DM Aur Collector Me Antar: डीएम और कलेक्टर कौन है ज्यादा ताकतवर! जानिए दोनों के बीच अंतर और संबंध

Difference between DM & Collector: जब भी अखिल भारतीय सेवाओं की बात आती है तो IAS रैंक के अधिकारी डीएम (डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट) और कलेक्टर का नाम जरूर आता है। आइए जानते हैं दोनो के बीच अंतर.

Update: 2025-10-26 06:40 GMT

Difference between DM & Collector: जब भी अखिल भारतीय सेवाओं की बात आती है तो IAS रैंक के अधिकारी डीएम (डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट) और कलेक्टर का नाम जरूर आता है। यह दोनों ही पद प्रशासनिक सेवा के उच्च पद माने जाते हैं। अधिकतर लोगों को लगता है कि ये दो अलग-अलग पद हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि ये एक ही आईएएस अधिकारी की दो अलग-अलग शक्तियां हैं। जब वह कानून व्यवस्था संभालता है तो उसे डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट कहा जाता है और जब वही अधिकारी राजस्व या वित्तीय मामलों की देखरेख करता है तो उसे कलेक्टर के नाम से संबोधित किया जाता है। यह दोनों कार्य एक ही व्यक्ति करता है, परंतु इन दोनों में कुछ असमानताएं भी हैं जिन्हें आज हम इस लेख के माध्यम से जानेंगे।

कलेक्टर का पद

कलेक्टर का पद ब्रिटिश काल से जुड़ा हुआ है। कलेक्टर, अंग्रेजों के समय राजस्व एकत्र करने का कार्य करता था। सन 1772 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने पहली बार जिलों में कलेक्टर नियुक्त करने की व्यवस्था शुरू की। उस समय कलेक्टर की मुख्य भूमिका टैक्स और भू-राजस्व इकट्ठा करना था, इसीलिए उन्हें कलेक्टर का नाम दिया गया। धीरे-धीरे समय के साथ इन कलेक्टरों की जिम्मेदारियां बढ़ती गईं और उन्हें कानून व्यवस्था बनाए रखने का काम भी सौंपा गया। बाद में इन्हीं अधिकारियों को न्यायिक अधिकार भी दिए जाने लगे जिससे वे मजिस्ट्रेट कहलाए।

DM की जिम्मेदारियां

डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट यानी डीएम की सबसे प्रमुख जिम्मेदारी जिले में शांति और सुरक्षा बनाए रखना होता है। जब भी किसी इलाके में तनाव की स्थिति बनती है या दंगे की आशंका होती है तब डीएम सबसे पहले सामने आता है। उसके पास धारा 144 लगाने का अधिकार होता है जिसके तहत किसी क्षेत्र में चार से ज्यादा लोगों के इकट्ठा होने पर रोक लगाई जा सकती है।

डीएम के पास शक्ति होती है कि वह पुलिस प्रशासन को भी रेगुलेट कर सकता है। हालांकि पुलिस विभाग का सीधा नियंत्रण पुलिस अधीक्षक (SP) के पास होता है, लेकिन डीएम के पास समन्वय और निगरानी का अधिकार होता है। किसी भी बड़ी घटना में पुलिस और प्रशासन के बीच तालमेल बिठाना डीएम की ही जिम्मेदारी होती है। डीएम के पास राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत किसी भी व्यक्ति को राष्ट्रीय सुरक्षा के जिम्मेदार के रूप में हिरासत में लिए जाने की शक्ति होती है। डीएम जिले का मुख्य कार्यपालक मजिस्ट्रेट होता है। उसके अधीन कई अन्य कार्यपालक मजिस्ट्रेट काम करते हैं। वह जिले में लोकसभा या विधानसभा चुनाव के लिए रिटर्निंग अधिकारी भी होता है।

कलेक्टर की जिम्मेदारियां

एक ही आईएएस अधिकारी कलेक्टर के रूप में जिले का मुख्य राजस्व अधिकारी होता है। इनकी सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है भू राजस्व का संग्रहण करना। साथ ही जमीन पर लगने वाले टैक्स वसूलना तथा अन्य सभी प्रकार के राजस्व एकत्र करना कलेक्टर का काम है। जिले में सभी जमीनों का रिकॉर्ड व जमीन का मालिकाना हक साथ ही उस पर लगने वाले टैक्स और विवादों को सुलझाने का कार्य कलेक्टर द्वारा किया जाता है।

सरकार की किसी सार्वजनिक परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण का काम भी कलेक्टर की देखरेख में होता है। किसानों और जमीन मालिकों को उचित मुआवजा दिलाना, उनकी शिकायतों को सुनना ये सभी कार्य कलेक्टर के दायरे में आते हैं। केंद्र सरकार और राज्य सरकार की तरफ से जो भी योजनाएं जिले में लागू होनी हैं उनकी निगरानी कलेक्टर करता है। विभिन्न विभागों के बीच समन्वय स्थापित करना, धन का सही इस्तेमाल सुनिश्चित करना कलेक्टर की जिम्मेदारी होती है। कलेक्टर जिले में उच्चतम राजस्व अदालत होता है। उसके अधीन तहसीलदार और अन्य राजस्व अधिकारी काम करते हैं।

दोनों की भूमिकाओं में अंतर

डीएम और कलेक्टर एक ही व्यक्ति होते हैं फिर भी दोनों भूमिकाओं में स्पष्ट अंतर है। डीएम की मुख्य जिम्मेदारी कानून व्यवस्था बनाए रखना है, जबकि कलेक्टर राजस्व और वित्तीय प्रशासन देखता है। डीएम अपनी शक्तियां दंड प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी 1973 से प्राप्त करता है, वहीं कलेक्टर की शक्तियां भूमि राजस्व संहिता 1959 और राज्य के राजस्व कानून से जुड़ी है। शक्ति की तुलना में लोगों को लगता है कि DM ज्यादा ताकतवर है परंतु यह पूरी तरह से सत्य नहीं है क्योंकि दोनों भूमिकाएं एक ही व्यक्ति निभाता है और दोनों के अपने-अपने महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं।

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