Chhattisgarh Me Sone KI Nadi: छत्तीसगढ़ की इस नदी में है लाखों टन सोने के भंडार... जानिए इस नदी का रहस्य
Chhattisgarh Me Sone KI Nadi: यदि हम आपसे कहें कि आप किसी नदी में नहाने गए हो और नहाते वक्त नदी से रेत उठाएं, जहां आपको दिखे की हाथ में रेत के साथ सोने के कण भी है।
Chhattisgarh Me Sone KI Nadi: यदि हम आपसे कहें कि आप किसी नदी में नहाने गए हो और नहाते वक्त नदी से रेत उठाएं, जहां आपको दिखे की हाथ में रेत के साथ सोने के कण भी है। सुनने में यह काफी अटपटी लगती है परंतु यह बिल्कुल सच है। छत्तीसगढ़ के ईब नदी में यह चमत्कार देखने को मिलता है। यह नदी छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के लिए सबसे अनमोल मानी जाती है। अपने जल के प्रवाह द्वारा यह आदिवासी जीवन को खुशहाल बनाने का काम भी करती है। यह लेख आपको इब नदी के बारे में विस्तृत जानकारी देगा, इसलिए इसे पूरा जरूर पढ़ें।
जानिए ईब नदी का उद्गम
ईब नदी का उद्गम छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के रानीझूला नामक स्थान पर पंड्रापाट की खुरजा पहाड़ियों में होता है। यहाँ की ऊँचाई लगभग 762 मीटर है, जहाँ से यह नदी अपनी यात्रा शुरू करती है। ईब नदी उत्तर से दक्षिण की ओर बहती है, जो छत्तीसगढ़ के जशपुर, सरगुजा और रायगढ़ जिलों को पार करती है। इसके बाद यह ओडिशा के संबलपुर और झारसुगुड़ा जिलों में प्रवेश करती है। अंत में, यह संबलपुर के पास हीराकुड बाँध के निकट महानदी में विलीन हो जाती है। इस नदी की लंबाई लगभग 202 किलोमीटर है, परंतु यह छत्तीसगढ़ में मात्रा 87 किलोमीटर ही बहती है। इसकी सहायक नदियों में मैनी नदी तथा डोंड़की नदी शामिल है। जशपुर जिले का प्रसिद्ध गुल्लू जलप्रपात भी इस नदी पर बना हुआ है जहां 24 मेगावाट के गुल्लू हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट संचालित है।
छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था में योगदान
ईब नदी छत्तीसगढ़ और ओडिशा के लिए आर्थिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है। नदी से जुड़ी छोटी नहरें और बाँध स्थानीय स्तर पर सिंचाई को बढ़ावा देते हैं। इसके अलावा, ईब नदी का जल हीराकुड बाँध के माध्यम से जलविद्युत उत्पादन में योगदान देता है, जो भारत का सबसे बड़ा जलाशय है और लगभग 627 मेगावाट बिजली पैदा करता है। ईब नदी घाटी कोयला क्षेत्र (IB river Valley Coalfields) देश के प्रमुख कोयला उत्पादन केंद्रों में से एक है और जैसा कि हम सोने की बात तो कर ही रहे हैं तो इस नदी पर सोने के कण भी पाए जाते हैं। जो आपको नग्न आंखों से नहीं दिखेंगे। प्राकृतिक स्वर्ण कण पाए जाने की वजह से इसे 'सोने की नदी' भी कहा जाता है।
आखिर कहां से आता है नदी में सोना
इस बात का जवाब जानने के लिए हमें नदी के उद्गम स्थल पर फिर से जाना होगा जहां से हमें पता चलता है कि यह नदी जशपुर और रायगढ़ क्षेत्र से निकलती है तथा यह क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों जैसे कोयला, सोना आदि से भरा हुआ है। ईब नदी जब बहती है तो अपने साथ चट्टानो व मिट्टी को भी बहा कर ले आती है तथा इन मिट्टियों के साथ सोने के बहुत महीन कण चिपक कर नदी की रेत में मिल जाते हैं और जमा हो जाते हैं। हालांकि इन्हें नग्न आंखों से देखना मुश्किल है परंतु विधिवत तरीके से इन्हें अलग किया जा सकता है।
नदी से सोना निकालने में आदिवासियों की भूमिका
इस क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों द्वारा आज भी अपनी परंपरागत विधियों से नदी से सोने निकालने का काम किया जा रहा है। हालांकि नदी की मिट्टी में बहुत अधिक मात्रा में सोना एकाएक नहीं पाया जाता परंतु यह आदिवासियों के लिए एक वरदान की तरह है। नदी से सोने निकालने की प्रक्रिया मानसून के समय और अधिक हो जाती है क्योंकि इस समय नदी अपनी पूर्ण रूप से प्रवाह के साथ बहते हुए आती है व साथ में भारी मात्रा में चट्टान और मिट्टी भी लाती हैं। नदी से प्राप्त यह सोना इतना भी अधिक नहीं है कि यहां औद्योगिक प्लांट स्थापित किया जाए परंतु छोटे पारंपरिक तरीकों से इन्हें आदिवासियों द्वारा निकाला जाता है। "सोनझरिया" आदिवासी समुदाय के लोग मुख्य रूप से यह काम करते हैं।