Kali Mata Mandir Tifra Bilaspur: यहां होती है तांत्रिक साधना और अमावस्या की विशेष पूजा, जानिए तिफरा के काली माता मंदिर का रहस्य

Kali Mata Mandir Tifra Bilaspur: हम ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताने वाले हैं जिसे तांत्रिक साधना का प्रमुख केंद्र माना जाता है। यह मंदिर बिलासपुर जिले के तिफरा में स्थित है, जो 'तिफरा की काली माता मंदिर' के नाम से प्रसिद्ध है।

Update: 2025-10-13 11:57 GMT

Kali Mata Mandir Tifra Bilaspur: छत्तीसगढ़ अपनी आध्यात्मिक केंद्रों की वजह से विश्व विख्यात है। यहां आस्था से जुड़े कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं जो सामान्य लोगों के पूजा पाठ के साथ-साथ तांत्रिक साधना का भी केंद्र है। आज हम ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताने वाले हैं जिसे तांत्रिक साधना का प्रमुख केंद्र माना जाता है। यह मंदिर बिलासपुर जिले के तिफरा में स्थित है, जो 'तिफरा की काली माता मंदिर' के नाम से प्रसिद्ध है।

मंदिर की स्थापना कब हुई

ऐसा माना जाता है कि मंदिर का निर्माण 1975 में शुरू हुआ था और तब से यहां पर नियमित रूप से पूजा-अर्चना चल रही है। शुरुआती दिनों में यह जगह काफी छोटी थी जहां स्थानीय लोग मां काली की आराधना करते थे। समय के साथ यह एक बड़े तीर्थस्थल में बदल गया। मंदिर की असली पहचान तांत्रिक पीठ के रूप में बनी जहां साधक दूर-दूर से आकर सिद्धियां प्राप्त करने की कोशिश करते हैं। 1990 के दशक में बाबा भवानीदास उदासीन महाराज ने इस मंदिर की जिम्मेदारी संभाली और इसका विस्तार किया, जिससे यह आज भव्य मंदिर के रूप में स्थापित है। महाराज के नेतृत्व में मंदिर में गर्भगृह, यज्ञकुंड और अन्य देवताओं के कक्ष बनाए गए है।

तांत्रिक साधना और चमत्कारी घटनाएं

इस भव्य मंदिर से जुड़ी कई चमत्कारि घटनाएं है, जो लोगों को आश्चर्यचकित करती हैं। सबसे प्रमुख चमत्कार यहां प्रज्वलित अखंड ज्योत का है, जिसे 1990 में बाबा भवानीदास महाराज ने केदारनाथ और बद्रीनाथ से लाकर प्रज्वलित किया था। यह ज्योत आज भी बिना रुके जल रही है। नवरात्रि के समय यहां एक और चमत्कारी घटना घटी। जिसमें यह प्रज्वलित ज्योति बारिश के बीच में भी पानी पड़ने के दौरान नहीं बुझी। ऐसी घटनाएं माता काली के साक्षात होने का सबूत देती है।

अमावस्या की विशेष पूजा और यज्ञ कुंड का रहस्य

यह जगह तांत्रिक साधना के लिए मशहूर है, जहां सकारात्मक शक्ति की प्राप्ति होती है। मंदिर में तीन विशेष यज्ञकुंड हैं जहां अमावस्या की रातों में हवन, मंत्रोच्चार, साधना और अनुष्ठान किए जाते हैं। गर्भगृह में स्थापित मां काली की प्रतिमा इतनी प्रभावशाली है कि दर्शन करने वाले को तुरंत भक्ति का एहसास होता है। मंदिर को सिद्धपीठ माना जाता है।

मंदिर की अनूठी वास्तुकला

यह मंदिर काफी प्राचीन अनुभव कराता है, जो लाल और सफेद रंगों से सजी हुई है। मंदिर के शिखर में एक पारंपरिक ध्वज लहराता रहता है। अंदर की दीवारों पर हिंदू पौराणिक कथाओ और प्रतीकों की नक्काशियां उकेरी गई हैं। गर्भगृह के आसपास भगवान विष्णु, शिव, राम-सीता-लक्ष्मण, कृष्ण, हनुमान, दुर्गा और अन्य देवी-देवताओं के कक्ष हैं।

मंदिर परिसर में एक मंच है जहां नवग्रहों की पूजा होती है

तथा पास में ही एक छोटा सा जल कुंड बनाया गया है जिसमें मछलियां और कछुए आपको दिख जाएंगे।

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