History of Nakta Mandir Janjgir champa: नकटा मंदिर की अनकही कहानी; जानिए कैसे एक रात में हुआ मंदिर का निर्माण

History of Nakta Mandir Janjgir champa: छत्तीसगढ़ की धरती अपने भीतर असंख्य ऐतिहासिक धरोहरें और रहस्यमयी कथाएँ समेटे हुए है। इन्हीं धरोहरों में जांजगीर-चांपा का नकटा मंदिर, जिसे विष्णु मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, विशेष स्थान रखता है। यह मंदिर अधूरा होने के बावजूद अपनी अनूठी स्थापत्य कला और लोककथाओं के कारण आज भी लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

Update: 2025-09-10 12:53 GMT

History of Nakta Mandir Janjgir champa: छत्तीसगढ़ की धरती अपने भीतर असंख्य ऐतिहासिक धरोहरें और रहस्यमयी कथाएँ समेटे हुए है। इन्हीं धरोहरों में जांजगीर-चांपा का नकटा मंदिर, जिसे विष्णु मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, विशेष स्थान रखता है। यह मंदिर अधूरा होने के बावजूद अपनी अनूठी स्थापत्य कला और लोककथाओं के कारण आज भी लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

निर्माण की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

नकटा मंदिर का निर्माण 11वीं से 12वीं शताब्दी के दौरान कल्चुरी वंश के राजा जाज्वल्य देव प्रथम के शासनकाल में शुरू हुआ था। भीमा तालाब के किनारे स्थित इस मंदिर को भव्य और पूर्ण रूप से तैयार करने की योजना बनाई गई थी। मंदिर की संरचना दो हिस्सों में आरंभ की गई थी, परंतु किसी कारणवश इसे पूरा नहीं किया जा सका। यही कारण है कि यह आज भी अधूरा है और इसी अधूरेपन की वजह से इसे ‘नकटा मंदिर’ नाम मिला।

मंदिर की वास्तुकला और नक्काशी

मंदिर की संरचना नागर शैली पर आधारित है और इसका रुख पूर्व दिशा की ओर है। यह सप्तरथ योजना पर निर्मित है, जिसमें सात रथाकार प्रक्षेप दिखाई देते हैं। गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर बने दो मजबूत स्तंभ आज भी इस मंदिर की भव्यता का परिचय कराते हैं और संकेत देते हैं कि यहाँ एक विशाल महामंडप भी होना था।

मंदिर की दीवारों पर की गई मूर्तिकला इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। रामायण के प्रसंग, कृष्ण-लीला और भगवान विष्णु के दशावतार को बारीकी से उकेरा गया है। इनमें राम-सीता-लक्ष्मण, मृग-हिंत्या प्रसंग, नरसिंह, वामन अवतार और गरुड़ पर आरूढ़ विष्णु की छवियाँ शामिल हैं। सूर्य देव, त्रिमूर्ति और वासुदेव द्वारा शिशु कृष्ण को उठाए हुए दृश्य भी यहाँ देखे जा सकते हैं।

मंदिर से जुड़ी लोककथा और मान्यता

नकटा मंदिर से कई दंतकथाएँ जुड़ी हुई हैं। एक कथा के अनुसार, जांजगीर के विष्णु मंदिर और शिवरीनारायण के मंदिर के बीच यह तय हुआ कि जो मंदिर पहले पूरा होगा, वही भगवान विष्णु का धाम बनेगा। शिवरीनारायण मंदिर का निर्माण पहले पूर्ण हो गया और इस कारण जांजगीर का मंदिर अधूरा रह गया।

दूसरी कथा भी उतनी ही रोचक है। कहा जाता है कि महाबली भीम और विश्वकर्मा के बीच रातभर मंदिर निर्माण की स्पर्धा हुई। भीम जब काम कर रहे थे, तो उनकी छेनी-हथौड़ी बार-बार नीचे गिर जाती और उनका हाथी उसे वापस लाकर देता। लेकिन एक बार औजार भीमा तालाब में गिर गया, जिसे हाथी वापस नहीं ला पाया। सुबह होते ही कार्य अधूरा रह गया और भीम ने क्रोध में हाथी को दो भागों में काट दिया। आज भी मंदिर परिसर में भीम और हाथी की टूटी मूर्तियाँ इस कथा की गवाही देती हैं।

सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व

यद्यपि यह मंदिर अधूरा है, फिर भी आस्था और श्रद्धा में इसकी कोई कमी नहीं है। यहाँ के शिल्प में न केवल धार्मिक भावनाओं का संचार होता है, बल्कि उस समय की कला और कारीगरी का भी उत्कृष्ट उदाहरण मिलता है। यह मंदिर इस बात का प्रतीक है कि अधूरापन भी इतिहास में अमर हो सकता है।

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