jwalamukhi ka nirman kaise hota hai: जानिए ज्वालामुखी कैसे बनते हैं और क्यों फटते हैं? आसान भाषा में समझिए ज्वालामुखी विस्फोट का विज्ञान

jwalamukhi ka nirman kaise hota hai: ज्वालामुखी का नाम सुनते ही लोगों के मन में उबलते हुए गर्म लावे और विनाशकारी मंजर का दृश्य सामने आने लगता है। ज्वालामुखी विस्फोट दुनिया के रहस्यमयी घटनाओं में से एक है। आइए जानते हैं इसके पीछे का रहस्य...

Update: 2025-12-01 10:49 GMT

Jwalamukhi ka nirman kaise hota hai: ज्वालामुखी का नाम सुनते ही लोगों के मन में उबलते हुए गर्म लावे और विनाशकारी मंजर का दृश्य सामने आने लगता है। ज्वालामुखी विस्फोट दुनिया के रहस्यमयी घटनाओं में से एक है। यह एक ऐसी भूगर्भीय प्रक्रिया है जिसमें जमीन के अंदर लगभग 10 किलोमीटर से तरल लावा और जहरीली गैसे निकलती है और जब ये धरती तक पहुंचती है तो इस घटना को ज्वालामुखी विस्फोट कहा जाता है। इन विस्फोटों की आवाज़ इतनी भयंकर होती है कि हजारों किलोमीटर दूर तक सुनाई पड़ती है और इसका प्रभाव बहुत विशाल क्षेत्रों पर पड़ता है।

ज्वालामुखी की संरचना और निर्माण की प्रक्रिया

ज्वालामुखी की बाहरी संरचना एक गोल नलिका के समान होता है, जिसमें से लावा और गैस आदि निकलते है, जिसे अंग्रेजी में वेंट या नेक कहा जाता है। यह एक प्राकृतिक नली होती है जिसके माध्यम से पृथ्वी के आंतरिक भाग से सभी पदार्थ बाहर निकलते हैं। धरती के अंदर का लावा समतल भू भाग पर पहुंचने के लिए एक छिद्र का निर्माण करता है जिसे विवर या क्रेटर कहते हैं। यह क्रेटर पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेटों की हलचल के वजह से बनते है। जब यह गर्म लावा अपने क्रेटर के आस-पास आकर ठंडा होकर जम जाता है, तो धीरे-धीरे एक शंकु के आकर का पर्वत निर्माण होता है और इसी को हम ज्वालामुखी पर्वत के नाम से जानते हैं।

ज्वालामुखी क्यों फटते हैं?

1. धरती के अंदर का तेज तापमान

पृथ्वी के अंदर तापमान इतना ज्यादा होता है कि चट्टानें पिघलकर मैग्मा बन जाती हैं। रेडियोधर्मी खनिजों के विभिन्न रासायनिक प्रतिक्रियाओ और ऊपरी परतों के भारी दबाव के कारण अंदर का तापमान 1000 डिग्री सेल्सियस से भी पार चला जाता है।

2. तापमान और दबाव का संतुलन बिगड़ना

धरती के अंदर जितनी गहराई में हम जाते हैं तापमान और दबाव दोनों बढ़ते हैं। कभी दबाव कम हो जाता है तो कभी तापमान अचानक बढ़ जाता है। इसी असंतुलन के कारण ही विस्फोट होती है।

3. कमजोर जमीन और धरती पर बनी दरारें

जब धरती की टेक्टोनिक प्लेटें एकसाथ जिस जगह पर मिलती हैं, वहां की जमीन कमजोर हो जाती है। ऐसी जगहों पर दरार बनने से मैग्मा को बाहर निकलने का रास्ता मिल जाता है। प्रशांत महासागर का "रिंग ऑफ फायर" इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।

4. गैसों का अत्यधिक दबाव

जमीन के ऊपर का ठंडा पानी जब रिसता हुआ धरती के अंदर गर्म क्षेत्रों में पहुंचता है, तो वह पानी भाप बनना चालू जाता है। यह भाप कई गुना ज्यादा दबाव पैदा करती है। यही कारण है कि ज्वालामुखी से निकलने वाली 60–90% गैसें सिर्फ जलवाष्प होती हैं।

5. भूकंप

भूकंप आना भी विस्फोट का एक मुख्य कारण है। जब भी भूकंप आता है तो भू-पर्पटी यानी ऊपरी सतह में दरारें बन जाती हैं या पुरानी दरारें चौड़ी हो जाती हैं। इससे मैग्मा को ऊपर आने का आसान रास्ता मिल जाता है, जिससे विस्फोट हो जाते है।

ज्वालामुखी कितने प्रकार के होते है?

  • सक्रिय ज्वालामुखी – ये समय-समय पर फटते रहते हैं और इनसे लावा और धुआं निकलते रहता है।
  • सुप्त ज्वालामुखी – ये वे ज्वालामुखी होते है जो वर्तमान में शांत हैं पर भविष्य में फिर फट सकते हैं।
  • मृत ज्वालामुखी – इन्हें हमेशा के लिए निष्क्रिय मान लिया जाता है।

सोया हुआ(सुप्त) ज्वालामुखी अचानक क्यों फट जाता हैं?

आपके मन में ये सवाल जरूर आया होगा कि कोई ज्वालामुखी हजारों सालों से शांत रहने के बाद अचानक कैसे फट जाता है? ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इसके अंदर धीरे-धीरे मैग्मा इकट्ठा होता रहता है। जब पर्याप्त मैग्मा जमा हो जाता है और दबाव सहने की हद पार हो जाती है तो विस्फोट हो जाता है। प्रेशर कुकर में भी यही होता है जब इसमें भाप ज्यादा हो जाती है तो सिटी बजते हुए अतिरिक्त बाप बाहर निकलने लगती है।

भारत का सक्रिय ज्वालामुखी

भारत के अंडमान सागर में स्थित बैरन द्वीप ज्वालामुखी एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है और समुद्र के बीचों बीच स्थित है। यह ज्वालामुखी 1787 में पहली बार फटा था और तब से लेकर अब तक इसमें कई बार हल्की-फुल्की गतिविधियाँ देखी जा चुकी हैं।

ज्वालामुखी विस्फोट के फायदे

• ज्वालामुखी ने महत्वपूर्ण खनिजों और चट्टानों के विकास में जरूरी योगदान दिया है।

• ज्वालामुखी से निकले लावा से विशाल पठारों और पर्वतों का निर्माण हुआ है जो आज महत्वपूर्ण कृषि भूमि के रूप में उपयोग में आते हैं। यह लावा काली मिट्टी का प्रमुख स्रोत है।

• वायुमंडल में मौजूद जलवाष्प और सल्फर डाइऑक्साइड मुख्य रूप से ज्वालामुखियों की ही देन हैं।

• ज्वालामुखीय क्षेत्रों में धरती के अंदर अत्यधिक गर्मी होती है।

इस गर्मी का उपयोग बिजली बनाने (geothermal power plants) में किया जाता है।

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