History of Bhoramdev Mandir Kawardha: जानिए छत्तीसगढ़ के खजुराहो कहे जाने वाले भोरमदेव मंदिर कवर्धा का इतिहास
History of Bhoramdev Mandir Kawardha: छत्तीसगढ़ के कवर्धा ज़िले में स्थित भोरमदेव मंदिर (Bhoramdev Mandir) अपनी प्राचीनता, स्थापत्य कला और धार्मिक आस्था के कारण विशेष पहचान रखता है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसे अक्सर “छत्तीसगढ़ का खजुराहो” भी कहा जाता है। यहां की कलाकृतियां, शिल्प और वास्तुकला न केवल श्रद्धालुओं को आकर्षित करती हैं, बल्कि इतिहास और संस्कृति में रुचि रखने वाले पर्यटकों को भी अपनी ओर खींचती हैं।
History of Bhoramdev Mandir Kawardha: छत्तीसगढ़ के कवर्धा ज़िले में स्थित भोरमदेव मंदिर (Bhoramdev Mandir) अपनी प्राचीनता, स्थापत्य कला और धार्मिक आस्था के कारण विशेष पहचान रखता है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसे अक्सर “छत्तीसगढ़ का खजुराहो” भी कहा जाता है। यहां की कलाकृतियां, शिल्प और वास्तुकला न केवल श्रद्धालुओं को आकर्षित करती हैं, बल्कि इतिहास और संस्कृति में रुचि रखने वाले पर्यटकों को भी अपनी ओर खींचती हैं।
कहां स्थित है यह मंदिर
भोरमदेव मंदिर, कवर्धा शहर से लगभग 17-18 किलोमीटर दूर चौरा गांव में स्थित है। यह स्थल घने जंगलों और प्राकृतिक सुंदरता से घिरा हुआ है, जो इसे और भी आकर्षक बनाता है। राज्य की राजधानी रायपुर से इस मंदिर की दूरी लगभग 125-135 किलोमीटर है। सड़क मार्ग से यहां पहुँचना सबसे सुविधाजनक है और नज़दीकी शहरों से नियमित परिवहन सुविधा भी उपलब्ध है।
कब से निर्मित है यह मंदिर
भोरमदेव मंदिर का निर्माण सातवीं से ग्यारहवीं शताब्दी के बीच हुआ माना जाता है। मुख्य पत्थर से बने मंदिर की तिथि ग्यारहवीं शताब्दी बताई जाती है। यह मंदिर नागर शैली की वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। समय-समय पर विभिन्न शासकों और स्थानीय राजाओं के संरक्षण में यह धार्मिक स्थल विकसित होता रहा और आज भी यह अपनी भव्यता को संजोए हुए है।यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और यहां स्थापित शिवलिंग को अत्यंत पवित्र माना जाता है। शिवरात्रि और अन्य धार्मिक अवसरों पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं। मंदिर घने जंगलों और पहाड़ियों के बीच स्थित है। शांत और मनमोहक वातावरण इसे धार्मिक के साथ-साथ पर्यटन स्थल भी बनाता है।
बेहद अद्भुत स्थापत्य कला
इस मंदिर की संरचना बेहद अद्भुत है। लगभग पाँच फीट ऊँचे चबूतरे पर निर्मित यह मंदिर तीन मुख्य भागों में विभाजित है – मंडप (सभा स्थल), अंतराल (गर्भगृह तक जाने का मार्ग) और गर्भगृह (मुख्य शिवलिंग की स्थापना का स्थान)। मंडप में कई आकर्षक स्तंभ हैं, जो छत को सहारा देते हैं। मंडप की लंबाई 60 फुट है और चौड़ाई 40 फुट है। मंडप के बीच में 4 खंबे हैं तथा किनारे की ओर 12 खम्बे हैं। बाहरी दीवारों पर देवी-देवताओं, पशु-पक्षियों और जीवन के विभिन्न प्रसंगों को दर्शाती हुई नक्काशियां देखने को मिलती हैं। इनमें अनेक मूर्तियां ऐसी भी हैं जिन्हें कामुकता और जीवन के यथार्थ का प्रतीक माना जाता है। यही कारण है कि इसे खजुराहो और कोणार्क मंदिरों की शैली से जोड़ा जाता है।
सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व
भोरमदेव मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि लोक संस्कृति और परंपराओं का भी केंद्र है। यहां प्रतिवर्ष भोरमदेव महोत्सव आयोजित किया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक भाग लेते हैं। इस आयोजन में स्थानीय कला, नृत्य और संगीत की झलक मिलती है, जो छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को उजागर करती है। महोत्सव में स्थानीय कला, नृत्य और संगीत की झलक देखने को मिलती है। इसके अतिरिक्त मंदिर परिसर में एक छोटा संग्रहालय भी है, जहां प्राचीन मूर्तियों और पुरावशेषों को संरक्षित किया गया है। इनमें 700 साल पुरानी गणेश प्रतिमा विशेष आकर्षण का केंद्र है।
घूमने का सही समय
भोरमदेव मंदिर वर्षभर देखा जा सकता है, लेकिन अक्टूबर से मार्च तक का समय यहां की यात्रा के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। इस दौरान मौसम सुहावना होता है और आसपास की प्राकृतिक सुंदरता अपने चरम पर होती है।