Chhattisgarh Ki Famous Painting: छत्तीसगढ़ में घरों की दीवारों में पाई जाती है ये पेंटिंग,जानिए स्थानीय समुदाय और कला का रहस्य..
Chhattisgarh Ki Famous Painting: छत्तीसगढ़ अपनी सांस्कृतिक विरासत और अपनी अनूठी लोक कला के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ की कला और रीति-रिवाज न केवल सामाजिक जीवन का हिस्सा हैं, बल्कि यहाँ के लोगों की आध्यात्मिकता को भी दर्शाते हैं। चाहे वह पूजा-पाठ के लिए बनाए गए चौक हों, दीवारों पर उकेरे गए चित्र हों, या शरीर पर गोदे गए गोदना, आइए जाानते हैं इनके पीछे का रहस्य.
Chhattisgarh Ki Famous Painting: छत्तीसगढ़ अपनी सांस्कृतिक विरासत और अपनी अनूठी लोक कला के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ की कला और रीति-रिवाज न केवल सामाजिक जीवन का हिस्सा हैं, बल्कि यहाँ के लोगों की आध्यात्मिकता को भी दर्शाते हैं। चाहे वह पूजा-पाठ के लिए बनाए गए चौक हों, दीवारों पर उकेरे गए चित्र हों, या शरीर पर गोदे गए गोदना, प्रत्येक कला अपने आप में एक कहानी कहती है। आज हम छत्तीसगढ़ के आदिवासी और स्थानीय समुदाय द्वारा बनाए जाने वाले चित्रकारी (पेंटिंग्स) के बारे में बताने वाले है।
डंडा चौक
डंडा चौक छत्तीसगढ़ की एक पारंपरिक कला है, जो धार्मिक अनुष्ठानों और विशेष अवसरों, जैसे दशहरा के दौरान बनाई जाती है। यह एक पवित्र ज्यामितीय आकृति होती है, जिसे मुख्य रूप से आटे या कभी-कभी धान से बनाया जाता है। इस चौक का उद्देश्य पूजा के लिए एक शुद्ध और पवित्र स्थान तैयार करना है। इसके ऊपर एक पीढ़ा (लकड़ी का छोटा स्टूल) रखा जाता है, जिस पर मूर्तियाँ या पूजा की सामग्री स्थापित की जाती है। यह कला सामान्यतः महिलाओं द्वारा बनाई जाती है।
बिहई चौक
विवाह के अवसर पर बनाया जाने वाला बिहई चौक छत्तीसगढ़ की एक विशेष कला है, जो मायन के दिन तैयार किया जाता है। यह चौक वर और वधु के घरों में बनाया जाता है, जिसमें कन्या के लिए पाँच पंखुड़ियों (पंच दल) और वर के लिए सात पंखुड़ियों (सात दल) वाला डिज़ाइन बनाया जाता है। यह कला चावल के आटे से बनाई जाती है, जो शुद्धता और समृद्धि का प्रतीक है। यह प्रक्रिया विवाह के पवित्र बंधन को मजबूत करने का एक प्रतीकात्मक कदम है।
छट्ठी चौक
शिशु के जन्म के छठे दिन मनाए जाने वाले छट्ठी समारोह में छट्ठी चौक बनाया जाता है। यह एक गोलाकार (वर्तुलाकार) डिज़ाइन होता है, जो बच्चे के स्वस्थ और दीर्घ जीवन की कामना को दर्शाता है। इस चौक को आटे या अन्य प्राकृतिक सामग्रियों से बनाया जाता है और इसके ऊपर होम (अग्नि पूजा) और धूप जलाने जैसे अनुष्ठान किए जाते हैं। यह कला शिशु के विकास और परिवार में उसके स्वागत को केंद्र में रखकर बनाई जाती है।
गुरुवारिया चौक
अगहन मास के गुरुवार को व्रत के दौरान बनाया जाने वाला गुरुवारिया चौक लक्ष्मी पूजा का एक अभिन्न हिस्सा है। इस चौक के केंद्र में देवी लक्ष्मी के चरण-चिह्न बनाए जाते हैं, जो उनके घर में प्रवेश और समृद्धि के आगमन का प्रतीक हैं। चारों ओर स्वास्तिक के चिह्न बनाए जाते हैं, जो सौभाग्य और सुरक्षा का प्रतीक हैं। यह कला आटे या रंगीन पाउडर से बनाई जाती है और इसे बनाने की प्रक्रिया में भक्ति और श्रद्धा का गहरा भाव होता है।
भित्ति चित्र
छत्तीसगढ़ की भित्ति चित्र कला प्राचीन काल से चली आ रही है, जब मानव गुफाओं में रहता था। रायगढ़ के पास कबरा पहाड़ की गुफाओं में पाए जाने वाले मिट्टी शैली के चित्र इस कला के प्राचीन उदाहरण हैं। ये चित्र प्रकृति, शिकार, और मानव जीवन को दर्शाते हैं, जो प्राकृतिक रंगों जैसे लाल और पीले गेरू से बनाए जाते हैं। ये चित्र छत्तीसगढ़ की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
हरतालिका
