Chhattisgarh Me British Postal System: ऐसे शुरू हुआ चिट्ठियों का सफर, जानिए छत्तीसगढ़ में ब्रिटिश डाक व्यवस्था के बारे में...

Chhattisgarh Me British Postal System: छत्तीसगढ़ में प्रत्यक्ष ब्रिटिश शासन की शुरुआत के साथ ही यहां की संचार व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन आया। जानते हैं छत्तीसगढ़ ब्रिटिश डाक व्यवस्था के बारे में...

Update: 2025-10-17 09:37 GMT

Chhattisgarh Me British Postal System: 19वीं सदी के मध्य में जब भारत में ब्रिटिश साम्राज्य अपना दबदबा बना रहा था, तब इसी समय छत्तीसगढ़ में कई आधुनिक और प्रशासनिक सुधारो की जरूरत सामने आई। इन सुधारों में सबसे महत्वपूर्ण था आधुनिक डाक व्यवस्था का प्रारंभ। यह वह समय था जब पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन और विद्रोह भड़क रहे थे। अंग्रेजों ने अपनी हुकूमत और संदेशों के आवाजाही को मजबूत करने के लिए इस तंत्र का निर्माण किया।

छत्तीसगढ़ में डाक व्यवस्था की शुरुआत

छत्तीसगढ़ में प्रत्यक्ष ब्रिटिश शासन की शुरुआत के साथ ही यहां की संचार व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन आया। इस नई डाक व्यवस्था को प्रभावी बनाने के लिए ब्रिटिश प्रशासन ने रायपुर को केंद्र बनाया जहां एक आधुनिक डाकघर की स्थापना की गई। यहां पोस्टमास्टर के पद पर एक ब्रिटिश अधिकारी की नियुक्ति की गई, जो पूरे क्षेत्र की डाक प्रक्रिया की निगरानी करता था। अगस्त 1857 में लेफ्टिनेंट स्मिथ को रायपुर के डाकघर का पोस्टमास्टर बनाया गया जो उस समय की अशांति को देखते हुए एक रणनीतिक कदम था।

जिला स्तर पर इस व्यवस्था को और मजबूत करने के लिए एक दफेदार की नियुक्ति की जाती थी। जो स्थानीय स्तर पर डाक संग्रह और वितरण का कार्य संभालता था। ये दफेदार आमतौर पर स्थानीय भाषा और रास्तों से परिचित होते थे, जिससे ग्रामीण इलाकों तक डाक पहुंचाना संभव हो सका।

डाक की सुरक्षित और तेज आवाजाही सुनिश्चित करने के लिए ब्रिटिश अधिकारियों ने पारंपरिक और आधुनिक तरीकों को अपनाया। मुख्य रूप से हरकारों, यानी पैदल डाकियों और घोड़ों की व्यवस्था की गई जो डाक को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाते थे।

1857 का विद्रोह और डाक व्यवस्था

साल 1857, इतिहास का एक सबसे महत्वपूर्ण समय था। यह भारतीयों के साथ-साथ अंग्रेजों के लिए भी करो या मरो की लड़ाई थी। भारत में स्वतंत्रता की यह पहली लड़ाई उत्तर भारत से शुरू होते हुए जब छत्तीसगढ़ पहुंची तो यहां सोनाखान के जमीदार वीर नारायण सिंह ने विद्रोह का नेतृत्व किया। ऐसे समय में ब्रिटिश प्रशासन के लिए यह अत्यंत आवश्यक हो गया था कि वे संचार व्यवस्था पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित करें।

अंग्रेजी शासन ने इस समय केवल इस बात पर प्राथमिकता दी कि विद्रोहियों के पत्रों की आवाजाही पर रोक और सरकारी सूचनाओं का त्वरित आदान-प्रदान हो। इसी उद्देश्य से अगस्त 1857 में रायपुर में एक आधुनिक डाकघर की स्थापना की गई। इस पद पर लेफ्टिनेंट स्मिथ को पोस्टमास्टर के रूप में नियुक्त किया गया था।

डाक टिकट भी जारी किए गए

अभी की तरह उस समय भी डाक की दरें सुनिश्चित की गई थी और डाक टिकट भी जारी किए गए थे जिसमें महारानी विक्टोरिया के चित्र बने हुए हैं। यह टिकट उस समय के ब्रिटिश साम्राज्य का प्रतीक है। इस डाक टिकट का मूल्य एक आना हुआ करता था।

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