Governor-General aur Viceroy ka Itihas: भारत में ब्रिटिश शासनकाल में थे ये प्रमुख पदाधिकारी, जानिए गवर्नर, गवर्नर-जनरल और वायसराय का इतिहास

Governor-General aur Viceroy ka Itihas: भारत में अंग्रेजों के आगमन से लेकर उनके जाने तक कई प्रमुख पदाधिकारी रहे हैं, आइए जानते हैं गवर्नर, गवर्नर-जनरल और वायसराय का इतिहास.

Update: 2025-10-24 12:53 GMT

Governor-General aur Viceroy ka Itihas: भारत में अंग्रेजों के आगमन से लेकर उनके जाने तक कई प्रमुख पदाधिकारी रहे हैं, जिन्होंने प्रशासनिक व्यवस्था का विकास किया। यह वह दौर था जब एक व्यापारिक कंपनी ने धीरे-धीरे अपने आप को एक राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित किया और फिर एक विशाल साम्राज्य का हिस्सा बन गई। अंग्रेजों की प्रशासनिक नीति में गवर्नर, गवर्नर जनरल और वायसराय का पद महत्वपूर्ण था।

बंगाल के गवर्नर

सबसे पहले बात करें तो ईस्ट इंडिया कंपनी ने जब भारत में अपना दबदबा बनाना शुरू किया, तब उन्हें एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी जो उनके हितों की रक्षा कर सके और व्यापारिक गतिविधियों को संचालित कर सके। 1757 में रॉबर्ट क्लाइव वह व्यक्ति थे जिन्होंने इस जिम्मेदारी को संभाला। उन्होंने दो बार बंगाल के गवर्नर के रूप में कार्य किया। इसी समय प्लासी की लड़ाई हुई, तब गवर्नर का पद केवल एक प्रशासनिक पद नहीं रहा बल्कि राजनीतिक बन गया।

बंगाल के गवर्नर-जनरल

सन् 1773 में ब्रिटिश संसद ने रेगुलेटिंग एक्ट के माध्यम से पहली बार ब्रिटिश सरकार ने कंपनी के मामलों में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप किया। इस अधिनियम के तहत बंगाल के गवर्नर को बंगाल का गवर्नर-जनरल बना दिया गया और वारेन हेस्टिंग्स इस नए पद पर बैठने वाले पहले व्यक्ति बने। वारेन हेस्टिंग्स के बाद कई महत्वपूर्ण व्यक्तित्व इस पद पर आए। कॉर्नवॉलिस ने अपनी सेवाएं दीं और स्थायी बंदोबस्त जैसी महत्वपूर्ण व्यवस्था की शुरुआत की। वेलेजली ने सहायक संधि की नीति के माध्यम से कंपनी के क्षेत्र का विस्तार किया।

भारत के गवर्नर-जनरल

चार्टर एक्ट 1833 ने बंगाल के गवर्नर-जनरल को भारत का गवर्नर-जनरल बना दिया गया। लॉर्ड विलियम बैंटिक भारत के प्रथम गवर्नर-जनरल बने। उनका कार्यकाल 1828 से 1835 तक रहा और इस दौरान उन्होंने सती प्रथा के उन्मूलन जैसे महत्वपूर्ण सामाजिक सुधार किए। इस नई व्यवस्था के तहत गवर्नर-जनरल को संपूर्ण ब्रिटिश भारत पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त हो गया। बॉम्बे और मद्रास की विधायी शक्तियों को समाप्त कर दिया गया और सारी शक्ति कलकत्ता में केंद्रित हो गई। लॉर्ड ऑकलैंड और डलहौजी अन्य गवर्नर-जनरल थे।

भारत के वायसराय

1857 का विद्रोह भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी जिसने ब्रिटिश शासन को हिला कर रख दिया। इस विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार ने महसूस किया कि कंपनी के माध्यम से भारत पर शासन करना अब उचित नहीं है। भारत सरकार अधिनियम 1858 के माध्यम से ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त कर दिया गया और भारत सीधे ब्रिटिश क्राउन के अधीन आ गया। लॉर्ड कैनिंग जो उस समय गवर्नर-जनरल थे, उन्हें भारत का प्रथम वायसराय बनाया गया।

अंतिम वायसराय

अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन थे जिन्होंने मार्च 1947 से अगस्त 1947 तक इस पद पर कार्य किया। उन्होंने भारत विभाजन की पूरी प्रक्रिया की देखरेख की और 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ।

स्वतंत्र भारत में गवर्नर-जनरल

स्वतंत्रता के बाद वायसराय का पद समाप्त हो गया लेकिन गवर्नर-जनरल का पद जारी रहा। लॉर्ड माउंटबेटन ही स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर-जनरल बने और उन्होंने जून 1948 तक इस पद पर कार्य किया। उनके बाद सी. राजगोपालाचारी इस पद पर बैठे। इस पद पर पहुंचने वाले प्रथम भारतीय भी थे।

Tags:    

Similar News