हरतालिका छत्तीसगढ़ में तीज के अवसर पर महिलाओं द्वारा बनाई जाने वाली एक कला है, जो शिव और पार्वती के प्रति भक्ति और वैवाहिक सुख की कामना को व्यक्त करती है। यह कला श्रावण मास में बनाई जाती है, जब महिलाएँ उपवास रखती हैं और अपने पति की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं। ये चित्र आटे, हल्दी, या रंगीन पाउडर से बनाए जाते हैं, और इनका निर्माण सामूहिक रूप से किया जाता है।
कोठी सज्जा
छत्तीसगढ़ में अन्न भंडार को कोठी या ढोली कहा जाता है। कोठी सज्जा इन मिट्टी के भंडारों को सजाने की कला है, जो ग्रामीण जीवन में खाद्य सुरक्षा और समृद्धि के प्रति सम्मान को दर्शाती है। लोग इन कोठियों पर पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, या पौराणिक घटनाओं के प्रतीक उकेरते हैं। यह कला मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा की जाती है, जो अपनी रचनात्मकता और सौंदर्य बोध को मिट्टी की सतह पर व्यक्त करती हैं।
आठे कन्हैया
भादों मास की अष्टमी को छत्तीसगढ़ में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को आठे कन्हैया के रूप में बड़े उत्साह से मनाया जाता है। इस अवसर पर भगवान कृष्ण के जीवन से संबंधित चित्र बनाए जाते हैं, जैसे उनकी जन्म कथा, गोपियों के साथ रास, या गोवर्धन पर्वत को उठाने की घटना। ये चित्र दीवारों, कपड़ों, या कागज पर प्राकृतिक रंगों से बनाए जाते हैं। यह कला न केवल भक्ति को व्यक्त करती है, बल्कि यह
हाथा
हाथा छत्तीसगढ़ में एक विशेष कला है, जिसमें हाथों से बनाए गए थापों का उपयोग किया जाता है। यह कला दो प्रमुख अवसरों पर बनाई जाती है नए घर की प्रतिष्ठा के समय और राउत जाति की महिलाओं द्वारा गोवर्धन पूजा के दौरान। हाथा बनाने के लिए गाय के गोबर या चूने जैसे प्राकृतिक रंगों में डुबोए गए हाथों से दीवारों या फर्श पर निशान बनाए जाते हैं। इनमें पशु, खेती, या अन्य प्रतीकात्मक आकृतियाँ शामिल हो सकती हैं।
छपाई कला "गोदना"
सरगुजा की प्रसिद्ध गोदना कला छत्तीसगढ़ की एक अनूठी परंपरा है, जो प्राचीन काल में आदिवासी समुदायों द्वारा शरीर पर उकेरी जाती थी। इस कला में सुई और प्राकृतिक रंगों का उपयोग कर पशु-पक्षी, फूल-पत्तियाँ, मानव श्रृंखलाएँ, या नामों को त्वचा पर बनाया जाता था। गोदना का स्वरूप अब बदल गया है और अब यह कॉटन, कोसा, या टसर सिल्क जैसे कपड़ों पर प्रिंट के रूप में देखा जाता है, जिसे गोदना प्रिंट कहा जाता है।
नोहडोरा
नोहडोरा नई बनी दीवारों पर गीली मिट्टी में बनाई जाने वाली एक सजावटी कला है, जो नए घर के निर्माण के दौरान की जाती है। इस कला में पशु-पक्षी, फूल-पत्तियाँ, और पेड़-पौधों की आकृतियाँ बनाई जाती हैं। नोहडोरा न केवल घर को सुंदर बनाता है, बल्कि यह नए जीवन की शुरुआत का संकेत है।
सवनाही
श्रावण मास की हरेली अमावस्या के दिन छत्तीसगढ़ की महिलाएँ घर के मुख्य द्वार पर गोबर से सवनाही बनाती हैं। इस कला में चार अंगुलियों से मोटी रेखाएँ खींचकर घर के चारों ओर एक घेरा बनाया जाता है, जिसमें मानव, पशु, या शिकार के दृश्य उकेरे जाते हैं। सवनाही का उद्देश्य घर को बुरी शक्तियों से बचाना और समृद्धि को आमंत्रित करना है।
बालपुर चित्रकला
महानदी घाटी के चितेर जाति के लोग अपनी बालपुर चित्रकला के लिए प्रसिद्ध हैं। यह कला पौराणिक कथाओं, जैसे रामायण और महाभारत को चित्रों के माध्यम से दर्शाती है। बालपुर चित्रकला न केवल एक कला है, बल्कि यह सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों को अगली पीढ़ी तक पहुँचाने का एक माध्यम भी है।
गोदना
गोदना छत्तीसगढ़ की महिलाओं की एक अनूठी लोक कला है, जिसे वे आभूषण के रूप में देखती हैं। यह त्वचा पर उकेरी जाने वाली स्थायी कला है, जो मृत्यु तक साथ रहती है। गोदना में फूल-पत्तियाँ, ज्यामितीय आकृतियाँ, या व्यक्तिगत नाम जैसे डिज़ाइन बनाए जाते हैं। यह कला आदिवासी और ग्रामीण महिलाओं की पहचान और सांस्कृतिक गौरव को भी दर्शाती है। गोदना की प्रक्रिया दर्दनाक होती है, फिर भी इसे गर्व के साथ अपनाया जाता है।