और विदेशी पर्यटकों के लिए 100-200 तक हो सकता है, जो राष्ट्रीय उद्यान के प्रवेश शुल्क का हिस्सा है। गुफा तक पहुंचने के लिए निजी वाहनों की अनुमति नहीं है, इसलिए जिप्सी बुक करना अनिवार्य है, जिसका किराया 1500-1800 प्रति जिप्सी हो सकता है। गाइड शुल्क अलग से 300 रुपए प्रति ग्रुप है और गाइड, गुफा में सुरक्षा व जानकारी के लिए अनिवार्य है।

गुफा का पहुंच मार्ग

यह गुफा कुटुमसर नामक गांव में स्थित है जो कि घने जंगलों और पर्वतों से घिरा हुआ है। यहां घूमने का सबसे उपयुक्त समय होता है नवंबर से मई तक, बाकी समय गुफा बंद कर दी जाती है। गुफा काफी गहरी और लंबी होने के कारण यहां सांस लेने में दिक्कत हो सकती है। गुफा के अंदर का नजारा काफी अंधकारमय बना रहता है इसलिए अंदर सावधानी बरतने की जरूरत है। कुटुमसर गुफा के साथ-साथ यहां कैलाश गुफा और तीरथगढ़ जलप्रपात का भी आनंद लिया जा सकता है। कुटुमसर गुफा कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में जगदलपुर से 40 किलोमीटर दूर स्थित

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